Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | दिल्ली में सरकारों का छाया-युद्ध- विकास नारायण राय

दिल्ली में सरकारों का छाया-युद्ध- विकास नारायण राय

Share this article Share this article
published Published on Aug 10, 2015   modified Modified on Aug 10, 2015
अगर विज्ञापनों के बूते संभव होता तो दिल्ली से अब तक भ्रष्टाचार का नामो-निशान मिट चुका होता और इस महानगर की स्त्रियां पूरी तरह सुरक्षित हो गई होतीं। इस संदर्भ में दिल्ली की केजरीवाल सरकार और पुलिस आयुक्त बस्सी का मीडिया धरातल पर चल रहा प्रतिस्पर्धात्मक अभियान जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है। उनके तरकश से राजधानी के राजनीतिक छाया-युद्ध में चलाए जा रहे तीरों का संबंध परस्पर अविश्वास से है, न कि दिल्लीवासियों में विश्वास भरने से।
आजकल दिल्ली पुलिस तिपहिया वाहनों से ‘उगाही' करने से खास परहेज कर रही है; उसके जवानों में ‘आप' के स्टिंग आॅपरेशन के निशाने पर आने का डर समा गया है। बदले में उन्हें भी, ट्रैफिक नियम का जरा-सा भी उल्लंघन करते पकड़े गए घोषित आप समर्थक तिपहिया चालकों पर रत्ती भर रियायत नहीं करने की अघोषित नीति पर आमादा देखा जा सकता है। नहीं, यह अरविंद केजरीवाल के दिल्ली पुलिस को ठुल्ला कहने से नहीं शुरू हुआ। न ही दिल्ली सरकार का दिल्ली पुलिस के सीधे संचालन पर आमादा दिखना इतनी इकतरफा कवायद है। दरअसल, दिल्ली पुलिस भी सत्ता-राजनीति के टकराव के इस खेल में कम टक्कर देती नहीं दीखती।
दिल्ली सरकार के पांच सौ छब्बीस करोड़ के असंतुलित विज्ञापन बजट की आक्रामक गहमागहमी में दिल्ली पुलिस के अपने भ्रष्टाचार और स्त्री-सुरक्षा संबंधी विज्ञापनों को नहीं भूलना चाहिए। मुख्यत: रेडियो और प्रिंट मीडिया तक सीमित इन विज्ञापनों में उनकी जो बेबाकी झलकती है वह विधानसभा चुनाव-पूर्व से चली आ रही ‘आप' से होड़ का नतीजा लगती है। यहां तक कि पुलिस के इन विज्ञापनों में आम जनता से उन कमाऊ पुलिसिया हथकंडों के विरुद्ध रिपोर्ट करने की भी खुली अपील है, जिनसे दिल्लीवासियों का रोजाना वास्ता पड़ता रहा है।
मसलन, निर्माण कार्य में पहली र्इंट रखते ही, सड़क पर वाहन चालक की अचानक धर-पकड़ से, लाइसेंस या सत्यापन की प्रक्रिया में, आपराधिक शिकायतों के निपटान में, रेहड़ी-पटरी वालों और सड़कों पर अतिक्रमण के जरिए, अवैध धंधों को प्रश्रय देकर आदि। हालांकि दिल्लीवासी यह समझने में असमर्थ हैं कि जब भ्रष्टाचार का यह खेल इतना खुले रूप से विज्ञापित किया जा रहा है, तो इसे खुद पुलिस द्वारा रोका क्यों नहीं जा सकता।
तो भी दिल्ली पुलिस ने आयुक्त बस्सी के कार्यकाल में पिछले दो वर्षों से मुकदमे दर्ज करने में निश्चित रूप से स्वागतयोग्य तत्परता दिखाई है, हालांकि अब भी उनके थानों-चौकियों में लोगों को इस या उस बहाने से टरकाए जाने की शिकायतें समाप्त नहीं हुई हैं। इस बीच उन्होंने अपने मानव संसाधन को लिंग-संवेदी बनाने में व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की, बेशक अधूरे और जल्दबाजी भरे पाठ्यक्रमों के सहारे, जरूरी पहल भी की है। जाहिर है, इसमें उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से अधिक अड़ंगेबाजी नहीं मिली होगी।
खासकर, पुलिस में दर्ज हुए गंभीर अपराधों के आंकड़ों को लेकर सरकारें बहुत संवेदनशील होती हैं और तमाम पुलिस विभागों में येन-केन-प्रकारेण आंकड़ों में हेरा-फेरी कर अपराध संख्या कम दिखाने पर जोर रहता है। बस्सी ने पेशेवर रूप से सही नीति अपनाने की हिम्मत दिखाई है- वस्तुस्थिति को यथासंभव प्रतिबिंबित करना अपराध नियंत्रण में पहला ठोस कदम होगा। बेशक, यह अपने आप में पर्याप्त न भी हो, पर केजरीवाल के नीतिकारों ने उल्टा इसे बढ़ते अपराध के ग्राफ के रूप में देखने पर जोर दिया है न कि अपराधों से निपटने की जरूरी पहल के रूप में।
इसके बरक्स अगर दिल्ली सरकार के अपने आत्ममुग्ध विज्ञापनों को सुनिए तो लगेगा जैसे भ्रष्टाचार और स्त्री-सुरक्षा जैसे मुद्दे महज एक-आयामी शैतान सरीखे बिंब हैं। और जैसे इनसे छुटकारा दिलाने के उपाय भी एक-आयामी ही होंगे। क्या आश्चर्य कि इन मोर्चों पर उनकी सफलता के दावे भी एक-आयामी ही रहे हैं- उन्होंने एसीबी (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) की मार्फत पैंतीस भ्रष्टाचारी, सोचिए हजारों में एक-दो नहीं, पूरे पैंतीस, पकड़ लिए और तमाम बसों में सुरक्षा मार्शल तैनात कर दिए! बस अब किसी तरह उन्हें दिल्ली पुलिस और मिल जाए, बस किसी तरह महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर उनका अपना विश्वासपात्र आसीन हो जाए! ये हैं उनके उपाय।
एक जमाने में वे इसी तर्ज पर लोकपाल को हर प्रशासनिक मर्ज की दवा बना कर बेच चुके हैं। अब योगेंद्र यादव-प्रशांत भूषण गुट को पार्टी से निकालने के साथ शायद उन्हें इस दवा से एलर्जी का आभास हो चला है।
इस एक-आयामी नजरिए का ही असर है कि केजरीवाल सरकार के इस नए दौर में दिल्ली पुलिस का नियंत्रण केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली सरकार को सौंपने की आप की राजनीतिक मांग विडंबनात्मक सीमाओं में प्रवेश कर चुकी है। पुलिस कमिश्नर बस्सी के अनुसार दिल्ली पुलिस का नियंत्रण दिल्ली सरकार के हाथ में जाना दुर्भाग्यपूर्ण होगा, जबकि केजरीवाल के अनुसार पुलिस के ‘ठुल्लों' के बेलगाम रहने से ही भ्रष्टाचार और स्त्री-सुरक्षा के मोर्चों पर उनकी प्रगति नहीं हो पा रही।
एक ओर पुलिस तंत्र है, जो स्वयं भ्रष्ट होने के बावजूद, केंद्र की शह पर, आप के मंत्रियों और विधायकों के आपराधिक कृत्यों पर शिद्दत से कानूनी कार्यवाही करने में आगे नजर आ रहा है। दूसरी ओर, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से राजनीतिक परिदृश्य पर उभरी ‘आप' की न सिर्फ आंतरिक लोकपाल की व्यवस्था पार्टी के आपसी कलह में चरमरा गई है, बल्कि बाह्य लोकपाल का सवाल भी आज शायद ही उन्हें कहीं से कुरेदता दिखे। यहां तक कि स्त्री सुरक्षा जैसे निरपेक्ष मुद्दे पर भी नहीं छिपाया जा रहा कि दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच सहयोग की कोई गुंजाइश बची है।
जहां दोनों पक्ष तनातनी के इन दो स्वाभाविक सक्रिय मोर्चों- भ्रष्टाचार और स्त्री सुरक्षा- से एक-दूसरे पर शक्ति भर वार करते जा रहे हैं, विडंबना देखिए कि इन मोर्चों पर दिल्ली शासन की संबंधित निगरानी एजेंसियां- एसीबी और महिला आयोग- लगभग ठप्प कर दी गई हैं। दिल्ली पुलिस से इस सघन रस्साकशी में केजरीवाल सरकार जहां राजनीतिक रूप से बेहद मुखर रही है, पुलिस आयुक्त बस्सी के वार सामरिक रूप से अधिक प्रखर पड़ते लगते हैं। केंद्र की भाजपा सरकार के लिए इससे अधिक सुविधा की स्थिति नहीं हो सकती। सहज ही आभास होता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पिटी भाजपा और अभूतपूर्व बहुमत पाने वाली आप के बीच एक छाया-युद्ध चल रहा है, जिसमें भाजपा ने दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को आगे किया हुआ है, जबकि आप ने दिल्ली पुलिस को निशाने पर ले रखा है।
कह सकते हैं कि फिलहाल छाया-युद्ध दोनों पक्षों को रास आ रहा है। जहां तक आप सरकार का सवाल है, उसने दिल्ली पुलिस पर नियंत्रण के पुराने चले आ रहे दावे की आड़ में भ्रष्टाचार और स्त्री सुरक्षा, जो आप के दो मुख्य मुद्दों के रूप में शुरू से स्थापित रहे हैं, को सफलतापूर्वक राजनीतिक फोकस में बनाए रखा है। इसकी बदौलत उन्हें लगातार कानून-व्यवस्था बिगड़ने के नाम पर केंद्र सरकार को जवाबदेही के कठघरे में रखने का अवसर भी मिल रहा है। उधर मोदी सरकार आप के विधायकों और मंत्रियों को दिल्ली पुलिस की मार्फत भ्रष्टाचार में लिप्त ही नहीं, स्त्री-विरोधी दिखाने पर भी आमादा है। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के इशारे पर आप सरकार की तमाम प्रशासनिक नियुक्तियों पर उपराज्यपाल के वीटो से केजरीवाल और उनकी टीम को अक्षम ठहराने का माहौल भी बनाया जा रहा है।
दरअसल, जमीनी सच्चाई यह है कि छाया-युद्ध के चलते ये दोनों महत्त्वपूर्ण मुद्दे प्रशासनिक रूप से दरकिनार पड़े हैं। उलटे, दिलचस्प छाया-युद्ध परिदृश्य को घनीभूत करने के पीछे इन मुद्दों की उतनी नहीं, जितनी इन्हें संचालित करने वाले व्यक्तियों की छाया दिखती है। विज्ञापनों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही नहीं, पुलिस कमिश्नर बस्सी भी दिल्ली की जनता के प्रति सजग रहना चाहते हैं। यहां तक कि उपराज्यपाल नजीब जंग अपने कार्यकलापों में बेशक रीढ़-विहीन नजर आएं, संशय-विहीन नहीं कहे जा सकते। अन्यथा आरोप-प्रत्यारोप की वर्तमान कवायद में अबूझ क्या है? कौन नहीं जानता कि दिल्ली की आप सरकार नौसिखियों की सरकार है। न ही दिल्ली पुलिस के जाने-पहचाने भ्रष्ट हथकंडे किसी को आश्चर्य में डालते हैं। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली पुलिस के नियंत्रण की मौजूदा रस्साकशी में उपराज्यपाल का इस्तेमाल भी राजनीतिक स्वार्थों के पुराने समय से चले आ रहे दांव-पेच की बानगी ही तो है।
दिल्ली की जनता की दिलचस्पी ऐसे उदाहरणों में नहीं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों- पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्त्री सुरक्षा की भरपाई और सरकारी तंत्र की लूट-खसोट से छुटकारे में है। इन मसलों पर एक भी सफल मॉडल सामने नहीं आ सका है।
चंद माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने ‘आप' को सत्तर में से सड़सठ सीटें देकर इतिहास रचा था। क्या इसने केजरीवाल की निरंकुशता को बेलगाम कर दिया और पार्टी के अंदर लगभग व्यक्ति पूजा जैसा माहौल बना दिया? विरोधियों का कहना है कि केजरीवाल का ‘हमने इतिहास बनाया' जैसी विज्ञापनबाजी के दम पर शासन चलाने का दंभ इसी माहौल की उपज है।
उनकी सरकार ने अभूतपूर्व रूप से शिक्षा का बजट दोगुना और स्वास्थ्य का डेढ़ गुना जरूर किया है; उन्होंने बजट-पूर्व लोगों के बीच जाकर व्यापक विमर्श के लोकतांत्रिक आयोजनों जैसी तत्परता भी दिखाई है; निश्चित रूप से वे भाजपा और कांग्रेस से नीयत के धरातल पर भी अलग नजर आते हैं। पर क्या वे वास्तविक जन-युद्ध में उतरेंगे या बस राजनीतिक छाया-युद्ध लड़ते रहेंगे?

- See more at: http://www.jansatta.com/politics/arvind-kejriwal-kejriwal-government-delhi-government-kejriwal-ad-aap/35396/#sthash.pAvXnPlq.dpuf


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close