Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | प्रेस की आजादी और हमारा रिकॉर्ड-- रामचंद्र गुहा

प्रेस की आजादी और हमारा रिकॉर्ड-- रामचंद्र गुहा

Share this article Share this article
published Published on May 28, 2016   modified Modified on May 28, 2016

मैं 1988 के पूर्वार्द्ध में उत्तराखंड में शोध कर रहा था, जब उसी क्षेत्र में एक बहादुर नौजवान पत्रकार की हत्या की खबर आई। उसका नाम उमेश डोभाल था। उसने शराब माफिया, पुलिस, आबकारी विभाग व स्थानीय राजनेताओं की सांठगांठ का पर्दाफाश किया था। उसे शराब ठेकेदारों के भाड़े के हत्यारों ने मारा था।

1988 के उत्तरार्द्ध में मैं दिल्ली में रह रहा था, जब लोकसभा द्वारा प्रेस की आजादी को नियंत्रित करने के लिए एक बिल पास किया गया। यह बिल राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार लेकर आई थी। इसकी वजह बोफोर्स घोटाले और उसके अलावा भी भ्रष्टाचार की कई खबरों का अखबारों में छपना था। इस बिल में मानहानि की बहुत कड़ी व्याख्या की गई थी, ताकि जिन लोगों पर भ्रष्टाचार या अन्य अपराधों के आरोप हों, वे अपने बारे में खबरें छपने से रुकवा सकें। इस बिल के मुताबिक, अगर किसी संवाददाता के खिलाफ कोई आरोप लगता है, तो सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि संपादक, प्रकाशक और मुद्रक को भी अदालत में पेश होना पड़ेगा।

जो लोग उमेश डोभाल की हत्या के लिए जिम्मेदार थे, वे कभी पकड़े नहीं जा सके, क्योंकि पुलिस और राजनेताओं की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन राजीव गांधी सरकार के लाए प्रेस विधेयक का भारी विरोध हुआ और देश भर में उसके खिलाफ आंदोलन हुए। इसके बाद राज्यसभा में पेश किए जाने के पहले ही वह बिल वापस ले लिया गया। मुझे ये घटनाएं इसलिए भी याद हैं, क्योंकि तभी मैंने अखबारों में लिखना शुरू किया था। अभी इनकी याद आने की वजह यह है कि पिछले दिनों बिहार के सीवान जिले में एक पत्रकार की हत्या हो गई और दिल्ली पुलिस ने एक अन्य पत्रकार को संभवत: केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश से गिरफ्तार कर लिया। पहला मामला उमेश डोभाल के मामले की याद दिलाता है। राजदेव रंजन नामक इस पत्रकार को भाडे़ के हत्यारों ने तब गोली मार दी, जब वह काम से घर लौट रहे थे। दूसरे मामले की समानता राजीव गांधी के प्रेस बिल से की जा सकती है, क्योंकि इसमें भी सरकार की बदला लेने की प्रवृत्ति शामिल है। इस पत्रकार ने सरकार के आयुष मंत्रालय की आलोचना करते हुए एक खबर छापी थी। अखबार ने मंत्रालय से यह वादा भी किया था कि अगर वे खबर का खंडन भेजेंगे, तो उसे पूरा-पूरा छापा जाएगा। बजाय खंडन भेजने के अखबार और पत्रकार को अदालत में मानहानि के लिए घसीटा गया और पत्रकार की गिरफ्तारी भी की गई।

प्रेस भारत में पूरी तरह स्वतंत्र कभी भी नहीं रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से इसकी आजादी और कम हो गई है। पिछले महीने जारी अंतरराष्ट्रीय 'प्रेस की आजादी के पैमाने' पर 180 देशों में भारत 133वें स्थान पर था। देशभक्त पत्रकार इस बात से खुश हो सकते हैं कि भारत एक साल में 136 से 133वें स्थान पर आ गया और ऐसे लोगों के लिए सबसे घृणास्पद देश पाकिस्तान और चीन हमसे भी पीछे हैं। इस रैंकिंग के साथ जो रपट आई है, उसमें कहा गया है कि भारत में पिछले कुछ महीनों में पत्रकारों को बड़े पैमाने पर धमकियों और हिंसा का सामना करना पड़ा है। खासतौर पर दक्षिणपंथी गुट इसमें आगे हैं। इससे मौजूदा हिंदू राष्ट्रवादी सरकार के राज में प्रेस की आजादी को लेकर संदेह पैदा होता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन धमकियों और समस्याओं के प्रति उदासीन दिखते हैं और पत्रकारों की रक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब जो भी गुजरात में रहा हो या गया हो, उसे इस बात से कोई आश्चर्य नहीं होगा।

सच्चाई यह है कि बाकी पार्टियां भी इस मामले में कोई बेहतर नहीं हैं। राजीव गांधी की चर्चा पहले ही हो चुकी है और उनकी मां की प्रेस के प्रति अवज्ञा जगजाहिर है। जब भारत में अंग्रेज राज कर रहे थे और कांग्रेस आजादी के आंदोलन की अगुवाई कर रही थी, तब वह लगातार प्रेस की आजादी के लिए जूझती रही थी। तिलक, गांधी और नेहरू जैसे उसके महान नेता खुद पत्रकार और संपादक थे। लेकिन जब कांग्रेस 1947 में सत्ता में आई और खासकर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आजाद और सक्रिय प्रेस की बजाय एक पालतू और हां में हां मिलाने वाले प्रेस को बढ़ावा देने की कोशिश की गई।

क्षेत्रीय पार्टियों का रिकॉर्ड शायद इससे भी खराब है। उमेश डोभाल और राजदेव रंजन जैसे अनेक पत्रकारों की मौत राज्य सरकारों की उपेक्षा या मिलीभगत का नतीजा है। कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है और पत्रकारों पर हमला करने वाले अक्सर राज्य स्तरीय नेताओं के सरंक्षण में होते हैं। विज्ञापन देना और रोक लेना एक ऐसा हथियार है, जिसका इस्तेमाल राज्य सरकारें प्रेस को नियंत्रित करने के लिए बखूबी करती हैं। क्षेत्रीय अखबार सरकारी विज्ञापनों पर काफी निर्भर रहते हैं। अगर ये अखबार सरकार की जायज आलोचना भी करते हैं या उसके किसी काम को गलत ठहराते हैं, तो उनके विज्ञापन रोक लिए जाते हैं या जो विज्ञापन पहले दिए जा चुके हैं, उनके भुगतान में दिक्कतें होती हैं।

प्रेस की आजादी को दबाने के इस कारोबार के संदर्भ में अंग्रेजी प्रेस या तो अपने में सिमटी रहती है या कभी-कभी शामिल भी हो जाती है। अपने वातानुकूलित स्टूडियो में बैठे दिल्ली और मुंबई के संपादक और एंकर भारत की आम कठिन परिस्थिति से अलग रहते हैं। उन्हें न मालूम होता है, न वे जानने की कोशिश करते हैं कि भाषायी पत्रकार किन कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। बस्तर जैसे इलाकों में पत्रकारों का उत्पीड़न, आयुष मंत्रालय की आलोचना करने वाले पत्रकार की गिरफ्तारी, प्रेस की आजादी के पैमाने पर भारत का फिसड्डी होना, ये सारे मुद्दे प्राइम टाइम खबरों में कभी नहीं आते।

जो लोग भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए फिक्रमंद हैं, उन्हें इस पर सोचना चाहिए। प्रेस की आजादी देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा, समृद्धि और खुशहाली के लिए अनिवार्य है। सन 1824 में महान भारतीय उदारवादी सुधारक राम मोहन राय ने प्रेस की आजादी पर रोक लगाने के खिलाफ बंगाल सरकार को एक अर्जी लिखी थी। उन्होंने लिखा, 'किसी भी अच्छे शासक को, जिसे इंसानी स्वभाव की कमजोरियों का एहसास हो और जिसे परमेश्वर के प्रति आस्था हो, इस विशाल साम्राज्य को चलाने में गलती हो सकने का अंदेशा होना चाहिए। इसलिए उसे हर व्यक्ति को यह सुविधा देनी चाहिए कि वह गलतियों को शासक तक पहुंचा सके। इस महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए अभिव्यक्ति की अनिर्बाध आजादी सबसे प्रभावशाली माध्यम है।'

भारत अब एक आजाद देश है। अब इसे चुने हुए लोग चला रहे हैं। ऐसे में, राम मोहन राय की चेतावनी ज्यादा प्रासंगिक है। ममता बनर्जी को इन वाक्यों को मढ़वाकर अपनी मेज पर रखना चाहिए और ऐसा ही अन्य मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को भी करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1--freedom-of-press-and-our-record-536083.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close