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न्यूज क्लिपिंग्स् | फ़सल बंपर, लेकिन किसान क्यों दे रहे जान?-- जुबैर अहमद

फ़सल बंपर, लेकिन किसान क्यों दे रहे जान?-- जुबैर अहमद

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published Published on Nov 2, 2015   modified Modified on Nov 2, 2015
18 वर्षीय लवप्रीत सिंह का जीवन सामान्य तरीके से गुज़र रहा था. लेकिन पिछले महीने उनकी ज़िन्दगी में तब उथल-पुथल आई जब उनके पिता, 42 वर्षीय किसान बलविंदर सिंह, ने आत्महत्या कर ली.
अमृतसर के निकट एक छोटे से गांव में अब वह अपनी मां और दादी के साथ रहते हैं और अकेली संतान होने के नाते परिवार की सारी ज़िम्मेदारियां उनके युवा कधों पर आ गई हैं.
धान के दाम तेज़ी से गिरने से उनके पिता को ज़बरदस्त घाटा हुआ था, जिसके सदमे से वो बाहर निकल न सके और रेल की पटरी पर आकर अपनी जान दे दी.
लवप्रीत को अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास है इसलिए वह परेशान रहते हैं. उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है और अब खेती में लगना चाहते हैं.

 

वह चिंतित ज़रूर हैं लेकिन हिम्मत टूटी नहीं है, "मैं अपने पिता के सभी क़र्ज़ चुकाऊंगा और पढ़ाई भी करूंगा."
बलविंदर सिंह ने बैंक से 4 लाख रुपये लिए थे लेकिन घाटे के कारण वो इसे वापस नहीं कर सके.
बलविंदर सिंह की कहानी पंजाब के लगभग सभी छोटे किसानों की कहानी है. कपास की खेती करने वाले, या गन्ना उगाने वाले, या फिर धान उगाने वाले किसान सभी क़र्ज़दार हैं और सभी की समस्याएं एक जैसी हैं.
खाद, बीज और खेती से संबंधित दूसरे सामान महंगे हो गए हैं लेकिन फसलों की कीमत बाज़ार में गिरी है. खेती घाटे का सौदा होकर रह गया है.

 

 

किसान संघर्ष समिति के अधिकारी और किसान सरवन सिंह पंधेर कहते हैं खेती का पेशा संकट में है, "हमारी खेती पूर्वजों से होती चली आ रही है. हम और कोई धंधा नहीं जानते, लेकिन अब खेती का कारोबार घाटे वाला पेशा है. हम जितनी पूंजी लगाते हैं उससे कहीं कम कमाई होती है."
इसीलिए राज्य भर में किसान पिछले दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं. हाल ही में गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान को लेकर सिख सड़कों पर उतर आए थे जिसके कारण किसानों का मुद्दा थोड़े समय के लिए दब गया था लेकिन उनका आंदोलन जारी है.
पंधेर कहते हैं, "हम हर दिन एक ज़िले में एक दिन के लिए धरना दे रहे हैं."
एक समय था जब पंजाब प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत में दूसरे पायदान पर था लेकिन अब 10 राज्य पंजाब से आगे हैं.

 

 

एक समय था जब पंजाब के किसान खुशहाल किसानों की श्रेणी में आते थे लेकिन अब वो एक बड़े कृषि संकट से घिर गए हैं.
जिस भी किसान से मैंने बात की उसका कहना था कि पंजाब में पैदावार कम नहीं हुई है बल्कि बढ़ी है, लेकिन किसानों को सही दाम नहीं मिलता, इसीलिए आत्महत्याएं बढ़ रही हैं.
किसानों के एक नेता बलबीर सिंह कहते हैं, "पिछले साल खुले मार्केट में एक क्विंटल धान की कीमत 3,000 से 3,500 रुपये मिली, इस साल 800 से 1200 रुपये मिले हैं."
बलविंदर सिंह ने आत्महत्या करने से पहले बाज़ार में धान बेचा था. उसे उम्मीद थी कि उसे 3,000 रुपये प्रति क्विंटल दाम मिलेगा, लेकिन 800 रुपये प्रति क्विंटल पर वो मायूस हो गए.

 

 

बेटे ने कहा कि पिता खामोश घर आए, किसी से बात नहीं की. घर से निकले तो वापस लौट कर नहीं आए. लवप्रीत के अनुसार, पिता कम पैसे के कारण क़र्ज़ चुकाना तो दूर घर को चलाने के क़ाबिल भी नहीं रहे थे.
आत्महत्या करने वालों की संख्या सरकारी तौर पर उपलब्ध नहीं है लेकिन किसान संगठनों के अनुसार, हर दिन एक या दो आत्महत्याएं हो रही हैं.
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को 3 लाख रुपये देने का फैसला किया है लेकिन विपक्ष के अनुसार, इससे आत्महत्या को बढ़ावा मिलेगा इसलिए बेहतर होगा कि नुक़सान पर किसानों को मुआवज़ा दिया जाए.
किसानों की मांग है कि कृषि नीति बदली जाए क्योंकि वह किसान विरोधी है. वह चाहते हैं कि राज्य सरकार बाज़ार भाव से उनकी पैदावार का भाव तय करे.

 

 

उनकी ये भी मांग करते हैं कि किसानों की पैदावार सरकार उसी तरह खरीदे जैसे पहले खरीदती थी.
अमृतसर के देहातों में धान की फ़सल लहलहा रही है. मशीनें फसल काट रही हैं. मंडियों में ट्रैक्टर और ट्रकों में भर कर धान आ रहा है. लेकिन इन बाज़ारों में बेचने वाले किसान अधिक और खरीदने वाले व्यापारी कम.

 


http://www.bbc.com/hindi/india/2015/10/151028_punjab_agriculture_crisis_farmers_suicide_sr


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