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न्यूज क्लिपिंग्स् | निवेश के फायदे पर संशय-- सतीश सिंह

निवेश के फायदे पर संशय-- सतीश सिंह

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published Published on Oct 7, 2016   modified Modified on Oct 7, 2016
चालू वित्तवर्ष में सरकार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (इपीएफओ) के अंशधारकों की जमा पूंजी का दस प्रतिशत एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (इटीएफ) यानी शेयर में निवेश करेगी, जबकि वित्तवर्ष 2015-16 में यह सीमा पांच प्रतिशत थी। पिछले वित्तवर्ष में इपीएफओ ने इटीएफ में 6577 करोड़ रुपए निवेश किया था, जिसमें उसे 13.24 प्रतिशत का रिटर्न मिला था, जबकि उस कालखंड में दूसरे शेयरों में मंदी की स्थिति बनी हुई थी। मौजूदा समय में 13.24 प्रतिशत के रिटर्न को बेहद आकर्षक और मुफीद कहा जा सकता है। सुधरती अर्थव्यवस्था को देखते हुए चालू वित्तवर्ष में इपीएफओ ने इटीएफ में निवेश को बढ़ा कर दस प्रतिशत किया है। दरअसल, वित्त मंत्रालय ने इपीएफओ के लिए एक नए निवेश पैटर्न को अधिसूचित किया है, जिसके तहत पांच से लेकर पंद्रह प्रतिशत तक इपीएफओ अपने वार्षिक अधिशेष का शेयर में निवेश कर सकता है। इपीएफओ का ताजा निर्णय इसी आलोक में लिया गया है।

वर्तमान में इपीएफओ के पास लगभग आठ लाख करोड़ रुपए का कोष है और चालू वित्तवर्ष में निवेश करने के लिए इसके पास लगभग 1.30 लाख करोड़ रुपए अधिशेष हैं। इपीएफओ के पास मौजूद फंड के पचहत्तर प्रतिशत हिस्से का प्रबंधन एसबीआई म्यूचुअल फंड और पच्चीस प्रतिशत हिस्से का प्रबंधन यूटीआइ म्यूचुअल फंड कर रहा है। विगत वर्षों में एसबीआई म्यूचुअल फंड में रिटर्न का प्रतिशत अच्छा रहा है। वहीं यूटीआइ म्यूचुअल फंड भी निवेशकों के भरोसे को कायम रखने में सफल हुआ है। अगर विगत वित्तवर्ष की तरह चालू वित्तवर्ष में भी इपीएफओ को इटीएफ में निवेश से आकर्षक मुनाफा होता है, तो आगामी वित्तवर्ष में इस मद में किए जाने वाले निवेश को दस प्रतिशत से बढ़ा कर पंद्रह प्रतिशत किया जा सकता है, क्योंकि कम आय की वजह से इपीएफओ अपने चार करोड़ से अधिक अंशधारकों को उनकी जमा पर कम ब्याज देने के लिए मजबूर है।

चालू वित्तवर्ष में इपीएफओ अपने अंशधारकों को उनकी भविष्य निधि जमाओं पर 8.6 प्रतिशत की दर से ब्याज दे सकता है, जबकि इपीएफओ ने वित्तवर्ष 2015-16 में भविष्य निधि जमा पर 8.8 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया था। वित्त मंत्रालय चाहता है कि श्रम मंत्रालय भविष्य निधि पर दिए जाने वाले ब्याज दर को विभिन्न लघु बचत योजनाओं में मिलने वाले ब्याज दर के अनुरूप रखे। चालू वित्तवर्ष के लिए श्रम और वित्त मंत्रालय इपीएफओ अंशधारकों को उनकी जमा पूंजी पर महज 8.6 प्रतिशत की दर से ब्याज देने के लिए तैयार हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा इपीएफओ अंशधारकों को उनकी भविष्य निधि के रूप में की गई जमाओं पर दिए जाने वाले ब्याज दर में कटौती का मूल कारण सरकारी प्रतिभूतियों और अन्य बचत पत्रों पर मिलने वाली आय में लगातार कमी आना है। इसलिए, श्रम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के निर्देशानुसार इटीएफ में निवेश के प्रतिशत को चालू वित्तवर्ष में पांच से बढ़ा कर दस किया है।

उल्लेखनीय है कि इपीएफओ का केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) वार्षिक आय अनुमान के आधार पर इपीएफओ अंशधारकों को उनकी जमाओं पर ब्याज देने का फैसला करता है। सीबीटी जब ब्याज दर को तय करता है, तो इसमें वित्त, अकेंक्षण और निवेश समिति की सहमति होती है, लेकिन सीबीटी द्वारा तय ब्याज दर पर वित्त मंत्रालय की मंजूरी मिलने पर ही श्रम मंत्रालय संबंधित वित्तवर्ष के लिए उसे अधिसूचित करता है। चूंकि, इपीएफओ ने इटीएफ में दस प्रतिशत निवेश करने का निर्णय बिना इपीएफओ ट्रस्टी की अनुमति के इकतरफा लिया है। लिहाजा, श्रमिक संगठन इपीएफओ के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। श्रमिक संगठन चाहते हैं कि वित्त मंत्रालय सीबीटी के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करे, क्योंकि इपीएफ में जमा पैसा इपीएफओ अंशधारकों का है और उन्हें अपने कोष के निवेश से होने वाली अर्जित आय से ब्याज मिलता है। फिर, वित्त मंत्रालय इपीएफओ अंशधारकों की जमा पूंजी को शेयर में लगाने के लिए क्यों आमादा है? वित्त मंत्रालय उनकी जमा पूंजी के साथ कैसे खिलवाड़ कर सकता है?

चालू वित्त की दूसरी तिमाही तक इपीएफओ इटीएफ में पंद्रह सौ करोड़ निवेश कर चुका है और बचे हुए दो तिमाही में वह इसमें और 11,500 करोड़ रुपए निवेश करेगा। इस तरह इपीएफओ चालू वित्तवर्ष में 1.30 लाख करोड़ रुपए अधिशेष का दस प्रतिशत यानी तेरह हजार करोड़ रुपए का निवेश इटीएफ में करेगा। इपीएफओ के पास मौजूदा समय में आठ लाख करोड़ रुपए का कोष है, जिसमें हर साल तकरीबन सत्तर हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी का अनुमान है। गौरतलब है कि इटीएफ शेयरों का समूह है, जिन्हें सामान्य शेयर की तरह दिन भर बदलती कीमतों पर खरीदा और बेचा जाता है। इटीएफ शेयरों को खरीदने और बेचने के क्रम में मार्जिन के रूप में जो बचत होती है, वह डिविडेंड या लाभ के रूप में निवेशकर्ता को मिलता है।

हालांकि, इटीएफ में निवेश से मिलने वाले लाभांश को कम करके नहीं आंका जा सकता है। जाहिर है, इपीएफओ के पास आमदनी का यह एक प्रमुख जरिया है। बेशक, जब उसे निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलेगा तभी वह अंशधारकों को उनकी जमा पर आकर्षक ब्याज दे पाएगा। निवेश पर आकर्षक रिटर्न नहीं मिलने के कारण ही विगत वर्षों में अंशधारकों को दिए जाने वाले ब्याज दर में कटौती की गई है। इपीएफओ पहले अंशधारकों के भविष्य निधि के अंश को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करके मुनाफा कमाता था और उससे मिलने वाले लाभांश से वह अंशधारकों को उनकी जमा पर ब्याज दे रहा था। बता दें कि सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश को सुरक्षित माना जाता है, जिसमें निवेशक को नुकसान नहीं होता।

इधर, इपीएफओ ने वित्तवर्ष 2017-18 से अपने अंशधारकों के भविष्य निधि के वर्तमान और भविष्य में आने वाले अंश को गिरवी रख कर उन्हें सस्ती दर पर घर दिलाने की योजना बनाई है। इतना ही नहीं, अंशधारक अपने भविष्य निधि से कर्ज की किस्तों का भी भुगतान कर सकेंगे। वैसे, यह योजना इपीएफओ अंशधारकों के लिए वैकल्पिक होगी और जिनके पास पहले से घर होगा, उन्हें सस्ते मकान नहीं मिलेंगे। मालूम हो कि इस नई योजना की शुरुआत इपीएफओ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2022 तक सभी को घर दिलाने की योजना के आलोक में की है।

दरअसल, श्रम मंत्रालय की मंशा इपीएफओ के चार करोड़ से अधिक अंशधारकों को सस्ती दर पर मकान उपलब्ध कराने की है। श्रम मंत्रालय ने इसके लिए सरकारी बैंकों, आवास वित्त कंपनियों, सरकारी भवन निर्माण कंपनियों जैसे एनबीसीसी और डीडीए, पुडा, हुडा आदि से ऋण लेने एवं तय कीमत पर घर बनाने के लिए करारनामा करने वाला है। प्रस्तावित योजना के तहत इपीएफओ के अंशधारक, बैंक-आवास एजेंसी और इपीएफओ के बीच त्रिपक्षीय करार किया जाएगा। ताकि कर्ज की किस्तों के भुगतान के लिए भविष्य निधि के योगदान को गिरवी रखा जा सके। कहा जा रहा है कि सरकार इपीएफओ के अंशधारकों खासकर कम आय वर्ग वालों को सस्ती दर पर मकान उपलब्ध कराएगी। फिलहाल लगभग सत्तर प्रतिशत इपीएफओ अंशधारकों की आय पंद्रह हजार रुपए मासिक से कम है। पहले इपीएफओ द्वारा नियुक्त समिति ने कम आय वर्ग के औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए, जो इपीएफओ के अंशधारक हैं, सस्ती दर पर आवास मुहैया कराने का सुझाव श्रम मंत्रालय को दिया था, क्योंकि कम आय वाले इपीएफओ के अंशधारक अपने पूरे सेवा काल में खुद से मकान खरीद पाने में सक्षम नहीं थे।

इपीएफओ का गठन 1951 में पारित एक आॅर्डिनेंस के आधार पर 1952 में किया गया था। इपीएफ में वेतनभोगी कर्मचारी वेतन का बारह प्रतिशत योगदान करते हैं, जिस पर चक्रवृद्धि ब्याज दिया जाता है। नियोक्ता इपीएफ में 3.67 प्रतिशत मिलाते हैं। इस तरह कर्मचारी का इपीएफ में 15.67 प्रतिशत और कुल योगदान 25.61 प्रतिशत होता है। इपीएफओ भविष्य निधि के रूप में जमा अंशधारकों की पूंजी को अन्यत्र निवेश करके उससे होने वाले मुनाफे के हिस्से को ब्याज के रूप में अंशधारकों को वापस लौटता है। कहा जा सकता है कि इपीएफओ द्वारा इसके वार्षिक अधिशेष के दस प्रतिशत का इटीएफ में निवेश से उसे बेहतर रिटर्न मिल सकेगा, लेकिन हमारे देश की सामाजिक संरचना ऐसी नहीं है कि सभी लोग शेयर में निवेश करने के लिए तैयार हो सकें, क्योंकि शेयर में निवेश को सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। कर्मचारी द्वारा भविष्य निधि के रूप में जमा की गई राशि उनके खून-पसीने की कमाई होती है। अगर यह पैसा डूबता है तो इपीएफ अंशधारकों का परिवार सड़क पर आएगा। इपीएफओ कर्मचारियों के पैसे को सुरक्षित रखने, पेंशन मुहैया कराने के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों को भी पूरा करता है। भविष्य निधि में अंशदान करने वाले किसी कर्मचारी की अकाल मृत्यु होने पर उसके आश्रितों को न्यूनतम पेंशन देने के अतिरिक्त बीमा का भी लाभ दिलाने में इपीएफओ मदद करता है। अब इपीएफओ ने अपने अंशधारकों को सस्ती दर पर मकान दिलाने की योजना बनाई है, जिससे अब तक गृह सुख से वंचित कम आय वाले अंशधारकों को लाभ मिलने की उम्मीद है। स्पष्ट है इपीएफओ का उद्देश्य अपने अंशधारकों की सामाजिक और आर्थिक रूप से सुरक्षा करना है। संगठित और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की वित्तीय आवश्यकता को सुनिश्चित करने के लिए इपीएफओ का गठन किया गया था। हमारे देश में कामगारों एक बड़ा तबका आज भी शोषित है। ऐसे में इपीएफओ द्वारा अंशधारकों की गाढ़ी कमाई के साथ खिलवाड़ करना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है। साथ ही, इससे इपीएफओ के मूल उद्देश्य यानी सामाजिक सरोकारों के विफल होने का भी खतरा है।

 


http://www.jansatta.com/politics/how-epfos-equity-hike-will-impact-you/158788/


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