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न्यूज क्लिपिंग्स् | पढऩे की इच्छा, काम की मजबूरी

पढऩे की इच्छा, काम की मजबूरी

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published Published on May 10, 2010   modified Modified on May 10, 2010
हाथ में कापी, पुस्तक, पेन, कलम की जगह बच्चों को बोझ उठाना पड़ रहा है। गरीब घर के बच्चे बचपन से ही घर खर्च में माता-पिता की मदद करने पढ़ाई छोड़कर कार्य करने मजबूर हैं।

शासन ने बालश्रम कानून बनाया है जिसमें १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चे मजदूरी नहीं कर सकते, लेकिन परिवार की आर्थिक पेरशानी को देखकर पेट पालने के उद्देश्य से आज छोटे-छोटे बच्चे भी मजदूरी कर रहे हैं। गरीब माता-पिता भी क्या करें, जो आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं करा सकते। कुछ परिवार तो प्राइमरी तक ही अपने बच्चे को पढ़ा रहे हैं फिर बच्चा पढ़ाई छोड़कर रोजी मजदूरी करने में भिड गया है। बालोद शहर में बाल मजदूरों की कोई कमी नहीं है। होटल, ढाबों, चाय नाश्ते की दुकानों में छोटे बच्चे कप प्लेट धोते, सर्व करते देखे जा सकते हैं। गोलगप्पे बेचता है गोलू

शहर के एक झुग्गी बस्ती में रहने वाला गोलू पढ़ाई छोड़कर गोल गप्पे चाट बेच रहा है। उसके पिता भी यही काम करते हैं। एक ठेले में गोलगप्पे रखकर दिनभर गोलू शहर में चक्कर लगाता रहता है। धूप में भी पसीना बहाकर धंधा करता है। तब जाकर शाम को उसके घर में चूल्हा जलता है। गोलू कहता है कि उसकी पढऩे की काफी इच्छा है लेकिन परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण उसे मजबूरन पिता के साथ धंधा करना पड़ता है। दूसरे पढ़े लिखे बच्चों को देखकर उसे आज भी स्कूल के दिन याद आते हंै और वह उदास हो जाता है।

टेबल साफ कर, चाय दे छोटू : बालोद शहर के अधिकतर छोटे बड़े होटलों, चाय-नाश्ते की दुकानों में बच्चे काम कर रहे हैं। इनमें से छोटू भी एक है। जो चाय की दुकान में काम करता है। लोगों को चाय देना, उनका जूठन धोना और कभी गालियां सुनना इसका काम है।

कुछ परिवार तो ऐसे हैं जो स्वयं के होटल या अन्य प्रतिष्ठïान व्यवसाय का काम करते हैं और साथ में घर के बच्चों को भी इसमें लगा देते हैं। इनमें अनपढ़ बच्चों की संख्या ज्यादा है। जो कभी स्कूल नहीं गए लेकिन ८-९ साल की उम्र से काम कर रहे हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी : एसडीओ पुलिस बालोद एआर बैरागी का कहना है कि बालश्रम कानून के उल्लंघन पर कार्रवाई का प्रावधान है। इसके तहत काम करवाने वालों पर कानूनी कार्रवाई व सजा हो सकती है। माता-पिता को भी हिदायत दी जाती है कि वे अपने बच्चों को काम पर न भेजें। बच्चों को पढ़ाई करने के लिए बच्चे व उसके परिवार के सदस्यों को जोर दिया जाता है।

माता-पिता भी होते हैं विवश

कौन माता पिता चाहेंगे कि उनका बच्चा उनकी तरह मजदूरी करें। सभी चाहते हैं उनका बच्चा पढ़ लिखकर आगे बढ़े और नाम रौशन करें, लेकिन गरीबी इसमें सबसे बड़ी बाधा बन जाती है और मजबूर होकर वे अपने बच्चे को भी अपने साथ काम में लगा लेते हैं। बालोद के जवाहर पारा व कुछ बस्ती में दर्जनों बच्चे कबाड़ी का काम करते हैं। रास्ते से कचरा पट्टïी, प्लास्टिक डिब्बे आदि उठाकर कबाड़ में बेचकर परिवार की आर्थिक सहायता करते हैं। ये बच्चे थैला लिए रोज सुबह से ही कबाड़ उठाने के लिए घर से निकल जाते हैं और देर शाम को घर लौटते हैं। कुछ अत्यंत गरीब परिवार के बच्चे सड़कों पर भीख मांगते भी नजर आते हैं।

http://www.bhaskar.com/article/525383-954707.html


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