Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | तुम रिजेक्टेड हो, तुम किसान हो-- अजय शर्मा

तुम रिजेक्टेड हो, तुम किसान हो-- अजय शर्मा

Share this article Share this article
published Published on Nov 2, 2015   modified Modified on Nov 2, 2015
वैसे भी तुम्हारी चीखें गांव के आसमान में खो जाने वाली हैं. हो सकता है कि लिखने से ये वहां तक पहुँच जाएं, जहां वो सुनने के बाद रिजेक्ट की जा सकें.
मुझे याद है, बस यही ख्याल तब मेरे मन में थे. तेलंगाना में लिंगमपल्ली टांडा गांव के स्कूल में योगेंद्र यादव एक तरफ़ किसानों के दुख अपनी नोटबुक में दर्ज कर रहे थे.
और उनसे कुछ दूर मैं इस बुज़ुर्ग औरत के सामने खड़ा था, जिसके दोनों हाथ मेरे सामने जुड़े थे. इनमें कुछ कागज़ थे और आँखों में आंसू.
'अकाल यात्रा' के दूसरे रिपोर्ताज यहां पढ़ें
उन्हें लगा था कि शायद मैं सरकार का आदमी हूँ जो उनकी मदद कर सकता है. मैं उनसे पूछ रहा था कि आख़िर उनके बेटे ने अपनी पत्नी और नन्हे बच्चे छोड़कर ख़ुदकुशी क्यों की.
रत्नावा रोते हुए बता रही थीं कि उनका इकलौता बेटा महाजी झाड़ (दवा) पीकर मर गया. पिछले साल और फिर इस साल खेती अच्छी नहीं हुई थी. तीन लाख रुपये का क़र्ज़ हो गया था.

 

रत्नावा के बेटे के पास दो एकड़ 27 कुंटे ज़मीन है, मगर बेकार.
वह बताती हैं, ''मेरा खेत सूख गया, मकई (मक्का) डाले तो सूख गया. पानी नहीं आया. खेत में कुछ नहीं तो बैल को खाने को भी नहीं है. खेत में पानी के लिए तीन बार बोर लगाया, दो बार बोर फेल हो गए. क्या करूं समझ नहीं आ रहा है. मेरे पोता-पोती स्कूल में पढ़ते हैं. मेरा मर्द भी गया और बेटा भी गया.''
रत्नावा का पोता 7 साल और पोती 5 साल की है. घर में बहू भी है. मगर घर की ज़िम्मेदारी अब रत्नावा के ऊपर है. कहती हैं, ''घर का खर्चा भी नहीं चल रहा है. मज़दूरी कर-करके पोता-पोती को खिला रही हूं. कैसे करूं.''
रत्नावा के हाथ में मौजूद तहसीलदार के कागज़ तसदीक करते हैं कि 28 साल के लंबाडी हाज्या ने 4 अक्टूबर 2014 को कीटनाशक खाकर जान दी और यह किसान ख़ुदकुशी का मामला है. एक साल हो चुके हैं, मदद नहीं मिली है और अगर मिल भी गई तो क्या.

 

 

लातूर ज़िले के गांव हासेगांव वाडी में मैं कल्पना साठे से उनके घर में मिला. उनके पति प्रकाश भी सूखे का शिकार बने. उन्होंने साहूकार से दो लाख रुपये उठाए थे, ताकि ज्वार की खेती को पानी दे सकें.
घर वालों को इस क़र्ज़ का पता नहीं था.
24 जुलाई 2015 को वह सुबह ही घर से निकले और सीधे खेत में चले गए. वहां आम के पेड़ पर उन्होंने रस्सी डाली और लटक गए.

 

 

कल्पना को किसी मदद की उम्मीद नहीं क्योंकि जिस ज़मीन पर उनके पति खेती करते थे वह उनके ससुर के नाम है और सरकार सिर्फ़ ऐसे केसों में ही सहायता जारी करती है जिनमें ज़मीन किसान के नाम हो.
उनके दो छोटे बच्चे हैं, चार और छह साल के. कल्पना की चिंता यह है कि वह अकेले कैसे उन्हें पालेंगी, वह भी तब जब खेती करने वाला ही चला गया.
उन्होंने मुझे बताया, ''हमने मुख्यमंत्री और सरकार को चिट्ठी लिखी है. सिर्फ़ ज़मीन पर उनका नाम नहीं है. लेकिन हमें कंपेंसेशन मिलना चाहिए. मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं.''

 

 

उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के गांव बिरारी में मुझे सूखे और क़र्ज़ का एक और शिकार मिला.
विमलेश के पति को बारिश न होने से जब आलू की खेती में घाटा हुआ तो उन्होंने सोचा कि खेती छोड़कर डेयरी का काम कर लेते हैं. मगर यह फ़ैसला भी उन्हें काफ़ी महंगा पड़ा.

 

विमलेश के देवर मेघनाद बताते हैं, ''भइया दूध की गाड़ी चलाते थे. बोले कि हमें लंबा घाटा पड़ गया है. खेत बेचने पड़ेंगे. हमने भी कहा कि खेत तो बेचना ही पड़ेगा. रोज़ कर्ज़ा मांगने वाले आते थे तो खेत बेच दिया. दो-तीन दिन तक उन्होंने गाड़ी नहीं चलाई क्योंकि लोग पैसे मांगने आते थे. जिस दिन यह घटना हुई उस दिन वह यह कहकर गए कि लोग आएं तो कह देना कि बाहर गए हैं. कुछ लोग आए और भाभी से पूछा कि भइया कहां गए तो भाभी ने वही जवाब दिया. उसी दिन भइया ने घर में ख़ुदकुशी कर ली.''

 

विमलेश ने बताया कि कोई कहता था कि चार हज़ार रुपये का क़र्ज़ा है तो कोई 50 हज़ार बताता था.
''मुझे बीमारी के कारण उन्होंने नहीं बताया क्योंकि मुझे दौरे पड़ते हैं. उस दिन बच्चे पापा को रोटी के लिए बुलाने आए तो देखा कि उन्होंने फांसी लगा ली थी.''
जब मैंने विमलेश से पूछा कि क्या इस घटना के बाद भी क़र्ज़ मांगने वाले आए हैं तो उनका जवाब था, ''अभी नहीं आए हैं, लेकिन अब आएंगे.''

 

 

कपास क़र्ज़ से निजात दिला सकती है, रेवाड़ी के बारली खुर्द गांव के मुकेश को यह भ्रम था. उन्होंने पहली बार कपास बोई थी. बारिश नहीं हुई तो उनकी कपास में कीड़ा लग गया.
कपास का डोडा बना नहीं. हालांकि उसकी बुआई, सिंचाई और दूसरे कामों में वह काफ़ी पैसा झोंक चुके थे.
मुकेश की पत्नी सविता कहती हैं, ''नवंबर में बेटी की शादी की थी जिसके लिए रिश्तेदारी से कर्ज़ा लिया था. उसे उतारने के लिए कपास बोई थी. सूखा और बारिश न होने से कर्ज़ा हो गया. जहां 40-50 हजार की उम्मीद थी वहां 2000 रुपये की ही कपास हो पाई. डिप्रेशन में आ गए. कंपनी में नौकरी की पर उसने भी निकाल दिया.''

 

 

गांव वाले कहते हैं कि मुकेश ज़िंदादिल किसान थे और मामूली बातों से परेशान नहीं होते थे. जिस दिन उन्होंने ख़ुदकुशी की, उसी दिन कंपनी की ओर से उनके खाते में 10-12 हज़ार रुपये आए थे. जिससे वह कुछ कर्ज़ चुकाने की सोच रहे थे और इसी ख्याल से घर से पासबुक लेकर बैंक गए लेकिन बैंक नहीं पहुँचे. बाद में गांव में एक जगह उनकी बाइक, चप्पलें और लाश मिली.
कपास से पहले मुकेश बाजरा और गेहूँ बोते रहे थे. कपास उनके लिए मौत की खेती साबित हुई.

 


http://www.bbc.com/hindi/india/2015/10/151019_drought_series_farmers_suicides_aj


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close