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न्यूज क्लिपिंग्स् | बढ़ती महामारियों के दौर में-- डा. ए के अरुण

बढ़ती महामारियों के दौर में-- डा. ए के अरुण

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published Published on Jun 1, 2017   modified Modified on Jun 1, 2017
विगत कुछ वर्षों से विवादास्पद व खतरनाक किस्म के वायरस से होनेवाली बीमारियों के महामारी बनने की चर्चा ज्यादा हो रही है. कहा जा रहा है कि विगत 30 वर्षों में 30 से ज्यादा नये-पुराने वायरस घातक बन कर मानव दुनिया के लिए खतरा बन चुके हैं. इन दिनों ‘जीका' वायरस चर्चा में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वैसे तो इस वायरस को लेकर इमरजेंसी एलर्ट जारी किया था, लेकिन गुजरात (जहां इस वायरस के संक्रमण का शक था) सरकार के दावे के बाद कि ‘यहां जीका वायरस का कोई खतरा फिलहाल नहीं है' वापस ले लिया है. इधर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने सिंगापुर में 13 भारतीयों में जीका वायरस संक्रमण की पुष्टि की है. 
 

जीका वायरस संक्रमण के साथ-साथ ‘माइक्रोसेफेली' एवं ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम' की भी चर्चा चिकित्सा विज्ञानियों की चिंता का कारण है. माइक्रोसेफेली आमतौर पर बच्चों में होनेवाली बीमारी है.

इसकी वजह से सिर का आकार छोटा रह जाता है और दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता. अमेरिका में प्रत्येक वर्ष औसतन 25 हजार बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं. ‘जीका वायरस' की दहशत इतनी है कि कई देशों ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि इस संक्रमण की स्थिति में वे यौन संबंध से बचें. इसके संक्रमण में जो लक्षण दिखते हैं, उनमें हल्का बुखार, आंखें लाल होना और उसमें दर्द या जलन, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर पर चकत्ते के निशान आदि प्रमुख हैं. इस बीमारी में आगे चल कर मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें, शरीर में लकवा मार देने जैसे लक्षण भी आ सकते हैं. उपरोक्त लक्षणों के सामने आते ही अनुभवी चिकित्सकों की राय लेनी चाहिए. संक्रमित व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ देना चाहिए जैसे ग्लूकोज पानी, नारियल पानी, फलों का रस इत्यादि.

डब्ल्यूएचओ की फैक्ट शीट से पता चलता है कि जीका वायरस पहली बार अफ्रीकी देश युगांडा के बंदरों में सन् 1947 में पाया गया था. इंसानों में पहली बार यह वायरस 1954 में नाइजीरिया में पाया गया. इसके बाद अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर के कई द्वीपों में लोग इसके शिकार हुए. मई 2015 में ब्राजील में बड़े पैमाने पर लोग इसकी चपेट में आये, तब से यह वायरस कई देशों में फैल चुका है. अमेरिका संस्था ‘नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ' भी इसे बड़ा खतरा मानता है.

डब्ल्यूएचओ ने पिछले वर्ष के अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पर्यावरण विनाश, तथा बढ़ती वैश्विक गर्मी की वजह से गंभीर होते स्वास्थ्य संकट पर ध्यान केंद्रित किया था. उस रिपोर्ट की मुख्य चिंता यह थी कि वर्ष 2030 तक वातावरण में गर्मी बढ़ने से महामारियों, चर्म रोगों, कैंसर जैसी बीमारियों में काफी वृद्धि होगी और ये रोग भविष्य के सार्वाधिक मारक रोगों में गिने जायेंगे.

रोगों के बढ़ने और जटिल होने के साथ ही अंगरेजी दवाओं का बेअसर होना, महामारियों का और घातक होना, तथा रोगाणुओं/विषाणुओं का आक्रामक तेज होना भी भविष्य की बड़ी चुनौतियां हैं. जीका वायरस मच्छरों से फैलता है. यही मच्छर डेंगू और चिकनगुनिया वायरस भी फैलाते हैं. अभी तक इस वायरस के संक्रमण से बचने या इसके उपचार की कोई मुकम्मल दवा मौजूद नहीं है, इसलिए लोगों को सलाह है कि मच्छरों से बचाव, मच्छरों की रोकथाम व उसके प्रजनन व प्रसार को रोकने के सारे उपाय करें.

भारत जैसी तीसरी दुनिया के देशों में टीकाकरण को बढ़ावा देने और नये टीकों के प्रयोग को सरकारी कार्यक्रम में शामिल कराने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल एलायंस फाॅर वैक्सिन इनिसियेटिव खड़ी की गयी है. इसके लिए सदस्य देशों ने मिल कर 20 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम किया है.

 


हमारे देश के लिए यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है कि यहां लगभग प्रत्येक प्रदेश में हर तरफ फैली गंदगी, जल-जमाव और लोगों की गरीबी आदि अनेक महामारियों के फैलने व घातक होने में सहायक हैं. 

 

स्वास्थ्य संबंधी सामान्य ज्ञान का अभाव तथा बाजार में तब्दील यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था ने यह आशंका और बढ़ा दी है कि सरकार सामुदायिक स्वास्थ्य की व्यवस्था को वास्तव में दुरुस्त कर पायेगी. वर्षों तक प्रचलित बीमारियों के उन्मूलन का अभियान चलाने के बावजूद भी रोग की भयावहता कम नहीं हुई. मलेरिया, टीबी, डेंगू, स्वाइनफ्लू, कालाजार, मिजिल्स, कालरा लगभग सभी रोग पहले से और खतरनाक ही हुए हैं.

भारत में मलेरिया, कालाजार, डेंगू आदि के खत्म न होने के पीछे के प्रमुख कारण हमारा बढ़ता हुआ शहरीकरण है, बड़े बांध एवं बड़े पैमाने पर विस्थापन है. एक अन्य महत्वपूर्ण कारण अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई भी है. सवाल यह उठता है कि बढ़ती बीमारियों की वजह आखिर है क्या? बढ़ता उपभोक्तावाद, बढ़ती समृधि, बढ़ती तकनीक, रोगों के प्रति हमारा मूर्खतापूर्ण रवैया या कुछ और?


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/997565.html


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