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न्यूज क्लिपिंग्स् | दुनिया से जुड़ने का हमारा अधिकार -- हरजिंदर

दुनिया से जुड़ने का हमारा अधिकार -- हरजिंदर

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published Published on Dec 1, 2017   modified Modified on Dec 1, 2017
मान लीजिए, आपकी तबीयत खराब है और आप डॉक्टर के पास जाने के लिए टैक्सी बुलाते हैं। टैक्सी वाला बताता है कि अगर आप फलां डॉक्टर के पास जाते हैं, तो आपको टैक्सी का इतना किराया देना पड़ेगा और अगर दूसरे के पास जाते हैं, तो किराया कुछ ज्यादा लगेगा। उसकी लिस्ट में एक ऐसे डॉक्टर का नाम भी है, जिसके पास अगर आप जाएं, तो वह आपको मुफ्त ही ले जाएगा। इस ‘मुफ्त' का अर्थ कोई भी समझ सकता है। जाहिर है कि अगर आप उस डॉक्टर के पास गए, तो टैक्सी वाले को किराया आप नहीं वह डॉक्टर देगा, जो इसकी भरपाई आपकी फीस से कर लेगा। बीमारी के वक्त सेहत के फैसले को टैक्सी वाले और डॉक्टर के बीच हुआ व्यापारिक समझौता तय करेगा, यह किसी को भी स्वीकार नहीं हो सकता। ऐसे में, आप टैक्सी वाले से यही कहेंगे कि तुम अपने किराए से मतलब रखो, मुझे किस डॉक्टर के पास जाना है, उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए। आपको यह भी लग सकता है कि अगर यूं ही चलता रहा, तो शहर भर के डॉक्टर अपना चिकित्सा कौशल निखारने की बजाय टैक्सी वालों से व्यापारिक समझौते प्रगाढ़ करने में ही ध्यान लगाने लगेंगे। डॉक्टरों और टैक्सी वालों के मामले में यह उदाहरण महज काल्पनिक है, लेकिन नेट निरपेक्षता की पूरी बहस को समझने के लिए यह शायद जरूरी भी है।


वैसे दुनिया भर में नेट निरपेक्षता की बहस लंबे समय से चल रही है, भारत के लिए यह उतनी पुरानी नहीं है। ढाई साल पहले यह बहस उस समय शुरू हुई थी, जब फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग एक प्रस्ताव लेकर भारत आए थे। उनका तर्क था कि वह देश की उस बड़ी आबादी को मुफ्त इंटरनेट सेवा से जोड़ेंगे, जो अभी तक इससे दूर है। जाहिर है, इसमें भी मुफ्त का अर्थ था कि सेवा की लागत फेसबुक या उसके कुछ सहयोगी चुकाते और इस सेवा के उपयोगकर्ता फेसबुक समेत चंद गिनी-चुनी वेबसाइट से जुड़ जाते। दावा यह था कि इससे इंटरनेट की उत्पादकता ज्यादा हाथों तक पहुंच सकेगी। लेकिन साथ ही दूसरी चीज भी स्पष्ट थी कि इससे फेसबुक के प्लेटफॉर्म से अचानक ही करोड़ों उपयोगकर्ता जुड़ जाएंगे, जो उसके विज्ञापन या कारोबारी आधार को बहुत बड़ा विस्तार दे देंगे। फेसबुक ने अपने प्रस्ताव में ‘जन-कल्याण' वाला एक ऐसा तर्क जोड़ दिया था, जो इंंटरनेट सेवा देने वाली कई कंपनियों को भी आकर्षित कर रहा था और इसीलिए इस पर जमकर बहस भी हुई। दाल गलती न देखकर फेसबुक तो अपने प्रस्ताव के साथ चुपचाप खिसक गया, लेकिन बाद में पता चला कि इंटरनेट के इस्तेमाल को प्रभावित करने की कोशिशें पिछले दरवाजे से भारत में घुस आई हैं। पश्चिम बंगाल में इंटरनेट सेवा देने वाली एक ऐसी कंपनी का मामला सामने आया, जो एक खास वेबसाइट को बाकी के मुकाबले चार गुने से भी ज्यादा गति से चला रही थी। ऐसी शिकायतें भी आईं कि इंटरनेट सेवा देने वाली कुछ कंपनियां कुछ खास वेबसाइट के वीडियो चलाए जाने पर गति धीमी कर देती हैं। जाहिर है, नेट निरपेक्षता की समस्या सिर्फ अधिकार की सैद्धांतिक बहस या लड़ाई भर नहीं रह गई थी, बल्कि यह व्यावहारिक दिक्कतें भी खड़ी करने लगी थी।


दूरसंचार नियामक ट्राई ने मंगलवार को नेट निरपेक्षता पर अपनी जो सिफारिशें दी हैं, वे लोगों को इन्हीं परेशानियों से बचाने का रास्ता खोलती हैं। ट्राई ने अपनी सिफारिशों में उन आशंकाओं या व्यापारिक समझौतों का रास्ता हमेशा के लिए बंद कर दिया है, जिनके चलते इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियां कुछ वेबसाइटों की गति धीमी या तेज कर देती हैं या फिर किसी वेबसाइट को उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने से पूरी तरह रोक देती हैं। अब इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों को बिना भेदभाव सेवा देने से मतलब है, इस बात से नहीं कि कोई उनका क्या करता है। अगर सरकार इन सिफारिशों को मान लेती है, तो नेट निरपेक्षता इंटरनेट का उपयोग करने वालों या यूं कहा जाए कि देश के लोगों का अधिकार बन जाएगी- जैसे अभिव्यक्ति की आजादी है, वैसे ही नेट की आजादी। यह भी कहा जा रहा है कि ट्राई की ये सिफारिशें दुनिया में कहीं भी नेट निरपेक्षता को लेकर बने प्रावधानों से ज्यादा मजबूत आधार बनाती हैं।


दिलचस्प बात यह है कि ये सिफारिशें उस समय आई हैं, जब अमेरिका जैसे देश उल्टी दिशा में जा रहे हैं। बराक ओबामा के शासनकाल में अमेरिका ने नेट निरपेक्षता के जिस मूल्य को अपनाया था, अब डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में उसे पलटा जा रहा है। वहां इसका बडे़ पैमाने पर विरोध भी हो रहा है, लेकिन फिलहाल तो लोगों की आजादी के मुकाबले व्यापारिक समझौतों और पैकेज डील की आजादी जीतती दिख रही है। हालांकि अमेरिका के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि वहां टैक्सी वालों को यह तय करने का अधिकार मिल गया है कि लोग किस डॉक्टर के पास जाएं, क्योंकि यह अधिकार तो वहां पहले से ही स्वास्थ्य बीमा करने वाली कंपनियों के पास है।


भारत की बहुत बड़ी युवा आबादी पहली बार मोबाइल फोन के जरिये इंटरनेट के माध्यम को अपनाने की ओर बढ़ रही है। ये वे नौजवान हैं, जो इंटरनेट की पूरी विकास प्रक्रिया के साथ पले-बढे़ नहीं हैं, बल्कि सीधे उसके विकसित रूप से जुड़ने जा रहे हैं। वे अपनी गरीबी, अपने क्षेत्र के पिछड़ेपन, बिजली जैसे जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभावों से संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंचे हैं। उन्हें यह एहसास होने लगा है कि उनके लिए भविष्य के खिड़की-दरवाजे इसी इंटरनेट से खुलेंगे। इसी से वे अपनी जमीन पर खड़े होकर बाकी दुनिया से जुड़ेंगे। व्यापारिक या किन्हीं अन्य कारणों से इस माध्यम पर उनकी पहुंच को सीमित करना, उनकी संभावनाओं को रोकना होगा। वह भी उस समय, जब पूरी व्यवस्था ही इंटरनेट पर आने को तैयार है। हमारे गांव-शहर, घर-दफ्तर, कल-कारखाने, खेत-खलिहान, धर्मस्थल, स्कूल और बैंक, सब इंटरनेट पर आने को बेताब हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ये सब चीजें जिन सड़कों पर हैं, उन्हें रोक दिया जाए या वहां आने-जाने पर पाबंदी लगा दी जाए? नेट निरपेक्षता इसीलिए जरूरी है।


https://www.livehindustan.com/blog/latest-blog/story-our-right-to-join-the-world-harjinder-article-1671299.html


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