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न्यूज क्लिपिंग्स् | जन को गन का भय

जन को गन का भय

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published Published on Jun 18, 2010   modified Modified on Jun 18, 2010

गया [कमल नयन]। देश की स्वतंत्रता को आमजनों की स्वतंत्रता 'न मानने वाले' नक्सली संगठनों ने चालू वर्ष में 'जन' को ज्यादा परेशान किया। यह परेशानी बंद के दौरान उनके समर्थन में नहीं बल्कि 'गन' के भय से होती है। खासकर सूबे के बंद के दौरान गया जिले का शेरघाटी अनुमंडल सर्वाधिक प्रभावित होता है।

अगर इसे आर्थिक रूप से देखा जाए तो जिले का सबसे कमजोर इलाका बार-बार की बंदी के बाद और टूट रहा है। एक दिन की बंदी पर लाखों का व्यवसाय ठप हो जाता है।

बंद वर्ष 2010 की शुरुआत के दिन से ही हुआ। फिर 18 जनवरी को भी बंद रहा। फरवरी में चार दिन की बंदी रही। दो, आठ, नौ एवं 10 फरवरी को नक्सलियों ने बंद कराया। 23 और 24 मार्च, 27, 28 एवं 29 अप्रैल, 16 एवं 17 मई और फिर 14 एवं 15 जून की बंदी। उपरोक्त सभी बंदी प्रतिबंधित संगठनों द्वारा कभी स्थानीय स्तर पर तो कभी दो-तीन राज्यों को मिलाकर किए जाने की घोषणा की गई।

'ग्रीन हंट' आपरेशन की बिहार व झारखंड में अधिकृत घोषणा न होने के बावजूद बंद का पूरा असर देखा गया। 35 लाख की आबादी वाले गया जिले पर बंद का जो असर है वह सिर्फ दक्षिणी इलाका है। जो झारखंड से सटा है। जिसके चलते ही इस इलाके पर नक्सली संगठनों का प्रभाव है। यह मूल रूप से आधारक्षेत्र माना जाता है। जहां नक्सलियों की घोषणा हो या न हो। अगर किसी भी स्रोत से चर्चा चल जाती है तो बंद हो जाता है। ऐसा इसलिए नहीं कि नक्सलियों के समर्थन में बंद होता है। यहां शेरघाटी अनुमंडल के बांकेबाजार, इमामगंज, डुमरिया, रानीगंज, कोठी, गुरुआ, मोहनपुर और बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालयों के अतिरिक्त एक ग्रामीण बाजार है। जहां प्रतिदिन हजारों की तादाद में लोग खरीद-बिक्री करते हैं।

इन क्षेत्रों में लगभग डेढ़ दर्जन बैंक की विभिन्न शाखाएं काम करती हैं। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की गणना नहीं है, लेकिन बंद की घोषणा से यह सब ठप हो जाता है। कोई काम नहीं होता। बंद का सबसे ज्यादा असर यातायात पर होता है। चाहे वह रेल मार्ग हो या सड़क। पिछले कुछ दिनों से बंद की घोषणा के साथ ही रेल महकमा 'जन' सुरक्षा के दृष्टिकोण से या तो राह बदल देता है या फिर आवागमन ही रोक देना मुनासिब समझा जाता है।

14 जून की बंदी में नक्सलियों ने इस्माइलपुर स्टेशन पर कुछ कागज जला डाले और सात घंटे तक ग्रैंड कार्ड लाइन पर परिचालन रोक दिया। इतना ही नहीं पिछले दिनों बांकेबाजार के एक कथित अपराधी की गिरफ्तारी के विरोध में भी दो दिनों तक दक्षिणी इलाका पूरी तरह बंद रहा। इससे साफ है कि वहां जन समर्थन एक ऊपरी खाल ओढ़े हुए हैं, लेकिन लोगों के दिल में गन का भय अधिक दिखता है। नतीजा पुलिस भी कुछ नहीं कर पाती। और बंद पूरी तरह इन क्षेत्रों में सफल बताया जाता है।

बंद का असर अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक पड़ रहा है। रेलवे के बड़े घाटे को अगर इन आंकड़ों से अलग भी रखा जाता है तो एक दिन के बंदी पर बैंक एवं अन्य व्यवसाय पर लाखों का चूना लगता है, लेकिन इस समस्या का समाधान ढूंढ़ पाना अभी दूर दिखता है। क्योंकि जन के मन से गन का भय हटाना होगा।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6498747.html


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