Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | नेटवर्क के जरिए नक्सलवाद से लोहा- बाबा उमर

नेटवर्क के जरिए नक्सलवाद से लोहा- बाबा उमर

Share this article Share this article
published Published on Jul 1, 2013   modified Modified on Jul 1, 2013
2,200 नए मोबाइल टावरों के साथ केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ सहित तमाम नक्सल प्रभावित राज्यों में वह सफलता दोहराने की उम्मीद कर रही है जो उसे इसी प्रयोग से जम्मू-कश्मीर में हासिल हुई है. बाबा उमर की रिपोर्ट.

कहने को जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 2,100 किलोमीटर का फासला हो, लेकिन वे इस मायने में एक जैसे हैं कि दोनों ही लंबे समय से अलगाववादी हिंसा की मार झेल रहे हैं. जम्मू-कश्मीर ने जहां आतंकियों से निपटने में मोबाइल फोन नेटवर्क का कुशलता से इस्तेमाल किया है वहीं छत्तीसगढ़ और दूसरे नक्सल प्रभावित राज्य अभी इस मामले में काफी पीछे हैं. अब केंद्र सरकार अपनी नक्सल विरोधी रणनीति के तहत इस कमी को दूर करने की योजना बना रही है. इसके तहत नौ नक्सल प्रभावित राज्यों में करीब 2,200 मोबाइल टावर लगाने की योजना है. ये टावर उन इलाकों में लगाए जाएंगे जो अभी तक किसी भी तरह के मोबाइल नेटवर्क के कवरेज से बाहर रहे हैं. गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक यह परियोजना सुरक्षा बलों के लिए काफी उपयोगी साबित होगी जिन्हें घने जंगलों की मौजूदगी वाले करीब 80 नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों का पता लगाने में बहुत मुश्किल होती है.

दरअसल यह जम्मू-कश्मीर में किए गए प्रयोग की सफलता दोहराने की कोशिश है. 2003 में जब केंद्र ने इस राज्य में मोबाइल फोन सेवा शुरू करने का फैसला किया था तो सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने इसका काफी विरोध किया था. उन्होंने चेतावनी दी थी कि मोबाइल फोन से आतंकियों को फायदा होगा जो इसका इस्तेमाल बम धमाकों और आतंकी हमलों के बेहतर समन्वय के लिए करेंगे. ऐसा हुआ भी. मोबाइल सेवा का इस्तेमाल करके आतंकियों ने कई हमले किए, लेकिन जल्द ही यह रणनीति उल्टे उन पर भारी पड़ने लगी. श्रीनगर के एक सुरक्षा विशेषज्ञ बताते हैं, 'आतंकियों के मोबाइल सिग्नल और उनकी आपसी बातचीत रिकॉर्ड करके सुरक्षा बलों ने ज्यादातर आतंकियों का सफाया कर दिया. यानी आखिरकार तकनीक ने हमें ही फायदा पहुंचाया.'

आज घाटी में हाल यह है कि सक्रिय आतंकियों की संख्या 100 से भी कम रह गई है. 2003 में यह हजारों में थी. हाल की बात करें तो 2011 में मोबाइल फोन की वजह से ही सुरक्षा बलों को लश्कर-ए-तोएबा और जैश-ए-मोहम्मद के कुख्यात आतंकियों अब्दुल्ला उनी और हमाद तक पहुंचने में आसानी हुई और ये दोनों ही अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए. 2012 में मोबाइल फोन नेटवर्क की निगरानी के चलते अब्दुल राशिद शिगन नाम के पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी मुमकिन हुई. अब्दुल ने अपने एक साथी के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया था और इसने सुरक्षा बलों पर 13 बार हमले किए थे.

अब सरकार को उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ सहित तमाम नक्सल प्रभावित राज्यों में भी मोबाइल कवरेज बढ़ाने से कुछ ऐसे ही नतीजे आएंगे. सूत्र बताते हैं कि टावर लगाने के लिए करीब 2,200 लोकशन भी तय कर लिए गए हैं और अगर यह योजना पूरी तरह से लागू होती है तो इस पर करीब तीन हजार करोड़ रु का खर्च आएगा. छत्तीसगढ़ में ऐसे करीब 500 लोकेशन हैं. संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री किल्ली कृपारानी ने हाल ही में संसद को जानकारी दी कि प्रस्तावित 2,200 लोकेशनों में से 363 पर भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) मोबाइल टावर लगा भी चुका है. छत्तीसगढ़ में बीएसएनएल ऐसे 351 नए टावरों को स्वीकृति दे चुका है. टावर लगाने के लिए 2000 या उससे ज्यादा आबादी वाले गांव चुने गए हैं.'

गौरतलब है कि गरीब और दुर्गम नक्सल प्रभावित इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांवों में मोबाइल सेवा नहीं है. इसकी एक वजह यह भी है कि निजी ऑपरेटरों को लगता है कि ये इलाके बिक्री के लिहाज से उतने फायदेमंद नहीं हैं. लेकिन जब नवंबर, 2011 में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी को एक मुठभेड़ में मार गिराया गया और इसमें मोबाइल फोन के जरिए हुई निगरानी ने अहम भूमिका निभाई तो सरकार को समझ में आ गया कि अगर इन इलाकों में मोबाइल सेवा का विस्तार किया जाए तो इससे नक्सलवाद से निपटने में काफी मदद मिल सकती है. इसके बाद तुरंत ही नक्सल प्रभावित राज्यों में 500 से ज्यादा नए मोबाइल टावर लगाए गए.

हाल के समय में जिस तरह नक्सली मोबाइल टावरों को भी निशाना बनाते रहे हैं उससे भी साफ होता है कि उन्हें इनसे खतरा महसूस होता है. उन्हें डर है कि स्थानीय लोग उनकी गतिविधियों की सूचना देने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे सुरक्षा बलों को सटीक कार्रवाई में मदद मिल सकती है. आंकड़े उनके इस डर की गवाही देते हैं. एक अनुमान के मुताबिक 2008 में नक्सलियों ने 38 टावर उड़ाए थे जबकि 2011 में यह संख्या 71 हो गई.

इसीलिए गृह मंत्रालय नक्सलवाद से निपटने में मोबाइल नेटवर्क के इस्तेमाल की सोच रहा है. सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ समय से मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट से हो रहे संवाद पर निगरानी की एक एकीकृत व्यवस्था बनाने की दिशा में काम हो रहा है. हाल ही में 400 करोड़ रु की लागत से एक केंद्रीय निगरानी व्यवस्था बनाई गई है. इसकी मदद से केंद्रीय और राज्यों की खुफिया एजेंसियां कॉल रिकॉर्ड, संदेश और ईमेल प्राप्त कर सकेंगी और स्रोत एक ही होने की वजह से इस जानकारी में पहले से ज्यादा स्पष्टता होगी. इस व्यवस्था की मदद से मोबाइल फोनों और इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों के लोकेशन का भी पता लगाया जा सकेगी. साफ है कि जितना ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाका मोबाइल कवरेज में लाया जाएगा उतनी नक्सलियों की गतिविधियों के बारे में पुख्ता जानकारी मिलने की उतनी ही अधिक संभावना होगी.

हालांकि एक वर्ग इस पहल पर चिंता जता रहा है. कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मोबाइल फोन को बाकी देश से कटे गरीब आदिवासियों से संवाद बढ़ाने के बजाय नक्सल विरोधी रणनीति के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जो गलत है. दिल्ली स्थित एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स से जुड़े सुहास चकमा को लगता है कि सरकार अब तक विकास और नक्सलवाद के रिश्ते को ठीक से नहीं समझ पाई है. वे कहते हैं, 'इतने बड़े बुनियादी ढांचे को सिर्फ माओवादियों को ढूंढ़ने के लिए इस्तेमाल करना सिर्फ पैसे की बर्बादी होगी.'

पूर्व पत्रकार और मोबाइल आधारित एक समाचार सेवा सीजीनेटस्वर चलाने वाले शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं, 'आदिवासी भारत और मुख्यधारा के बीच कोई संवाद नहीं है. मोबाइल फोन इस खाई को पाटने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं. अगर वे सिर्फ नक्सल विरोधी अभियानों के लिए इस्तेमाल होंगे तो मुझे पता नहीं कि इसका कितना फायदा होगा.'

छत्तीसगढ़ में सात साल बिता चुके और माओवादी समस्या को काफी नजदीक से देखने वाले चौधरी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए बाकी देश को अपनी आवाज सुनाना बहुत मुश्किल है. वे कहते हैं, 'ब्यूरोक्रेटों या नेताओं के अलावा राज्य में काम कर रहे ज्यादातर पत्रकार भी उनकी भाषा यानी गोंडी नहीं समझते. इसलिए जब लोग आदिवासी इलाकों से रिपोर्टिंग की कोशिश करते हैं तो ज्यादातर मौकों पर उन्हें उन लोगों द्वारा दी गई जानकारी से काम चलाना पड़ता है जो थोड़ी हिंदी या अंग्रेजी जानते हैं. इसलिए उन रिपोर्टों में उनकी अपनी आवाज नहीं होती.' हालांकि चौधरी को उम्मीद है कि नक्सल विरोधी रणनीति के तहत ही सही, इन इलाकों में मोबाइल सेवा बढ़ेगी तो इसका फायदा सुरक्षा एजेंसियों के अलावा आम आदिवासी को भी होगा जिसकी आवाज सुने जाने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.


http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/1857.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close