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न्यूज क्लिपिंग्स् | दिल्ली-मुंबई के करोड़पति किसान- राजीव रंजन झा

दिल्ली-मुंबई के करोड़पति किसान- राजीव रंजन झा

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published Published on Mar 21, 2016   modified Modified on Mar 21, 2016
बीते मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कह कर एक राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी, कि सरकार कृषि आय के नाम पर कर योग्य आय छिपाये जाने की जांच कर रही है और अगर इस मामले में ऐसा करनेवालों के नाम सामने आते हैं तो राजनीतिक उत्पीड़न का आरोप न लगाया जाये़ उन्होंने संकेत दिया कि इस संबंध में 'कई महत्वपूर्ण व्यक्ति' संलिप्त हो सकते हैं, जिनकी जांच की जा रही है़ दरअसल भारत में कृषि से होने वाली आय को करमुक्त रखा गया है़ किसान को भारत में अन्नदाता के रूप में देखा जाता है और इसीलिए जब कभी यह बात छिड़ती है कि कृषि को भी आयकर के दायरे में लाया जाये, तो इस मुद्दे पर भावनात्मक लहर उफान लेने लगती है़ अन्नदाता पर टैक्स लगाने की बात? महापाप! दूसरी बात यह कही जाने लगती है कि किसान इतनी मुश्किल से तो चार पैसे कमाता है, उस पर भी आय कर लगाना जुल्म ही होगा़ लेकिन जो बस चार पैसे कमाता हो उस पर आय कर नहीं लगा करता, चाहे वह किसी भी चीज से कमाता हो़ आय कर उसी पर लगता है, जो तय सीमा से ज्यादा कमाता है़ कृषि पर आय कर लगाने की जब भी चर्चा छिड़ी है तो यही कहा गया है कि अमीर किसानों पर कर लगे, जिसका साफ मतलब यह होता है कि सामान्य रूप से आयकर छूट की जो सीमा रहती है, उससे भी कहीं और ऊपर तक की कृषि आय को करमुक्त रखने के बाद ही ज्यादा बड़ी कृषि आय वालों पर कर लगाया जाये़ मगर उस पर भी हायतौबा मचने लगती है़ अब देखिए कि इस हायतौबा का फायदा कौन लोग उठाते हैं.

खबरों में आ रहा है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने एक आंतरिक पत्र में अपने अधिकारियों से कहा है कि जिन करदाताओं ने अपने रिटर्न में एक करोड़ रुपये से अधिक की कृषि आय का दावा किया हो, उस दावे की सत्यता की जांच की जाये़ बताया जा रहा है कि अप्रैल 2010 से मार्च 2013 तक की अवधि में काफी बड़ी कृषि आय के दावों की जांच होगी़ इन तीन वर्षों की अवधि में ऐसे 1080 मामले बताये जा रहे हैं. वहीं अगर अप्रैल 2006 से मार्च 2015 तक के नौ वर्षों की अवधि ली जाये तो एक करोड़ रुपये से अधिक की कृषि आय का दावा करने वाले करदाताओं की संख्या 2,746 बतायी गयी है़ अब मजेदार बात देखिए कि ये करोड़पति किसान कहां रहते हैं! ये लोग देश के कृषि-प्रधान ग्रामीण इलाकों में दूर-दूर तक फैले खेतों के बीच नहीं, बल्कि बेंगलूरु, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे, चेन्नई और हैदराबाद जैसे महानगरों में रहते हैं! इस बारे में पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की गयी है, जिसमें संदेह जताया गया है कि कर-चोरी के लिए अन्य तरीकों से अर्जित आय को कृषि आय बताया जा रहा है़.

अब इस बारे में तत्काल आयी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं बड़ी दिलचस्प हैं. गौरतलब है कि राज्य सभा में यह मसला शरद यादव और मायावती जैसे विपक्षी सदस्यों ने ही उठाया, पर मामले में सरकार के बदले कांग्रेस रक्षात्मक नजर आयी़ जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव एक रिपोर्ट का हवाला दे कर कहा कि 2,000 लाख करोड़ रुपये की आय को कृषि आय के रूप में छिपाया गया है़ शरद यादव ने खुद जानकारी दी कि उनके गांव में ही कई व्यापारी कृषि के नाम पर कर बचाते हैं. बसपा नेता मायावती ने उच्चस्तरीय जांच की मांग कर दी और ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए कहा जो कृषि के नाम पर काला धन संचित कर रहे हैं. मगर दूसरी ओर दिग्विजय सिंह और राज्य सभा में कांग्रेस के अन्य सदस्यों को यह चर्चा चिढ़ा गयी. दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि वित्त मंत्री सदन को भ्रमित कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह ने कहा कि 'हमें धमकी मत दीजिए़' कमाल है, अगर बात कृषि के नाम पर कर चोरी करने वालों की हो रही थी तो दिग्विजय सिंह को यह बात कांग्रेस के लिए धमकी सरीखी क्यों लगी? क्या यह मुद्दा उठानेवाले शरद यादव ने कांग्रेस का नाम लिया? क्या अरुण जेटली ने कोई संकेत दिया कि जिन महत्वपूर्ण लोगों की बात वे कर रहे हैं, वे कांग्रेस से संबंधित हैं? फिर दिग्विजय सिंह को उनकी यह बात कांग्रेस के लिए ही धमकी क्यों लगी? यह ठीक है कि वित्त मंत्री ने इसमें राजनीतिक उत्पीड़न नहीं देखने की बात कही, यानी जांच के घेरे में ऐसे लोग हो सकते हैं जिनका राजनीति से लेना-देना है़ पर यह बात शरद यादव को, मायावती को, या उसी मुद्दे पर चर्चा में शामिल सपा के राम गोपाल यादव को अपने लिए धमकी की तरह क्यों नहीं लगी? केवल कांग्रेस ने ही इसे अपने लिए धमकी की तरह क्यों देखा?

 

इस बात से स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार और काला धन से जुड़े मामले हमेशा कांग्रेस की ही दुखती रग बनते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार दूसरे दलों में नहीं पसरा है़ मगर संस्थागत रूप से कांग्रेस ही इसकी पर्याय बनती हुई दिखती है और भ्रष्टाचार या काले धन के विरोध को वह खुद ही अपने सीने पर झेलने लग जाती है़ हालांकि रामगोपाल यादव ने यह अंदेशा जताया कि सरकार कृषि आय के नाम पर कर-चोरी के मामलों को बहाना बना कर कृषि को आय कर के दायरे में लाने का प्रयास कर सकती है, पर वित्त मंत्री ने फौरन ही इस पर सफाई भी दे दी़ उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि कृषि आय पर कर लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है़ लेकिन अगर कोई गैर-कृषि आय को कृषि आय दिखा कर गलतबयानी करे तो उसकी जांच होगी़ वित्त मंत्री की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक है़ अभी-अभी अपने बजट में उन्होंने केंद्र सरकार के लिए कृषि-हितैषी की छवि अर्जित करने का प्रयास किया है़ ऐसे समय में वे कृषि पर आय कर लगाने की अगर चर्चा भी छेड़ेंगे तो एक करोड़ रुपये से ज्यादा की कृषि आय दिखाने वाले हजार दो हजार 'करोड़पति किसान' इस सरकार को किसान-विरोधी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं रख छोड़ेंगे़ जो किसान साल में लाख रुपये की कृषि आय के लिए भी तरसता हो, वह आंदोलित हो जायेगा कि करोड़पति किसानों पर टैक्स लगाने की बात हो रही है़ इसलिए अभी केवल बेंगलूरु, दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में कागजों पर कृषि आय की फसल उगाने वालों की ही नकेल कसी जा सके तो यह अपने-आप में एक बड़ा कदम होगा़


राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/741952.html


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