Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | डूब जाते हैं बनैनिया जैसे समृद्ध गांव और राजनीति उफ तक नहीं करती

डूब जाते हैं बनैनिया जैसे समृद्ध गांव और राजनीति उफ तक नहीं करती

Share this article Share this article
published Published on Nov 1, 2015   modified Modified on Nov 1, 2015
महज पांच साल पहले कोसी नदी के किनारे एक खूबसूरत और समृद्ध गांव था बनैनिया. मिथिलांचल और कोसी के इलाकों को जोड़ने के लिए जब महासेतु बना, तो बनैनिया डूब गया. थोड़ी-सी प्रशासनिक सजगता इस गांव को बचा सकती थी. गुणानंद ठाकुर जैसे सांसद और मायानंद मिश्र जैसे बड़े साहित्यकार का यह गांव अब कोसी की धारा में समा गया है. 

गांव के लोग 22 अलग-अलग गांवों में रहते हैं. कोसी के इलाके में गांवों का नदी में समा जाना आम बात है. हर साल आधा दर्जन से अधिक गांव नदी में समा जाते. लोगों का न पुनर्वास होता है, न मुआवजे मिलता है. पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे ऐसे 50 हजार से अधिक विस्थापित परिवार बसे हैं. मगर इनकी परेशानी इस इलाके का राजनीतिक सवाल नहीं है. पुष्यमित्र की रिपोर्ट.

इस इलाके के लिए यह चुनाव रोचक है. कोसी पर महासेतु बन जाने से निर्मली विधानसभा के दोनों हिस्से इस बार जुड़ गये हैं. लोग इस विधानसभा को आजादी के बाद संभवत: पहली दफा एक इकाई के रूप में देख रहे हैं. 

निर्मली जाना और सरायगढ़ आना अब कुछ मिनटों का काम है, मगर यह खुशहाली हर किसी के लिए नहीं है. हजारों परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस खुशहाली की कीमत चुकायी है. उन्हें अपना घर, अपने खेत और अपना गांव तक गंवा देना पड़ा है.

ऐसे ही कुछ लोग भपटियाही प्राथमिक केंद्र के पड़ोस में स्थित राशन डीलर बदरी नारायण यादव के दरवाजे पर बैठे थे. वे आये तो राशन-किरासन लेने थे, मगर बैठ कर अपने गांव बनैनिया को याद कर रहे थे, जो साल 2010 में कोसी नदी की धारा में समा चुका था. यह गांव कभी पूरे कोसी इलाके की साहित्य और राजनीति की धुरी माना जाता था, मगर आज उसका अस्तित्व तक नहीं है. मो अहसान जो गांव के डूब जाने के बाद पूर्वी कोसी तटबंध पर आकर बस गये थे, कहते हैं, गुणानंद ठाकुर आज जिंदा होते तो गांव को डूबने नहीं देते.

गुणानंद ठाकुर कौन थे, इस सवाल का जवाब वहां मौजूद मनीष मनोहर ने दिया. बनैनिया उनका ननिहाल है. उन्होंने कहा, गुणानंद ठाकुर 60-70 के दशक के एक मशहूर राजनेता व सहरसा के सांसद थे. उन्हें अपने गांव से बहुत प्यार था. जब तक जिंदा रहे अपने गांव के सवालों पर राजनीतिक हस्तक्षेप करते रहे. उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मायानंद मिश्र भी इसी गांव के रहने वाले थे और उनकी किताब माटी के लोग, सोने की नैया. 

संभवत: कोसी नदी के आसपास बसे लोगों के जीवन पर लिखी गयी सबसे प्रामाणिक उपन्यास है. मगर वह जमाना बीत गया है, जब गांव के प्रभुत्वशाली लोग गांव से जुड़े रहते थे और गांव के हित अहित की चिंता करते थे. आज भी इस गांव के कई लोग काफी पावरफुल पोजीशन में हैं, मगर उनका गांव मिट गया, उन्होंने इसकी बिल्कुल परवाह नहीं की.

यह गांव क्यों मिट गया?

बदरी नारायण यादव कहते हैं, जब महासेतु बन रहा था तो उसे कोसी की धारा से बचाने के लिए एक गाइड बांध बनाया गया. उस गाइड बांध की डिजाइन ही कुछ ऐसी थी कि हमारे गांव का डूबना तय हो गया था. हमलोगों ने काफी संघर्ष किया, हर जगह अपनी बात लेकर गये और अनुरोध किया कि डिजाइन में थोड़ा सा बदलाव कर दें. इससे कम से कम आधा दर्जन गांव डूबने से बच जायेंगे. 
मगर हमारी बात किसी ने नहीं सुनी. ऐसे में हुआ यह कि जब कोसी और मिथिलांचल की पूरी आबादी दोनों इलाके के जुड़ जाने का जश्न मना रही थी, हम लोग जगह खोज रहे थे. कहां जायें, कहां बसें और फिर से अपनी जिंदगी शुरू करें. आज बनैनिया के लोग 22-23 अलग-अलग गांवों में जगह खोज कर बसे हैं. वे लोग हर महीने लंबी दूरी तय करके राशन लेने मेरे पास आते हैं. गांव का हाइ स्कूल भपिटयाही बाजार के मिडिल स्कूल के कैंपस में टीन के टप्पर में शुरू किया गया है. 

मिडिल स्कूल तो तटबंध पर ही चल रहा है. स्वास्थ्य उपकेंद्र बंद कर दिया गया है. मुखिया संगीता देवी तटबंध के किनारे घर बना कर रह रही है. पूरा पंचायत तितर-बितर हो गया है. बदरी जी याद करते हुए कहते हैं, 1660 बीघा का खेती का रकबा था हमारे गांव का. इतनी अच्छी खेती कि मजदूरों को भी 50-60 मन धान हो जाता था. अब सब डूब गया.

चुनाव में आपलोग यह सवाल उठा रहे हैं या नहीं? इस सवाल के जवाब में मो इजराइल अंसारी कहते हैं, गांव का एक नेता इस बार पप्पू जादव की पार्टी (जनाधिकार पार्टी) से चुनाव में खड़ा हुआ है. मगर ऊ भी बनैनिया या जो गांव डूब गये हैं, जिसके लोग विस्थापित हो गये हैं, उसको न्याय या राहत दिलाने या मुआवजा दिलाने के लिए बात नहीं करता. 

ई चुनाव भी हाय-फाय हो गया है, यहां कोई लोकल प्रोबलम पर बात नहीं करता. कोई आरक्षण पर बात करता है तो कोई गाय बचा रहा है, गाली-गलौज खूब हो रहा है. मगर हजारों परिवार इस विधानसभा में बेघर हो गये उस पर कोई बात नहीं करता.

मनीष मनोहर कहते हैं, दरअसल गांव का डूबना, विस्थापन और पुनर्वास कोसी के इलाके में कोई मुद्दा नहीं है. हर साल आधा दर्जन से अधिक गांव कहीं न कहीं कट कर कोसी में समा जाते हैं. इन्हें बचाने के नाम पर जल संसाधन विभाग के अभियंता खूब लूट पाट करते हैं, अरबों खर्च करते हैं. मगर वे लोग आज तक एक गांव बचा नहीं पाये हैं. गांव नदी में डूब जाता है. लोग तटबंध के किनारे शरण ले लेते हैं. एक झटके में लोग जमीन पर आ जाते हैं. 

इनका न पुनर्वास होता है, न मुआवजा मिलता है. अपने राज्य में अगलगी को आपदा माना जाता है, तूफान को आपदा माना जाता है, मगर नदी के कटाव से लोगों के बेघर हो जाने को आपदा नहीं माना जाता. न इनका पुनर्वास होता है, न मुआवजा मिलता है. हालांकि बनैनिया के लोग प्राकृतिक कारणों से नहीं पुल बनने के कारण बेघर हुए हैं. इन्हें तो हर हाल में मुआवजा मिलना चाहिये था.
मो फखरुद्दीन कहते हैं, पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे-किनारे यहां से कोपरिया तक चले जाइये. 60-70 किमी की लंबाई में हर जगह आपको लोग तटबंधों के किनारे झोपड़ी बना कर रहते हुए नजर आयेंगे. 

ये लोग नदी के कटाव के शिकार हुए हैं. बेघर होकर तटबंध पर बसना पड़ता है. कम से कम 40-50 हजार परिवार जरूर होंगे. ये तो वैसे लोग हैं जिनके पास दूसरा उपाय नहीं है. जिनके पास उपाय है, वे कहीं और जमीन खरीद कर किसी और गांव या शहर में बस जाते हैं. इनकी बात कौन करे.

बनैनिया गांव अब खत्म हो गया है. हम लोग जब तक जिंदा हैं, गांव का नाम ले लेते हैं. बच्चों को तो यह भी याद नहीं रहेगा कि उनका गांव कौन सा था. कहां था और काहे मिट गया.

http://www.prabhatkhabar.com/news/patna/story/585400.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close