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न्यूज क्लिपिंग्स् | डिजिटल इकोनॉमी की सीमा-- डा. भरत झुनझुनवाला

डिजिटल इकोनॉमी की सीमा-- डा. भरत झुनझुनवाला

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published Published on Feb 14, 2017   modified Modified on Feb 14, 2017
हमारी अर्थव्यवस्था को सरकार शीघ्रातिशीघ्र डिजिटल इकाेनॉमी की ओर ले जाना चाहती है. नकद लेनदेन पर टैक्स आरोपित करने की योजना है. सरकार की सोच है कि नकद लेनदेन कम होने से समानांतर यानी ब्लैक इकाेनॉमी पर बंदिश लगेगी. परंतु तमाम विकसित देश डिजिटल इकाेनॉमी को कई शतक पूर्व अपना चुके हैं. वहां भी नकद का उपयोग ब्लैक इकाेनॉमी में जारी है. बैंक आॅफ इंगलैंड की 2015 की क्वाॅर्टरली रिव्यू में छपे एक पर्चे में कहा गया है कि बैंक द्वारा छापे गये नोट में से आधे ही लेनदेन के लिए उपयोग किये जाते हैं.


इस अध्ययन से स्पष्ट है कि विकसित देशों में कालेधन के संग्रह एवं लेनदेन के लिए नकद का उपयोग जारी रहता है. संभव है कि छोटे दुकानदारों द्वारा कच्चे पर्चे पर बिक्री करने में कुछ कमी आये, परंतु मुझे इसमें भी संदेह है.


पेमेंट डॉट काॅम द्वारा बनाये गये ग्लोबल कैश इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2014 में इंगलैंड के उपभोक्ताओं द्वारा 48 प्रतिशत लेनदेन नकद में किये गये. 24 प्रतिशत डेबिट कार्ड द्वारा किये गये. शेष आॅनलाइन अथवा अन्य डिजिटल माध्यम से किये गये. इस अध्ययन से पता चलता है कि विकसित देशों में नकद लेनदेन जीवित तथा सुदृढ़ है तथा छोटी रकम के लेनदेन के लिए लोग नकद को ही पसंद करते हैं. यदि विकसित देशों में लगभग आधे लेनदेन नकद में किये जा रहे हैं, तो भारत में इससे जादा ही होंगे, चूंकि अपने देश में नकद कारोबार से टैक्स की बचत होती है.


ब्रिटिश सरकार द्वरा कराये गये दूसरे अध्ययन में नकद के पसंद किये जाने का पहला कारण बताया गया है कि यह सस्ता पड़ता है. बैंक को डेबिट कार्ड जारी करने के लिए वार्षिक फीस नहीं देना होता है. दूसरा कारण कि छोटी रकम के लेनदेन को नकद में करना आसान होता है.


तीसरा कारण कि नकद के लेनदेन से लोगों के लिए अपने बजट को मैनेज करना आसान रहता है. पर्स में देख कर तुरंत समझ आ जाता है कि अभी और कितनी गुंजाइश है. डिजिटल इकाेनॉमी में अपने बजट को मैनेज करने के लिए अलग से रिकाॅर्ड रखना होगा कि कब कितना पेमेंट किया है और आगे कितना किया जा सकता है. यही बात अपने देश में भी लागू होती है. आम आदमी द्वारा किये गये छोटे-छोटे लेनदेन को नकद में करना सस्ता पड़ता है.


डिजिटल पेमेंट में तीन छुपे हुए खर्च होते हैं. उपभोक्ता को मोबाइल फोन खरीदना होता है. फोन का उपयोग बात करने के लिए किया जाये, तो भी खर्च का एक अंश डिजिटल पेमेंट के लिए किया गया माना जायेगा. दूसरा खर्च पेमेंट पोर्टल के पास जमा करायी गयी रकम पर ब्याज के नुकसान का है. यदि यह रकम आपके बैंक खाते में रहती, तो ब्याज आपको मिलता. तीसरा खर्च आपके समय का होता है. डिजिटल पेमेंट में सामनेवाले से पूछ कर उसका नंबर अपने मोबाइल में डालना होता है. पेमेंट करने के बाद रुक कर दुकानदार से पूछना होता है कि उसके खाते में रकम पहुंची या नहीं. ग्राहक तथा दुकानदार दोनों का समय इसमें जाया होता है. कभी-कभी गलत नंबर पर पैसा ट्रांसफर हो जाये, तो मुसीबत होती है. अतः छोटे उपभोक्ता के लिए डिजिटल पेमेंट हानिप्रद है. लेकिन, रिजर्व बैंक को नकदी नोट उपलब्ध कराने की बचत हो जाती है. मेरी गणित के अनुसार, नकदी नोट उपलब्ध कराने का खर्च 3 रुपये आता है. अतः छोटी रकम के लेनदेन में डिजिटल पेमेंट में सामान्य उपभोक्ता को 500 रुपये का नुकसान और रिजर्व बैंक को 3 रुपये का लाभ होता है. अर्थव्यवस्था को 497 रुपये का नुकसान होता है.


बड़े कारोबारी द्वारा 10 करोड़ रुपये का डिजिटल पेमेंट किया जाये, तो भी मोबाइल आदि का खर्च 500 रुपये ही आयेगा, चूंकि डिजिटल पेमेंट में 10 रुपये अथवा 10 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने में खर्च बराबर आता है.


लेकिन, 10 करोड़ के नकदी नोट उपलब्ध कराने में रिजर्व बैंक को 3,000 रुपये का खर्च वहन करना होगा, चूंकि इस लेनदेन के लिए ज्यादा संख्या में नोट उपलब्ध कराने होंगे. अतः डिजिटल पेमेंट से बड़े कारोबारी को 500 रुपये का नुकसान और रिजर्व बैंक को 3,000 रुपये का लाभ होगा. अर्थव्यवस्था को 2,500 रुपये का लाभ होगा.


वर्तमान में यह एक खुला प्रश्न है कि डिजिटल इकाेनॉमी से टैक्स वसूली बढ़ेगी या नहीं. स्पष्ट है कि डिजिटल पेमेंट छोटे रकम के लिए हानिप्रद और बड़ी रकम के लिए लाभप्रद है. यही कारण है कि इंगलैंड में सामान्य उपभोक्ताओं द्वारा 48 प्रतिशत लेनदेन नकद में किया जा रहा है.


इस पृष्ठभूमि में हम डिजिटल इकाेनॉमी की उपयुक्तता को समझ सकते हैं. बड़े तथा सफेद धन के लेनदेन के लिए डिजिटल इकाेनॉमी उपयुक्त है. छोटे लेनदेन के लिए डिजिटल इकाेनॉमी हानिप्रद है.



डिजिटल लेनदेन अपनाने के बावजूद कालेधन के लिए नकद का उपयोग जारी रहता है. अतः सामान्य लेनदेन के लिए हम डिजिटल इकाेनॉमी अपना कर अपने को गड्ढे में डालेंगे. काले धंधे के लिए नकद का उपयोग जारी रहेगा. भविष्य में उपभोक्ता को समझ आ जायेगा कि छोटी रकम के लिए डिजिटल लेनदेन उसके लिए घाटे का सौदा है और डिजिटल इकाेनॉमी स्वतः सिमट जायेगी.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/941553.html


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