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न्यूज क्लिपिंग्स् | दालों की खेती पर नहीं, आयात पर बढ़ाया खर्च

दालों की खेती पर नहीं, आयात पर बढ़ाया खर्च

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published Published on Jun 15, 2010   modified Modified on Jun 15, 2010

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। दालों के आयात के लिए 5000 करोड़ रुपये और दलहन खेती के लिए औसतन सालाना केवल 500 करोड़ रुपये। समझा जा सकता है कि दालों की पैदावार क्यों नहीं बढ़ रही है। पिछले चार सालों में सरकार ने जितना धन दलहन की खेती के प्रोत्साहन के लिए दिया है, उससे दोगुना हर साल दालों के आयात पर खर्च होता है। जब खेती बेहतर करने में निवेश ही नहीं है तो केवल समर्थन मूल्य बढ़ाने से किसानों को कितना प्रोत्साहन मिलेगा।

बीते दो साल के दौरान दालों को लेकर सरकार की आंख खुली है। दलहन गांव, पल्स प्रमोशन प्रोग्राम और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसी योजनाएं शुरू हुईं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन [एनएफएसएम] के तहत दलहन खेती का रकबा अगले दो सालों में 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य है। इस मिशन के लिए 1,000 ब्लॉकों को चयनित किया गया है, लेकिन यह सब करते करते काफी देर हो गई है। दलहन का मौजूदा रकबा 232 लाख हेक्टेयर है।

अरहर, मटर, चना, उड़द, मूंग और मसूर जैसी सभी प्रमुख दालों का आयात हर साल बढ़ रहा है। इनमें सर्वाधिक 10 लाख टन मटर का आयात किया जाता है। जिस पर हर साल लगभग 1,500 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च होती है। जबकि अन्य दालों के आयात पर 3,000 से 3,500 करोड़ रुपये का सालाना खर्च आता है। इसकी तुलना में दलहन खेती के लिए सरकार ने पिछले चार वर्षो में केवल पौने दो हजार करोड़ का आवंटन किया है।

दलहन से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि दालों की खेती की असल मुश्किलों की तरफ सरकार ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। खेती के लिए उन्नत प्रजाति के बीज, उचित खाद व कीटनाशकों की जरूरत को पूरा नहीं किया गया। इसके अलावा दलहन खेती के प्रति किसानों में जागरूकता का अभाव भी इसके आड़े आया।

चालू वित्त वर्ष 2010-11 में ही दलहन विकास की योजनाओं में 837 करोड़ रुपये के निवेश का प्रावधान किया गया है। इसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मैक्रो मैनेजमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल स्कीम और पल्स प्रमोशन प्रोग्राम चलाया जा रहा है। चालू वित्त वर्ष में ही केंद्र सरकार ने दलहन खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसान संगठनों की मांग पर उन्हें उन्नत प्रजाति के बीज उपलब्ध कराने के लिए 60 हजार गांवों को दलहन बीज गांव के रूप में विकसित करने का फैसला किया है। इसके लिए 300 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_6493598.html


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