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न्यूज क्लिपिंग्स् | बाजार नहीं, जनहितैषी नीतियां बनाये सरकार- जोसेफ स्टिग्लिज

बाजार नहीं, जनहितैषी नीतियां बनाये सरकार- जोसेफ स्टिग्लिज

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published Published on Jan 15, 2013   modified Modified on Jan 15, 2013
- अर्थशास्त्र के लिए 2001 में नोबल पुरस्कार जीतनेवाले प्रो जोसेफ इ स्टिगलिट्स ने सोमवार को पटना में आद्री के स्थापना दिवस व्याख्यान में बाजार, सरकार व समाज की भूमिका से लेकर अमेरिका के संकट तक को बहुत आसान शब्दों में रखा और बताया कि पूंजीवाद को लगातार पुनर्परिभाषित करते रहने की जरूरत क्यों है. हमलोग उनके इस व्याख्यान के बरक्स अपनी सरकारों के नीतिगत फैसलों, बाजार की भूमिका और अपने समाज को देख सकते हैं. यह व्याख्यान सबको पढ़ना चाहिए, ताकि समाज में आ रहे बदलावों को हम विश्लेषित करके यह जान सकें कि कुछ अच्छा हो रहा है, तो क्यों और कुछ गड़बड़ हो रहा है, तो क्यों? उन्होंने बिहार की तारीफ की और कहा कि बिहार ने बताया है कि सरकार की भूमिका किसी भी समाज के विकास में कितनी अहम हो सकती है. -

पटना : आद्री के स्थापना दिवस व्याख्यान का मौका. पटना के होटल मौर्या का खचाखच भरा हाल. जो बाद में आये, उनको बैठने की जगह तक नहीं मिली. सब लोग सुनना चाहते थे प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो जोसेफ इ स्टिगलिट्स को कि वह पूंजीवाद और बाजार को कैसे देखते हैं? सब उत्सुक थे यह जानने को कि यह नोबल विजेता पूंजीवाद कैसे पुनर्पिरभाषित करेगा.

कार्यक्रम शुरू हुआ. आद्री के शैबाल गुप्ता ने आद्री के बारे में बताया, कंट्री डायरेक्टर ने प्रो स्टिगलिट्स के बारे में बताया. फिर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी बोले और प्रो स्टिगलिट्स के कुछ भाषणों का जिक्र किया. इसके बाद मुख्य अतिथि के तौर पर इस कार्यक्रम में शामिल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं ज्यादा समय नहीं लूंगा. आप प्रो स्टिगलिट्स को सुनने आये हैं और मैं भी उन्हें ही सुनने आया हूं. इसके बाद शुरू हुआ व्याख्यान. करीब सवा घंटे प्रो स्टिगलिट्स बोले और लोगों ने उनको बहुत ध्यान से सुना.

नोबल विजेता प्रो स्टिगलिट्स ने कहा कि बाजारोन्मुखी नीतियों के चलते ही अमेरिका की हालत खराब हो रही है. इससे सबको सीख लेनी चाहिए. विकसित देशों को विकसित बाजारोन्मुखी नीतियों ने नहीं, बल्किवहां की सरकारों की जनोन्मुखी नीतियों ने बनाया है. चीन सहित पूर्वी एशिया के देशों की सरकारें उदाहरण हैं. इन देशों की सरकारों ने बाजार और समाज के हितों का संतुलन अपनी नीतियों में रखा है.

उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों में पूंजीवाद को पुनर्परिभाषित करने पर जोर दिया और कहा कि सरकारों को विभिन्न भूमिकाओं में रहने की जरूरत है. सरकारों की पहली प्राथमिकता समाज की मूल जरूरतें (कानून-व्यवस्था, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा आदि) सुनिश्चित करना होना चाहिए.

दूसरी प्राथमिकता, बाजार में वित्तीय नियमन और प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए. सरकारों को बाजार पर अंकुश रखना चाहिए, जिससे ऐसा कोई काम न हो सके, जो समाज के हितों के खिलाफ जाता है. खासकर, भारत जैसे विकासशील देशों में सरकार की भूमिका औद्योगिक व वित्तीय नीतियों और शिक्षा के जरिये विकास को तेज करनेवाले उत्प्रेरक के तौर पर होना जरूरी है.

इसके अलावा सरकारों को उन क्षेत्रों को भी चिह्न्ति करना चाहिए, जिनमें बाजार प्रमुख सामाजिक जरूरतों को पूरा नहीं कर रहा है. बाजारों के विफल रहने के तर्कसंगत कारण भी हो सकते हैं. यहां तक कि विकसित देशों में भी ऐसा देखने को मिलता है. इन क्षेत्रों में सरकारें बाजार के लिए उत्प्रेरक का काम कर सकती हैं. सभी जगहों पर सरकारों को जो मुख्य भूमिका अदा करनी चाहिए, वह है सामाजिक सुरक्षा देने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की.

प्रो स्टिगलिट्स का कहना है कि वास्तव में सरकारों को अपने प्रत्येक काम में सिर्फ सक्षमता (इफीशिएंसी) ही नहीं, निष्पक्षता और सामाजिक न्याय पर भी फोकस करना चाहिए. कानून का राज महत्वपूर्ण है, लेकिन कई समाजों (या देशों) में यह देखा गया है कि कानून का इस्तेमाल ताकतवर लोग बाकी लोगों को दबाये रखने के लिए करते हैं.

अमेरिका समेत कई देशों में कानूनी तंत्र कई बार असमानता बढ़ाने और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच खाई बनाने में सहायक होता है, जबकि कुछ लोगों के लिए भेदभाव की गुंजाइश खत्म करता नजर आता है. हाल के वर्षों में सरकारों का जोर बिजनेस या बाजार हितैषी नीतियों पर दिखायी दे रहा है. लेकिन, मैं इससे अलग सोचता हूं.

मुझे लगता है कि सरकारों को ऐसी जनहितैषी नीतियों पर जोर देना चाहिए, जो आर्थिक विकास (ग्रोथ) को ही प्रोत्साहित करती हैं. ग्रोथ जरूरी है रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए और ग्रोथ से ही गरीबी कम करने के लिए जरूरी संसाधन सुनिश्चित किये जा सकेंगे. बाजार ग्रोथ को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हो सकते हैं, लेकिन ग्रोथ सही दिशा में होना जरूरी है. ग्रोथ क्रोनी पूंजीवाद पर आधारित नहीं हो सकता, जो तमाम लोगों की कीमत पर मुट्ठी भर लोगों के लिए फायदेमंद हो.

ग्रोथ आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ होना चाहिए. अब बाजार अपने स्तर से ऐसा ग्रोथ सुनिश्चित करने का काम तो करेगा नहीं. सरकारों को यहां भूमिका अदा करनी होगी. लेकिन, देखने में आता है कि अक्सर सरकारें वर्ग विशेष के हितों को पूरा करती नजर आती हैं. सही मायने में विकास उन्हीं समाजों में हुआ हैं, जहां सरकारें आम जनता के हितों को आगे बढ़ानेवाली रही हैं. लेकिन, यह तभी संभव है, जब उस समाज में सक्रिय सिविल सोसाइटी हो और जागरूक नागरिक हों.

प्रो स्टिगलिट्स ने कहा कि इस तरह किसी भी समाज के टिकाऊ और व्यापक विकास के लिए तीन स्तरों पर संस्थाओं का प्रवर्धन जरूरी है-बाजार का प्रवर्धन, सरकारों के स्तर पर नये प्रयोग और सक्रि य सिविल सोसाइटी का निर्माण. साथ में इन तीनों के बीच संतुलित संबंध. पूंजीवाद को पुनर्परिभाषित करने का अर्थ यही है. यह बाजार संस्थाओं को पुनर्परिभाषित करने से आगे की बात है. जहां भी सरकारें रेगुलेशन और प्रतिस्पर्धा बाजार पर छोड़ देगी, वहां समाज का नुकसान होगा.

अमेरिका में देखिए. 2007 में क्या हुआ? होम लोन का संकट कहां से आया? वित्तीय संस्थाओं का एकाधिकार था. उन्होंने मनमाने तरीके से लोन पैकेज बनाये. इसमें सिर्फ उन्होंने अपना ध्यान रखा और नतीजा सबके सामने है. अमेरिका को पिछले पांच साल में खरबों खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा. इस नुकसान को सिर्फ सरकार या कंपनी नहीं, बल्किपूरा अमेरिकी समाज झेल रहा है. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस समय अमेरिका के लोगों की जो मीडियन आय है, वह 40 साल पहले की मीडियन आय से कम है. पहले की तरह अब अमेरिका अपार्चुनिटी का देश नहीं है.

उन्होंने कहा कि अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और स्कैंडेनेविया को देखें, तो स्कैंडेनेवियाई देशों ने तीनों में बेहतर संतुलन बनाया है. यूरोप में भी सामाजिक पूजीवाद है, लेकिन अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों में जो नीतियां अपनायी गयीं, उनसे संकट आया. यदि आप सब कुछ बाजार पर छोड़ देगें, तो यही होगा. यदि कंपनी के कर्मचारी अपना वेतन खुद तय करने लगेंगे, तो वे अपनी वेतनवृद्धि का ध्यान तो रखेंगे, लेकिन कंपनी की निवेश संबंधी जरूरतों का नहीं. कंपनियां फेल होंगी, समाज भुगतेगा, लेकिन कंपनी के कर्ता-धर्ता अमीर होते जायेंगे.

अमेरिका में यही हुआ. अमेरिका में सबसे ज्यादा आयवाले शीर्ष एक फीसदी लोगों का ग्रोथ तो हुआ, लेकिन निचले स्तर पर लोगों की आय कम होती जा रही है. उन्होंने कहा कि अमेरिका में वित्तीय संस्थाओं का नियमन मजबूत नहीं है. अमेरिका में बैंकरप्सी कानून भी वित्तीय संस्थाओं को फायदा पहुंचानेवाला है. इसका परिणाम यह है कि अमेरिका का आम युवा इन संस्थाओं का बंधुआ हो गया है, जो अपनी जिंदगी भर अपनी कमाई का 25 फीसदी किस्त के तौर पर अदा करने को अभिशप्त है.

दुनिया तेजी से सफलता (सफल विकास) की मैट्रिक्स पर अपना ध्यान केंद्रित करती जा रही है. लेकिन, जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) सफलता का सही पैमाना नहीं है. जीडीपी एक समान वितरण, कल्याण और स्थायित्व को इंगित नहीं करता है, इसलिए इसे सफलता का अच्छा पैमाना नहीं कहा जा सकता. सरकारों को जनिहत में सफलता और विकास के किसी नये पैमाने पर विचार करना चाहिए.

प्रो स्टिगलिट्स ने कहा कि हम उपरोक्त बातों के बरक्स भारत और यहां के राज्यों में हो रहे नीतिगत फैसलों को देख सकते हैं और देखना भी चाहिए. ग्लोबलाइजेशन का यदि अच्छे से प्रबंधन किया जाये, तो यहां के समाज के विकास का बेहतर उपकरण साबित हो सकता है. लेकिन, यदि बेहतर प्रबंधन नहीं हुआ, तो ठीक उल्टा होना तय है.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) से पूंजी, टेक्नोलॉजी, नो-हाऊ, ट्रेनिंग और नये बाजारों में प्रवेश की सुविधा मिल सकती है और इससे ग्रोथ और रोजगार सृजन हो सकता है. लेकिन, आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी कंपनियां किसी-न-किसी तरीके से आपका शोषण करने में ज्यादा सक्षम व तत्पर होंगी.

हर क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से सोचा जाना चाहिए कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेशी से देश को क्या मिलेगा, समाज को क्या फायदा होगा? आपके यहां रिटेल में विदेशी निवेश का कानून बना है. आपके यहां कहा जा रहा है कि इससे देश में विदेशी पूंजी आयेगी, टेक्नोलॉजी आयेगी, सप्लाइ चेन, उत्पादकों को अपने उत्पाद के अच्छे दाम मिलेंगे और उपभोक्ताओं को सस्ता सामान. और, साथ ही उद्यमशीलता बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि आपका देश पूंजी का निर्यात करता है.

आपके लोग पूरी दुनिया में उद्यमशीलता के लिए जाने जाते हैं. रिटेल में कोई ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं होती, जिसे आपके लोग हासिल या विकसित न कर सकते हों. बेंगलुरु में देखिए, आपकी कंपनियां अमेरिकी बाजार के लिए सक्षमता से काम कर रही हैं. फिर आपके लोग तकनीकी दक्षता के लिए दुनिया में जाने जाते हैं. रही बात उत्पादकों को अच्छे दाम मिलने की, तो थोड़े दिन कुछ लोगों को फायदा जरूर मिलेगा, लेकिन फिर चीन की फैक्टरियों से सामान आने लगेगा.

हां, उपभोक्ता को जरूर सस्ता सामान मिल सकता है, लेकिन यह सोचना चाहिए कि इसकी कीमत समाज को क्या चुकानी पड़ेगी? हां, कुछ कंपनियां घूस देने के लिए जरूर जानी जाती हैं..फिर हंसते हुए कहा कि यहां भी आपके लिए कुछ सीखने को नहीं होगा. उन्होंने कहा कि जिन देशों में रिटेल में एफडीआइ को अनुमति है, वहां के केस देखिए.

क्या वहां रिटेल में एफडीआइ जाने से समाज में उद्यमशीलता बढ़ गयी, नयी टेक्नोलाजी मिल गयी, सप्लाइ चेन मजबूत हो गयी, उत्पादकों को अपने उत्पाद के अच्छे दाम मिलने लगे? ऐसे कोई साक्ष्य आपको नहीं मिलेंगे. इसी तरह वित्तीय बाजार में भी ऐसे कोई उदाहरण नहीं मिलेंगे, जो यह साबित कर सकें कि विदेशी वित्तीय संस्थानों के जोखिम भरे वित्तीय उत्पादों के आने से ग्रोथ तेज हो गया हो. लेकिन, ऐसे उदाहरण तमाम मिलेंगे, जो यह बताते हैं कि इससे जोखिम बढ़ता है.

* बिहार ने दिखाया, परिवर्तन संभव है
बिहार यह दिखा रहा है कि परिवर्तन संभव है और यहां ग्रोथ की अपार संभावनाएं हैं. यहां का विकास यह बता रहा है कि सरकारें कैसे विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं. मैं कुछ ग्रामीण इलाकों में गया था. मैने देखा कि लोग मशरूम की खेती नयी तकनीक से करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं. इससे विकास का सपना देखनेवाले लोगों को आशा की किरण दिखायी देने लगी है. इस परिवर्तन को हल्के से नहीं लेना चाहिए.

आपको हर समय सफलता और विकास को लेकर यह विजन सामने रख कर ही चलना चाहिए कि विकास विकास के लिए नहीं, बल्कि सभी नागरिकों को फायदा पहुंचानेवाला हो. लोकतांत्रिक, समावेशी और टिकाऊ विकास.

* नालंदा को विश्व धरोहर में शामिल कराने का प्रयास करूंगा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने व्याख्यान से पहले प्रो स्टिगलिट्स से आग्रह किया कि दुनिया के पहले विश्वविद्यालय नालंदा के अवशेष स्थल को विश्व धरोहर में शामिल कराने में मदद करें. इस पर प्रो स्टिगलिट्स ने अपने व्याख्यान की शुरुआत में ही कहा कि उनसे इस बाबत जो भी हो सकेगा, वह करेंगे.


http://www.prabhatkhabar.com/node/253535?page=show


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