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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिगड़ेगी दवा कंपनियों की सेहत

बिगड़ेगी दवा कंपनियों की सेहत

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published Published on Mar 31, 2016   modified Modified on Mar 31, 2016
जिंदगी बचाने का दावा करनेवाली दवा ही जब जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे, तो भरोसा किस पर करें? ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाजार में धड़ल्ले से बिक रही सैकड़ों दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है़ इसमें लोकप्रिय एंटीबायोटिक्स, फिक्स डोजेज कंबीनेशन (एफडीसी) और एंटी डायबिटिक दवाएं भी शामिल हैं. सरकार के इस कदम से होनेवाले नुकसान के मद्देनजर दवा कंपनियां सकते में हैं और उन्होंने अदालत की शरण ली है, जहां से उन्हें फौरी तौर पर राहत मिली है, लेकिन अगर सरकार ने कड़ा रुख अपनाया तो प्रतिबंध के कारण उनके पास जो स्टाॅक है उसे लेकर उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है़

उल्लेखनीय है कि एफडीसी दवाओं के लिए ड्रग कंट्रोलर की अनुमति आवश्यक है, जबकि कंपनियां बिना स्वीकृति के ये दवाएं बाजार में बेच रही हैं. गौरतलब है कि एफडीसी दवाइयाें में दो या दो से अधिक एंटीबायोटिक्स और साॅल्ट्स भी मिलाये जाते हैं, जो कई बार बेमेल भी साबित होते हैं. ऐसी दवाइयां कितनी हानिकारक हो सकती हैं, इस बारे में दिल्ली के बीएलके हॉस्पिटल में इंटर्नल मेडिसीन के चेयरमैन डॉ आरके सिंघल कहते हैं कि जिन दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें से एक नाइमस्यूलाइड (एनलजेसिक) और सेराटियोपेप्टीडेज (एंजाइम) का तर्कहीन मिश्रण है़ इसमें जो एंजाइम घटक है, उसे खाना खाने से 30 मिनट पहले लेना चाहिए, जबकि एनलजेसिक को खाने के 30 मिनट बाद़ वह कहते हैं, इन दोनों के मेल से तैयार की गयी दवा को मरीज भला कब खायेगा? और इससे उसकी सेहत सुधरेगी या बिगड़ेगी?

मंत्रालय का कहना है कि 1,000 से अधिक दवाओं पर उसकी नजर है और लगभग 500 या उससे अधिक दवाओं को प्रतिबंधित किया जा सकता है.

जानकारी के मुताबिक, बाजार में इस समय छह हजार से ज्यादा अवैध एफडीसी दवाएं खुलेआम बिक रही हैं. इन्हें भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल डीसीजीआइ की मंजूरी हासिल नहीं है़ कई राज्यों ने अपने स्तर से ही इन्हें बनाने और बेचने की मंजूरी दे रखी है़ आरोप है कि भारत में ये दवाएं बिना ठोस रिसर्च के बनायी जा रही हैं. इनके क्लीनिकल ट्रायल पर भी सवाल उठते रहे हैं.

हालात को महसूस करते हुए 2014 में एफडीसी बनाने वाली कंपनियों से अपनी दवाइयों की दक्षता को साबित करने को कहा गया था.

इसके बाद दवा कंपनियों ने दवाओं की क्षमता के बारे में दावे भेजने शुरू किये. इनकी संख्या छह हजार से ज्यादा थी. इन दावों को चेक करने के लिए सरकार ने पैनल गठित किया. इस पैनल की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने सैकड़ों दवाआें को मानव जीवन के लिए हानिकारक बताते हुए प्रतिबंधित किया़

इस बारे में अंगरेजी पत्रिका 'द वीक' ने अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट में नियमित तौर पर इन प्रतिबंधित दवाइयों का सेवन करनेवाले कुछ लोगों को उद्धृत किया है़ इन्हीं में से एक हैं शेमा सुरेश, जो गले में हल्का सा भी संक्रमण महसूस होने पर कफ सिरप लेती हैं. वह कहती हैं, हम तो ये दवाएं यही मान कर लेते हैं कि ये सरकार की सहमति से बाजार में उतारी जाती हैं,

लेकिन अगर ये दवाएं सच में इतनी खतरनाक हैं तो सरकार इनकी बिक्री की अनुमत कैसे दे सकती है? वहीं, हर हफ्ते-दस दिनों पर सिरदर्द की शिकायत दूर करने के लिए सैरिडॉन की गोली लेनेवाली लक्ष्मी प्रभा कहती हैं, मुझे डर है कि मेरी सबसे भरोसेमंद दवा ने मेरे शरीर को कितना नुकसान पहुंचाया होगा़ क्या यह सच में इतनी खतरनाक थी?

बहरहाल, ग्लोबल आइटी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी आइएमएस हेल्थ की ओर से किये गये 215 दवाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि सरकार के इस कदम से भारत में 1670 ब्रांडों की बिक्री पर पाबंदी लग गयी है़ इन ब्रांडों की दवाओं की सालाना बिक्री करीब 3728 करोड़ रुपये है़ दवाओं पर पाबंदी लगाने के इस निर्णय का सबसे ज्यादा असर फाइजर, अबॉट, यूएसवी, एलकेम, मैनकाइंड और मैकलियोड्स फार्मा पर पड़ने की आशंका है़ इससे फाइजर अपने छह, अबॉट 36 और मैकलियोड्स फार्मा 30 ब्रांडों की बिक्री नहीं कर पायेगी़

इस फैसले का फाइजर पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि वह अपने कफ सिरप- कोरेक्स और कोरेक्स-डीएक्स की बिक्री नहीं कर पायेगी़ इन दोनों ब्रांडों की सालाना बिक्री करीब 423 करोड़ रुपये है़ मैकलियोड्स फार्मा की सबसे चर्चित स्किन क्रीम पेनडर्म प्लस पर भी सरकार ने रोक लगा दी है़ इससे कंपनी को सालाना लगभग 228 करोड़ रुपये की आय होती है़ इसके अलावा, अबॉट के तीन कफ सिरप- फेंसिडिल, टिक्सीलिक्स और टॉससेक्स की बिक्री पर भी रोक लगायी गयी है, जिसका सालाना कारोबार करीब 290 करोड़ रुपये का है. कंपनी की चर्चित एंटीबायोटिक दवा ट्राइबेट, सेमी-ट्राइबेट और ट्राइयोबिमेट पर भी सरकारी रोक लगी है. इन तीनों ब्रांडों में आमतौर पर समान एफडीसी- ग्लिमपिराइड, पियोगलिटेजॉन और मेटाफॉर्मिन की कुल सालाना बिक्री करीब 50 करोड़ रुपये है.

मैनकाइंड फार्मा के 32 ब्रांड्स पर भी रोक लगायी गयी है, जिससे कंपनी को लगभग 234 करोड़ रुपये की बिक्री की चपत लगेगी. कंपनी पर सबसे ज्यादा मार इसके चर्चित कफ सिरप कॉडिस्टार पर रोक लगाने की वजह से पड़ेगी. कंपनी के इस सिरप ब्रांड की सालाना बिक्री करीब 33 करोड़ रुपये है. इसके अलावा, जायडस कैडिला के 49 ब्रांडों पर भी रोक लगायी गयी है. हालांकि इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कंपनी की कुल बिक्री में इन ब्रांडों की बिक्री का हिस्सा काफी कम है.

देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी सन फार्मा की बात करें, तो इसके 28 ब्रांड पाबंदी के दायरे में आयेंगी, जिसकी वजह से कंपनी को सालाना करीब 95.7 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा. कुल मिला कर इस प्रतिबंध से दवा उद्योग को लगभग 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है़ उम्मीद है इससे ये कंपनियां अनाप-शनाप दवाइयां बना कर लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने से चेत जायेंगी़


साभार- प्रभात खबर


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