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न्यूज क्लिपिंग्स् | नशे में उड़ रही है हरित क्रांति की खुशहाली

नशे में उड़ रही है हरित क्रांति की खुशहाली

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published Published on Apr 19, 2010   modified Modified on Apr 19, 2010
चंडीगढ़.हरित क्रांति ने पंजाब को खुशहाल किया, लेकिन इस खुशहाली का सबसे बड़ा फायदा नशे के कारोबारियों ने उठाया। नशे की लत अब इस खुशहाली को लील रही है। नशा सेहत के साथ सरहदी जिलों के किसनों की माली हालत भी बिगाड़ रहा है। अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और फिरोजपुर जैसे सरहदी जिलों में हर महीने आधे परिवार नशे पर 1500 से 3000 रुपए खर्च कर रहे हैं।

किसान और मजदूर अपनी सुबह की शुरुआत चूरापोस्त और अफीम जैसे नशे के साथ करते हैं। किसानों के तम्बाकू खाकर खेतों में काम करने के दिन कब के गुजर चुके हैं। किसान अब मॉर्फिन के इंजेक्शन लेते हैं। किसी-किसी दिन तो दिन में 5 दफा तक ऐसे इंजेक्शन लिए जाते हैं।



नशे का हिसाब-किताब:
इंस्टीट्यूट फॉर डवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के रिसर्च से जुड़े पी.एस.वर्मा और वैशाली मिश्रा ने बताया कि तरनतारन में किसानों और मजदूरों का बहुत बड़ा तबका हर महीने 3000 रुपए से ज्यादा नशे पर खर्च कर रहा है, लेकिन एंटी ड्रग कंट्रोल ब्यूरो के आर.पी.मीणा का अनुमान सर्वे के नतीजों से काफी ज्यादा है। मीणा कहते हैं कि कई परिवारों में लोग 3000 रुपए हर हफ्ते नशे पर खर्च करते हैं।



शादी,चुनाव सब नशीला:
पंजाब में नशे के बढ़ रहे ट्रेंड के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है सामाजिकों गतिविधियों में नशे का खुलकर इस्तेमाल और उसकी सामाजिक स्वीकृति। शादी-ब्याह जैसे सामाजिक मौकों पर नशा खुलकर चलता है। ड्रग्स की आसान उपलब्धता नशे के जाल को बहुत तेजी से फैलाती है। गांवों के मेलों के दौरान भांग और भुक्की का इस्तेमाल तो आम है। शराब का बंटना तो भारत में चुनाव प्रक्रि या का हिस्सा बन चुका है, लेकिन पंजाब में किसी भी चुनावों में ड्रग्स का धड़ल्ले से बिकना इस बात की तस्दीक करता है कि पंजाब समाज की इस बुराई का मजबूती से विरोध करने के बजाय इसे आत्मसात कर रहा है।



कर्ज और नशे का जाल:
एक दशक से ज्यादा समय से किसानों के बीच काम कर रहे उमेन्द्र दत्त बताते हैं कि खेती प्रधान सूबे में हरित क्रांति ने किसानों को बहुत हद तक आत्मनिर्भर बना दिया, लेकिन नशे की लत किसानों और मजदूरों में इतनी कैसे बढ़ गई इसका अपना अलग गतिशास्त्र है। पंजाब के देहातों में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली भुक्की या चूरापोस्त की कीमत 2000 रुपए प्रति किलो है। वहीं अफीम 10,000 से 15,000 रुपए प्रति किलो में उपलब्ध है।



पहले किसानों ने खेतों में काम करने वाले मजदूरों को मुफ्त राशन के साथ-साथ मोबाइल, भुक्की और चूरापोस्त भी मुफ्त में देना शुरू कर दिया। यही तरकीब अंग्रेजों ने अपनाई थी, तब पंजाब में अफीम की खेती करने के लिए किसानों को फ्री अफीम दी जाती थी, लेकिन मजदूरों के बीच फ्र ी नशा बांटते-बांटते कब पंजाब के किसान इस जाल में फंस गए, कुछ पता नहीं चला। नशे की वजह से छोटे किसान कर्ज के जाल में फंस गए। कर्ज के इस जाल के चलते बहुत से किसानों ने खुदकुशी कर ली।



पंजाब में बाबा शेख फरीद ने नशेबाजी के लिए पूरा एक सामाजिक आंदोलन खड़ा किया था, लेकिन आज बड़े किसान और नेता अपने फायदे के लिए नशा बांट रहे हैं। पंजाब के तमाम डेरे नशा छुड़ाने के नाम पर अपनी दुकानदारी चमका रहे हैं। अमृतसर में नशा विरोधी स्क्वायड से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने माना कि पहले ड्रग्स कि खेप पहुंचाने वाले किसान अब खुद नशा करने लगे हैं। किसान ही नहीं, नशे की जद में अब रिक्शा वालों से लेकर, छात्र, दुकानदार भी शामिल हैं।



पंजाब में 2010 में जनवरी से अप्रैल तक 100 करोड़ की हेरोइन पकड़ी जा चुकी है।



पंजाब में 2007 में बीएसएफ और एनसीबी ने 285 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी। जिसे अफगानिस्तान और पाक के जरिए यूरोप भेजा जाना था। लेकिन पकड़ी गई वह हेरोइन पंजाब के जरिए विदेश जा रही खेप का 10 फीसदी हिस्सा भी नहीं है।



ब्रांड भी गजब के
अफगानिस्तान से पंजाब के जरिए विदेश जाने वाले हेरोइने के ब्रांडस के नाम भी बड़े दिलचस्प होते हैं। जैसे चेतक, ऐरोप्लेन, अब्दी खेल, सीरिंज, 999, 555, 7777.वगैरह। नाम और नंबर के हिसाब से इनके नशे की तासीर और कीमत तय होती है।


http://www.bhaskar.com/2010/04/19/drunk-on-the-border-districts-of-punjab-farmers-are-spending-rs-3000-month-886955.html


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