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न्यूज क्लिपिंग्स् | जीएसटी की जटिलता से बढ़ी उलझनें - रणदीप एस सुरजेवाला

जीएसटी की जटिलता से बढ़ी उलझनें - रणदीप एस सुरजेवाला

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published Published on Jul 20, 2017   modified Modified on Jul 20, 2017
कांग्र्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक सरल कर के रूप में जीएसटी की जो परिकल्पना की थी, उसका मकसद देश में केवल एकसमान टैक्स लागू करना ही नहीं, बल्कि उसकी दरें भी कम करना था। इससे कर ढांचा सरल होने के साथ ही महंगाई में भी खासी कमी आती। 2011 में कांग्र्रेस सरकार ने 115वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो जीएसटी विधेयक पेश किया था, वह न केवल पारदर्शी था, बल्कि उसमें अधिकांश वस्तुएं भी करमुक्त होने के साथ-साथ कर की अधिकतम दर 18 प्रतिशत के उच्च स्तर पर तय की जा रही थी। इससे व्यापार बढ़ता, उपभोक्ता के लिए कीमतें कम होतीं और जीडीपी में एक से दो प्रतिशत की वृद्धि होती। इसके उलट 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि को भाजपा सरकार द्वारा ऐसा जीएसटी कानून लागू किया गया, जिसने जटिलता बढ़ाने के साथ ही आम लोगों पर भारी बोझ डाल दिया है। भाजपा सरकार स्वभाव से ढिंढोरा पीटने वाली है। योजनाओं के परिणामों की उसे कोई चिंता नहीं होती। वह प्रचार पाने के लिए खर्चीला उद्घाटन कराना पसंद करती है। मौजूदा जीएसटी कानून भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है। तमाम जटिलताओं भरा यह कानून एक तरह से इंस्पेक्टर राज की स्थापना करने जैसा है। 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की जीएसटी दरों के साथ यह बेहद उलझाऊ भी है। करीब 30 प्रतिशत वस्तुओं पर कर की अधिकतम 28 प्रतिशत की दर लगाना घोर अन्याय है।

 

दुनिया की किसी भी अर्थव्यवस्था में इतने भारीभरकम करों वाला जीएसटी कानून नहीं है। बांग्लादेश में यह 15 प्रतिशत, मलेशिया में छह प्रतिशत, सिंगापुर और थाईलैंड में सात प्रतिशत, जापान में आठ प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया में 10 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 14 प्रतिशत, ब्राजील, चीन आदि में 17 प्रतिशत है। जीएसटी कानून के तहत करदाताओं को 37 रिटर्न प्रतिवर्ष भरने होंगे और सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापार करने वालों को 1,332 रिटर्न भरने होंगे। छोटे और मध्यम कारोबारियों के लिए इतनी जटिल प्रक्रिया वाला यह कानून उनकी रोजी-रोटी पर कड़ा प्रहार करेगा। सरकार की तैयारियों का यह हाल है कि जिस जीएसटी नेटवर्क के तहत लगभग 350 करोड़ इनवॉइस हर महीने भेजे जाएंगे उसके लिए निविदा प्रक्रिया 15 जून को शुरू की गई। इसकी फाइनेंशियल बिड सात जुलाई को खुली। उसके परीक्षण के लिए अगस्त, 2017 से जुलाई, 2018 की अवधि निर्धारित की गई है। इतनी जटिल प्रक्रिया वाले कानून को लेकर सरकार इतनी उदासीन रही कि उसने व्यापारियों और करदाताओं को उससे सही से अवगत भी नहीं कराया। मलेशिया जैसे छोटे से देश में जहां छह प्रतिशत की दर से एकसमान जीएसटी है, वहां दो वर्षों तक छह हजार वर्कशॉप के माध्यम से सात लाख लोगों को कानूनी बारीकियों को समझाने के बाद ही उसे लागू किया गया।

 

मोदी सरकार में एक ओर किसानों को उपज के उचित दाम नहीं मिल पा रहे और दूसरी ओर जीएसटी उपज लागत को और बढ़ाने वाला है। खेती में काम आने वाले कीटनाशक, ट्रैक्टर के पुर्जों पर 28 प्रतिशत की दर से कर तय किया गया है। खाद पर पांच प्रतिशत कर लगाया गया है। किसान को इनपुट क्रेडिट का लाभ भी नहीं मिलेगा। वेयरहाउस, कोल्डस्टोरेज और उर्वरकों की ढुलाई इत्यादि पर भी 18 प्रतिशत कर लगाया गया है। जीएसटी से कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार देने वाला कपड़ा उद्योग भी गहरे संकट में फंस गया है। तमाम कपड़ा कारोबारी कारोबार बंद कर विरोध दर्ज करा रहे हैं। हस्तनिर्मित धागे पर 18 प्रतिशत कर लगाया है जिसका कुल मांग में 60 प्रतिशत योगदान है। इससे छोटे निर्माताओं का व्यापार लगभग समाप्त हो जाएगा और बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचेगा।

 

सरकार ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वस्तुओं को कम करों के दायरे में रखा है, ताकि यह संदेश जाए कि जीएसटी के बाद महंगाई कम हुई है। हकीकत यह है कि रोटी, कपड़ा और मकान पर सरकार ने बड़ा प्रहार किया है। शैंपू, वॉशिंग मशीन, क्रेडिट कार्ड के तहत भुगतान, बैंकिंग सेवाएं, बीमा प्रीमियम, हेलमेट, छोटी कारें, शैक्षणिक संस्थान, हॉस्पिटल, डायलिसिस और ब्लड टेस्ट के साथ वाहनों की ईएमआई, मिनरल वॉटर, सीमेंट इत्यादि पर 18 से 28 प्रतिशत कर लगाया गया है। सरकार द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि 81 प्रतिशत वस्तुओं को 18 प्रतिशत की कर श्रेणी में रखा गया है, जबकि सच्चाई यह है कि जो 43 प्रतिशत वस्तुएं 18 प्रतिशत कर दायरे में हैं, वे मूलत: फिनिश्ड गुड्स यानी अंतिम तैयार उत्पाद नहीं हैं। अधिकांश वस्तुएं 28 प्रतिशत कर श्रेणी वाली तैयार वस्तुओं के लिए काम आने वाली हैं। यह दावा भी गलत है कि पुरानी कर प्रक्रिया के अनुसार ही नई व्यवस्था में कर का निर्धारण किया गया है।

 

सरकार दावा कर रही है कि उसे जीएसटी से जीडीपी का 10.9 प्रतिशत सकल राजस्व प्राप्त होगा, अर्थात एक लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर हासिल होगा। अगर यह मान भी लें कि सरकार अधिक से अधिक लोगों को कर के दायरे में लाकर राजस्व बढ़ा रही है तो फिर करों की इतनी अधिक दर क्यों निर्धारित की गई है? मोदी सरकार ने डीजल-पेट्रोल को जीएसटी से बाहर रखकर भी जनता के साथ धोखा किया है। कांगे्रस सरकार के समय जब पेट्रोलियम उत्पादों पर सबसिडी का भार एक लाख 43 हजार 778 करोड़ रुपए था, तब उन पर करों के माध्यम से सरकार एक लाख 52 हजार 900 करोड़ रुपए प्राप्त करती थी। आज जब पेट्रोलियम उत्पादों पर सबसिडी का भार मात्र 27,571 करोड़ रुपए रह गया है, तब सरकार करों के रूप में 2,58,443 करोड़ रुपए वसूल रही है। क्या यह उचित नहीं था कि पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे में लाकर जनता को राहत प्रदान की जाती? जीएसटी की जीवनरेखा कही जाने वाली इनपुट क्रेडिट व्यवस्था की परिस्थितियां क्या होंगी, जब लगभग 350 करोड़ इनवॉइस हर महीने कारोबारियों द्वारा भेजे जाएंगे। इनवॉइस की जांच में अगर पूर्व में काटे गए कर में से एक रुपया भी माल बेचने वाले ने कर के रूप में कम भरा है तो माल खरीदने वाले व्यापारी को इनपुट क्रेडिट का लाभ नहीं मिलेगा। किसी भी देश में इनवॉइस जांच की इतनी जटिल व्यवस्था नहीं है। दक्षिण कोरिया, ब्राजील और चीन जैसे देशों ने इसे लागू करने के तुरंत बाद उससे तौबा कर यह प्रावधान समाप्त कर दिया। स्पष्ट है कि कांगे्रस सरकार ने वर्षों तक जिस सरल और पारदर्शी जीएसटी का प्रयास किया, उससे मौजूदा जीएसटी बिल्कुल मेल नहीं खाता। यह बड़े औद्योगिक घरानों के लिए तो फायदेमंद हो सकता है, लेकिन छोटे व मध्यम कारोबारियों के लिए यह बेहद निराशाजनक साबित होगा। समय रहते सरकार को सद्बुद्धि नहीं आई तो प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े छोटे-बड़े कारोबारी बर्बादी की राह पर होंगे। साथ ही आम जनता महंगाई से त्राहिमाम कर रही होगी।


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-privatisation-is-good-for-ill-unit-1246794


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