Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | तपती धरती को चाहिए पर्यावरण रक्षा

तपती धरती को चाहिए पर्यावरण रक्षा

Share this article Share this article
published Published on Jun 18, 2010   modified Modified on Jun 18, 2010

नई दिल्ली [भारत डोगरा]। वैश्विक स्तर पर बढ़ते जा रहे तापमान के मूल्याकन से आसार नजर आ रहे हैं कि वर्ष 2010 रिकार्ड तोड़ गर्मी का साल साबित हो सकता है। भारत के एक बड़े क्षेत्र के लिए भी यह वर्ष रिकार्ड तोड़ गर्मी का वर्ष बनता जा रहा है। बीच में भीषण गर्मी से भले ही थोड़ी-बहुत राहत मिले, लेकिन कुल मिलाकर प्रवृत्ति बढ़ते तापमान की ओर है। अनेक शहर 48 डिग्री सेल्सियस का तापमान छू चूके हैं।

बादा और चित्रकूट [बुंदेलखंड] जैसे इलाकों में तो तापमान क्रमश: 50 व 51 तक भी पहुंच गया है। अनेक स्थानों से हाल के दिनों में जो समाचार मिले, वे इस समय के सामान्य तापमान से लगभग दो से 40 अधिकता के हैं। यह स्थिति जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, विदर्भ, उत्तरी कर्नाटक, तेलंगाना के एक बहुत बड़े क्षेत्र में देखी गई है।

एक ओर जहा लू और गर्मी के प्रकोप से बहुत-सी मौतें हुई हैं, वहीं अस्पतालों में लू और हीटस्ट्रोक के मरीजों की संख्या सामान्य वर्षो से कहीं अधिक दर्ज हो रही हैं। अधिक गर्मी की स्थिति वाले कारखानों में बड़ी संख्या में महिला मजदूरों के बेहोश हो जाने के समाचार मिले हैं।

कहीं बड़ी संख्या में मोर तो कहीं चमगादड़ व कहीं हिरन जैसे पशु-पक्षियों की मौत के दर्दनाक समाचार भी लगभग रोज ही आ रहे हैं। तेज गर्मी के साथ पानी के अभाव ने बहुत से पशु-पक्षियों के जीवन को ही खत्म कर दिया है तो लाखों गाववासियों को अपने गाव छोड़ने के लिए मजबूर भी किया है।

यह सब बहुत दर्दनाक तो है, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि आश्चर्यजनक है। जलवायु बदलाव व ग्लोबल वार्मिग के इस दौर के बारे में बहुत समय से चेतावनी मिली हुई थी कि तापमान बढ़ेगा और अन्य तरह से मौसम प्रतिकूल होगा। हाल के कुछ सप्ताहों में न केवल तपती धरती ने, बल्कि देश में जगह-जगह तेज आधियों, बिजली गिरने की घटनाओं व चक्रवाती तूफानों ने भी तबाही मचाई। उत्तर प्रदेश के एक बड़े क्षेत्र में आंधी का प्रकोप बहुत रहा तो जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी क्षेत्र में बाढ़ आ गई।

अत: अब स्थिति ऐसी नहीं है कि इस वर्ष बहुत तेज गर्मी रही है तो अगले वर्ष राहत की उम्मीद की जा सकती है। अब तो स्थिति यह है कि ग्रीन हाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन और कुछ अन्य कारणों से हम एक प्रतिकूल मौसम, जलवायु बदलाव या बढ़ते तापमान के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। हालाकि इस स्थिति की सभी पेचीदगियों को अभी समझा नहीं जा सका है, लेकिन ज्यादा आशंका तो यही है कि अब इस तरह के प्रतिकूल मौसम व बढ़ते तापमान के लिए तैयार रहना होगा। हा, इस बदलाव की रफ्तार या संकट की गंभीरता को अभी समय रहते जरूर कम किया जा सकता है।

विश्व स्तर पर जलवायु बदलाव का संकट कम करने के लिए फॉसिल ईधनों [विशेषकर पेट्रोल, तेल, कोयला] में कमी लाना, अनावश्यक उपभोग-उत्पादन को कम करना, जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करना, विषमता दूर करना व सादगी आधारित जीवन-पद्धति को अपनाना बहुत जरूरी है। अभी फिलहाल इन सभी मोर्चो पर प्रगति बहुत धीमी है और कहीं-कहीं तो हम विपरीत दिशा में जा रहे हैं [जैसे बढ़ती विषमता के मामले में]। इन सब विफलताओं की अभिव्यक्ति ग्रीन हाउस गैसों [विशेषकर कार्बन डाई आक्साइड] की असहनीय वृद्धि के आकड़ों में हो रही है।

कई विशेषज्ञ अब एक ऐसे 'टिपिंग प्वाइंट' की बात करते हैं, जिसके आगे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पहुंच गया तो फिर जलवायु बदलाव को नियंत्रित कर पाने की हमारी क्षमता ही समाप्त हो जाएगी। इस टिपिंग प्वाइंट के बहुत पास पहुंच जाने पर भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को असहनीय हद तक बढ़ाने वाली परियोजनाएं छोड़ी नहीं जा रही हैं। उदाहरण के लिए एलबर्टा [कनाडा] में तार सैंड [तेल या बिटुमेन मिली चिपचिपी मिट्टी] के बहुत बड़े पैमाने का खनन रोका नहीं जा रहा है, जबकि 'टिपिंग प्वाइंट' को क्रॉस करने में इसकी खतरनाक भूमिका की चेतावनियां दी जा चुकी हैं।

जहा एक ओर विश्व स्तर पर जलवायु बदलाव और ग्लोबल वार्मिग के संकट को नियंत्रित करने के लिए एक बहुत व्यापक प्रयास करना व प्राथमिकताओं को बदलना जरूरी है, वहीं तपती धरती के प्रकोप को कम करने के लिए गली-मोहल्ले, गाव या शहरी बस्ती के स्तर पर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। वैश्विक स्तर का जलवायु बदलाव हमारे-आपके प्रयास से दूर की बात हो सकती है, लेकिन अपने आसपास की आबोहवा या माइक्रो-क्लाइमेट को हम सुधारकर तेज गर्मी के दिनों की स्थिति को अपने व अन्य जीव-जंतुओं के लिए और सहनीय बना सकते हैं।

इसके लिए अपने आसपास जितना संभव हो सके, हरियाली को बचाना चाहिए और बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही पानी और पानी के स्त्रोतों को बचाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। इस वर्ष अनेक पशु-पक्षियों के प्यास से मरने के जहा से समाचार मिल रहे हैं, उनके साथ प्राय: तालाबों या अन्य जलस्त्रोतों के सूखने की खबरें भी जुड़ी हैं। जहा तालाब या उस तरह के खुले जलस्त्रोत नहीं हैं, वहा पशु-पक्षियों के लिए हौद या मिट्टी के बर्तन आदि में पानी रखना उपयोगी होगा।

सरकार की पेयजल उपलब्ध कराने की योजना के आकड़े अपनी जगह प्रभावशाली हैं, लेकिन इसके बावजूद अधिक संख्या में लोग क्यों प्यास से बेहाल हैं? वजह यह है कि सरकार ने नल लगवा दिए और पाइप लाइन तो बिछवा दी, लेकिन जिन जलस्त्रोतों से इन तक पानी पहुंचना था, वे ही सूखने लगे। अत: हर स्तर पर हरियाली बचाने, नदी बचाने, झरने व झील बचाने, तालाब व पोखरे बचाने के कार्यो को आपस में जोड़ना होगा और एक साथ आगे बढ़ाना होगा। साथ ही जल-वितरण में विषमता को कम करना होगा। सबसे पहली प्राथमिकता सभी मनुष्यों व जीव-जंतुओं की प्यास बुझाने को देनी होगी।

इसके साथ यह भी जरूरी है कि रैन बसेरे जैसे विभिन्न आश्रय स्थलों में जरूरी बदलाव कर उन्हें तपती दुपहरी में भी जरूरतमंदों के लिए उपलब्ध करवाया जाए। जगह-जगह पर लोगों के लिए साफ और ठंडा पेयजल उपलब्ध करवाना बहुत जरूरी है। जहा दिहाड़ी के मजदूर, रिक्शा चालक, ठेला चालक, बोझा उठाने वाले आदि मेहनतकश एकत्र होते हैं, वहा यह और भी जरूरी है। तीर्थस्थानों, यात्रा-मार्गो और अधिक भीड़ एकत्र होने के सब स्थानों पर साफ व पर्याप्त पेयजल सुनिश्चित करने को उच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पेयजल संकट से त्रस्त सब स्थानों को साफ पेयजल उपलब्ध करवाना भीषण गर्मी के कुछ सप्ताहों के लिए उच्चतम प्राथमिकता बन जानी चाहिए।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6501429.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close