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न्यूज क्लिपिंग्स् | पिछले 11 सालों में सरकारी बैंकों पर सरकार ने खर्च किए 2.6 लाख करोड़

पिछले 11 सालों में सरकारी बैंकों पर सरकार ने खर्च किए 2.6 लाख करोड़

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published Published on Feb 20, 2018   modified Modified on Feb 20, 2018
नई दिल्ली। हीरा कारोबारी नीरव मोदी द्वारा पंजाब नेशनल बैंक(पीएनबी) को 11 हजार करोड़ से ज्यादा का चूना लगाने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से जुड़ी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है।

इसके मुताबिक पिछले 11 साल में केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों की हालत सुधारने के लिए मोटी राशि लगाई है। आंकड़ा छोटा मोटा नहीं बल्कि पूरे 2.6 लाख करोड़ का है, जो सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए लगाई है।

कॉरपोरेट फ्रॉड और गलत ढंग से दिए गए लोन की वजह से बैंकों को पिछले कुछ सालो में बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में बैंकों की हालत सुधारने के लिए सरकार को बजट का एक बड़ा हिस्सा बैंकिंग सेक्टर को देना पड़ रहा है।

सरकार ने बैंकों पर खर्च किए 2.6 लाख करोड़ रुपए-

एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक पिछले 11 सालों में देश के तीन वित्त मंत्रियों प्रणव मुखर्जी, पी चिदंबरम और अरुण जेटली ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एनपीए( नॉन परफॉर्मिंग एसेट) से उबारने के लिए 2.6 लाख करोड़ रुपए लगाए हैं। ये आंकड़ा 2G घोटाले के अनुमानित घाटे से भी ज्यादा है। वहीं यह आंकड़ा इस साल के बजट में ग्रामीण विकास के लिए आवंटित की गई राशि से दोगुना और सड़क परिवहन मंत्रालय के लिए आवंटित राशि से साढ़े तीन गुना ज्यादा है। आपको बता दें कि कैग के अनुसार 2G घोटाले के चलते सरकारी खजाने को अनुमानित एक लाख 76 हजार करोड़ का नुकसान हुआ था।

बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन के लिए इस वित्त वर्ष और अगले वित्त वर्ष निकाले गए 1.45 लाख करोड़ रुपए के अलावा सरकार 2010-11 से 2016-17 के बीच बैंकों को 1.15 लाख करोड़ रुपए दे चुकी है। इस दौरान बैंकों का लाभ 1.8 लाख करोड़ तक पहुंच गया। मगर देश के सबसे बड़ा सरकारी बैंक एसबीआई (SBI) समेत अन्य सरकारी बैंक एनपीए और गलत ढंग से दिए गए लोन की भरपाई के चलते, पिछले दो वित्त वर्षों से घाटे में चल रहे हैं। वहीं इस साल भी बैंकों की हालत में बदलाव होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि देश के सबसे बड़ा कर्ज देने वाले बैंक एसबीआई(SBI) ने पिछले 18 सालों में पहली बार तिमाही घाटा दर्ज किया है।

बैंक ऑफ बड़ौदा का हाल भी ऐसा ही है। रेटिंग एजेंसी केयर के मुताबिक, 'एनपीए की बात करें तो ऐसा नहीं लगता कि पब्लिक सेक्टर बैंकों का बुरा दौर खत्म हो गया है।' इस घाटे से रिर्टन ऑन इक्विटी(ROE) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पूंजी पर भी असर पड़ा है।

ये होता है NPA-

अगर कोई कंपनी या शख्स किसी बैंक से लोन लेता है, लेकिन वह वक्त पर ईएमआई चुका नहीं पाता है। ऐसी स्थिति में उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) कहलाता है। नियमों के हिसाब से जब किसी लोन की ईएमआई, मूलधन या ब्याज नियत तिथि के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है।


https://naidunia.jagran.com/business/trade-in-last-11-years-government-pumped-rs-26-lakh-crore-in-psu-banks-1565454?utm_source=naidunia&utm_medium=navigation


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