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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिहार में इंसेफलाइटिस का कहर, अब तक लगभग 150 बच्चों की मौत

बिहार में इंसेफलाइटिस का कहर, अब तक लगभग 150 बच्चों की मौत

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published Published on Jun 19, 2014   modified Modified on Jun 19, 2014

मुजफ्फरपुर: एइएस से नौ और मासूमों की जान चली गयी, जबकि 19 पीड़ितों को एसकेएमसीएच व केजरीवाल में इलाज के लिए भरती कराया गया. मंगलवार से मौसम में आये बदलाव को देखते हुए माना जा रहा था कि बीमारी में कमी आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एसकेएमसीएच में मौत का सिलसिला जारी रहा.

एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में भरती होने वाले नये मरीजों की संख्या में पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ कमी आयी है. कम मरीज आने से डॉक्टर से लेकर प्रशासन को कुछ राहत मिली है. बुधवार को कुल मिलाकर दोनों अस्पतालों में 19 नये बच्चों को इलाज के लिए भरती कराया गया. एसकेएमसीएच में 13 नये बच्चों को भरती कराया गया. केजरीवाल मातृसदन में केवल छह नये बच्चों को भरती कराया गया है. जिले के अस्पतालों में अबतक मरने वाले बच्चों की संख्या 126 तक पहुंच गयी है. केजरीवाल में कुछ बच्चों की सेहत में सुधार होने से इनके परिजनों को चैन मिली है. आठ बच्चे घर भी लौटे. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ गोपाल शंकर सहनी ने बताया कि एक सप्ताह में अच्छी बारिश हुई तो बीमारी में काफी कमी आ जायेगी.

कल मुजफ्फरपुर आएंगे डॉ हर्षवर्धन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन 20 व 21 जून को मुजफ्फरपुर में फैले एइएस से पीड़ित बच्चों से मिलेंगे. वे उन चिकित्सकों से भी बात करेंगे,जो एइएस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. इसके बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री से विभाग की तैयारी की जानकारी लेंगे. साथ ही प्रस्तावित वायरोलॉजिकल लैब पर भी चर्चा होगी. मेडिकल कॉलेजों में भी जाने की उम्मीद है.

18वें दिन दोबारा एइएस की चपेट में आयी दिव्या
मुजफ्फरपुर: एइएस से पीड़ित दिव्या ठीक होने के 18वें दिन फिर एइएस की चपेट में आ गयी. डेढ़ वर्षीया दिव्या को एसकेएमसीएच के पीआइसीयू में भरती कराया गया है. दिव्या मुसहरी प्रखंड के भुसाही निवासी विजय महतो की पुत्री है. इसकी नानी चंद्र मिला देवी व मां रागिनी देवी भी यहां दिव्या के साथ हैं. 

इसे एइएस ने दोबारा चपेट में ले लिया है. मां व नानी को  दिव्या की हालत ठीक होने का इंतजार है. टकटकी लगा बैठी है. दिव्या की नानी चंद्र मिला देवी बताती है कि 31 मई को केजरीवाल मातृसदन में भरती कराया गया था. वहां से सात दिन इलाज के बाद घर लौटे. बच्चे की हालत ठीक थी. लेकिन अचानक बुधवार को फिर एकाएक शरीर चमकने लगा. हाथ पांव फैलाने लगी. तेज बुखार आ गया. आंख नहीं खोल रही थी. इसके बाद इसे यहां दोबारा भरती कराया गया. रागिनी बताती है कि बच्चे को डॉक्टर के निर्देशानुसार दवा खिलाया जा रहा था. फिर भी इसकी हालत खराब हो गई.

चार दिन से भरती खुरखुर की आंख तक नहीं खुली : एसकेएमसीएच में सीतामढ़ी के परसौनी निवासी सुरेंद्र साह का पोता खुरखुर कुमार का इलाज चल रहा है. लेकिन

अब तक आंख नहीं खोल रहा है. परिजन काफी चिंतित है. सुरेंद्र साह बताते हैं कि आसपास का दृश्य देख जी दहल जाता है. लेकिन क्या करें, इलाज होने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है. यहीं पर बैठे मुकेश पासवान बताते हैं कि उनकी भांजी रू पकला भी चार दिनों से भरती है. लेकिन अब तक आंखें नहीं खुल रहा है. अब कहां जाये, समझ नहीं आता?

इ त देवता जैसे खेलबइछई : पीआइसीयू तीन में कांटी की चमेली देवी व लाडली देवी सुमन का इलाज करा रही है. सुमन यहां पांच दिनों से भरती है. चमेली देवी बताती है कि इ त देवता जैसे खेलबइछई. रहते रहते खेलावे लगइछई. दवा चल रहल हई. बाकी हालत सुधर न रइल हई. विवेक भी यहां 16 जून से भरती है. लामापुर निवासी महेंद्र राय बताते हैं कि उनके नाती विवेक की हालत कभी-कभी काफी खराब हो जाता है. उसे चमकी हो जाती है. शरीर चमकने लगता है. मुंह से लार भी गिरने लगता है. इसकी सेहत में मामूली सुधार है. हाथ पांव सीधा करने लगता है.

गुंजा को देखने पहुंची नानी, मौसी व मामी
मुजफ्फरपुर. एसकेएमसीएच के पीआइसीयू वार्ड तीन में सात वर्षीया गुंजा कुमारी का इलाज चल रहा है. उसके साथ वार्ड में मां राजो देवी मौजूद है. चिकित्सक गुंजा को ग्लूकोज चढ़ा रहे हैं. बीच-बीच में उसे अन्य दवाएं भी दी जा रही है. ठीक इसी समय वार्ड के बाहर आधा दर्जन महिलाएं खड़ी हैं, जो एकटक वार्ड के गेट में लगे शीशे से अंदर झांक रही है. सबकी एक ही इच्छा है गुंजा जल्दी से ठीक होकर वापस चले. पूछने पर पता चला कि बाहर जो महिलाएं खड़ी हैं, उसमें कोई गुंजा की नानी, कोई मामी तो कोई मौसी है. साथ में आस-पड़ोस की महिलाएं भी हैं. गुंजा पानापुर नरियार निवासी रामस्वरू प राम की पुत्री है. रामस्वरू प मजदूरी करता है. बुधवार की सुबह सो कर उठने के साथ ही गुंजा चौंकने लगी. मां राजो देवी की जब उस पर नजर पड़ी तो पड़ोसियों की मदद से परिजनों ने गुंजा को बाइक पर बैठा कर केजरीवाल अस्पताल ले गये. पर वहां के डॉक्टरों ने उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया. वहां भी उसका सही इलाज नहीं हो सका व पांच घंटे अस्पताल में रखने के बाद डॉक्टरों ने उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया. उसे सरकारी एंबुलेंस से अस्पताल लाया गया. नानी पानबती देवी ने बताया, मंगलवार की रात गुंजा अप्पन माय के साथ सुतलक्ष्. सुबह जगलक्ष् तù बुखार के साथ चौंके भी लगलक्ष्. दामाद आ बेटी ओकरा लेकù अस्पताल आगेलक्ष्. नौ घंटा बित गेलअइ, अभी तक ओकरा होश न हइ. केन्हतो उ जल्दी से ठीक हो जाये आ घर चली. उ सब के दुलरुआ है. ओकरा देखे लेल इहो (बगल में खड़ी महिलाओं की ओर इशारा करते हुए) सब आयल हइ. पूछने पर पता चला की साथ में खड़ी महिलाओं में गुंजा की चचेरी नानी सुमारी देवी, मामी सीता देवी, मौसी फूलवती देवी भी शामिल थी.

एइएस से ग्रसित 278 बच्चे स्वस्थ
मुजफ्फरपुर: जिले में एइएस बीमारी से ग्रसित अब तक 278 बच्चों को इलाज के बाद ठीक किया गया है. डीडीसी कंवल तनुज ने बताया कि बच्चों का इलाज युद्ध स्तर पर चल रहा है. अब तक एइएस से ग्रसित 587 पीड़ितों को इलाज के लिए भरती किया गया है. इसमें से 278 बच्चों को ठीक किया गया है. जबकि, 104 की मृत्यु हो गयी. इनमें 59 मुजफ्फरपुर जिले व बाकी बच्चे दूसरे जिले के हैं. वहीं अभी 61 बच्चों का इलाज तीनों अस्पताल के आइसीयू में चल रहा है.

डीडीसी ने बताया कि केजरीवाल, एसकेएमसीएच व सदर अस्पताल समेत सभी प्राथमिक व अतिरिक्त प्राथमिक केंद्रों में मंगलवार की सुबह छह बजे से बुधवार शाम तीन बजे तक 58 बच्चों को एडमिट किया गया. इनमें से की मृत्यु हो गयी. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 222 मामले आये. इनमें पांच की मृत्यु हुई है. वहीं एसकेएमसीएच में तीन अतिरिक्त बेड व दो आइसीयू बढ़ाये गये हैं. इनमें नौ-नौ बेड लगे हैं.

डीडीसी ने बताया कि जिले के 99 गांवों में 709 स्थलों पर माइक से प्रचार-प्रसार कर लोगों को जागरूक किया गया है. शुद्ध पेय जल के लिए गांवों में काफी संख्या में पंपसेट का भी वितरण किया गया है. इधर, बुधवार की शाम डीडीसी ने वरीय उप समाहर्ताओं के साथ बैठक कर जिले में एइएस को लेकर चल रहे प्रशासनिक प्रचार-प्रसार की समीक्षा कर रिपोर्ट ली.

हड़ताल पर गये पीआरएस के खिलाफ होगी कार्रवाई : अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर गये मनरेगा के पंचायत रोजगार सेवकों के खिलाफ जिला प्रशासन सख्त कार्रवाई करेगा. इसकी कवायद शुरू हो गयी है. कई सेवकों के खिलाफ डीडीसी ने कार्रवाई भी कर दी है. डीडीसी कंवल तनुज ने बताया कि एक सप्ताह तक बिना बताये गायब रहने वाले सेवकों का अनुबंध स्वत: समाप्त करने का प्रावधान है. पीआरएस के हड़ताल पर जाने से जिले का विकास बाधित हो रहा है तो यह सरकार के हित में ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि वे इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे. इसके लिए जल्द ही विभाग को पत्र लिख दिशा-निर्देश मांगा जायेगा.

झारखंड में एइएस से एक की मौत

रांची . झारखंड में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) की चपेट में आने से गिरिडीह के 10 वर्षीय बच्चे आशीष कुमार की मौत हो गयी है. रिम्स के शिशु विभाग में 15 जून की रात को इस बच्चे की मौत हो गयी. वह करीब एक माह से यहां इलाजरत था. रिम्स के चिकित्सकों ने उसे बचाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. रिम्स के शिशु विभाग में इंसेफ्लाइटिस की चपेट में आये दो और बच्चों का इलाज चल रहा है. डॉक्टरों के अनुसार, उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है. खूंटी निवासी 12 वर्षीया मीरा कुमारी एवं पुरुलिया निवासी बोमा माली का इलाज चल रहा है. मीरा कुमारी को पीएससीयू में रखा गया है.

कुढ़नी.  महंत मनियारी हाइ स्कूल चौक स्थित गांव में बलींद्र शर्मा के पुत्र रविराज में एइएस के लक्षण मिलने पर एसकेएमसीएच रेफर कर दिया गया.

साहेबगंज में छह संदिग्ध मिले
साहेबगंज. पीएचसी में बुधवार को एइएस के छह मरीज पहुंचे. इसमें चैनपुर के शैलेंद्र दास का साढ़े तीन वर्षीय पुत्र गोलू कुमार, खोडीपाकड़ के दिनेश सहनी का दो वर्षीय पुत्र साजन कुमार, प्रतापपट्टी के देवानंद कुमार का दो वर्षीय पुत्र प्रीतम आनंद, दोस्तपुर के मुन्ना यादव का दो वर्षीय पुत्र अजय कुमार, सुबोध महतो के 11 माह की पुत्री पुष्पा कुमारी व अवधेश महतो का 4 वर्षीय पुत्र मोनू कुमार शामिल हैं. चिकित्सक ने प्राथमिक उपचार के बाद साजन कुमार को एसकेएमसीएच रेफर कर दिया, जबकि बाकी पांच मरीजों के उपचार के बाद घर भेज दिया. उधर, माधोपुर हजारी के सिकंदर राय की पुत्री सोनी कुमारी (11 वर्ष) की मौत तेज बुखार के कारण हो गई.  मुरौल पीएचसी में बुधवार को एइएस से पीड़ित एक बच्ची को भरती कराया गया. चिकि त्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे एसकेएमसीएच रेफर कर दिया. बच्ची की पहचान रैनी गांव निवासी संतोष राम की पुत्री सोनाक्षी कुमारी (9)के रूप में की गयी है.

एइएस से बचाव को सफाई व जागरूकता जरूरी
एइएस का बढ़ रहे प्रकोप को देखते हुए बचाव व लोगों के बीच जागरूकता फैलाने को लेकर डीएम अनुपम कुमार की अध्यक्षता में बुधवार को जिला शांति समिति की बैठक हुई. इसमें डीडीसी, वरीय पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त के अलावा शहरी इलाके के सभी थानेदार, सिविल सजर्न व जिला शांति समिति के सदस्य मौजूद थे. बैठक में दो दशक से एइएस के प्रकोप से जिले में मर रहे बच्चे की संख्या पर काबू पाने के लिए रास्ता खोजने पर विस्तार से चर्चा हुई.

इस दौरान कई सदस्यों ने लीची को एइएस से जोड़ने पर भी सवाल उठाये. इस पर डीएम ने स्पष्ट किया कि लीची से एइएस का कोई संबंध नहीं है. लोगों ने शहर में जगह-जगह गंदगी का अंबार व जलजमाव को लेकर भी नाराजगी जाहिर की. डीएम से नगर-निगम को समाप्त कर खुद से इसकी मॉनीटरिंग करने का आग्रह किया. इसके बाद डीएम ने नगर आयुक्त को एक सप्ताह के भीतर खुद से शहर का भ्रमण कर गंदगी व जलजमाव को हटाने का निर्देश दिया. वहीं सीएस को ब्लीचिंग पाउडर व डीडीटी का छिड़काव नियमित कराने को कहा गया है.

गांवों में जाकर लोगों को करें जागरूक
एइएस से बचाव के लिए डीएम ने कहा, सबसे ज्यादा जागरूकता आवश्यक है. उन्होंने सभी थानेदार को अपने इलाके में बैनर-पोस्टर के माध्यम से जागरूकता फैलाने का निर्देश दिया. वहीं शांति समिति के सदस्यों से भी शहर से लेकर गांव तक में अपने स्तर से लोगों को जागरूक करने का आग्रह किया. ताकि, बुखार, सर्दी या किसी भी तरह की कोई शिकायत मिलती है, तो परिजन बच्चों को तुरंत नजदीक के सरकारी अस्पतालों में भरती करायें.

साथ ही ग्रामीण इलाके के लोगों को अपने बच्चों को पानी उबाल कर पीने के लिए देने का आग्रह किया गया है. पीएचइडी के द्वारा गाड़े गये चापाकलों की जांच करा मापदंडों से कम गहराई वाले चापाकलों को चिह्न्ति कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष मोतीलाल छापड़िया ने कहा कि जिले में ओआरएस की कमी होती है, तो इसकी उपलब्धता चैंबर ऑफ कॉमर्स करायेगा.

क्या है इंसेफलाइटिस
इंसेफलाइटिस मच्छर काटने से होने वाली बीमारी है. यह वायरल एवं बैक्टीरियल दोनों प्रकार के संक्रमण से होता है. इसे दिमागी बुखार भी कहते है. इसकी चपेट में आने पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. यह दिमाग पर ज्यादा असर डालता है. यह बीमारी बच्चों में अधिक होती है.

लक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि बच्चे की मौत इंसेफलाइटिस से हुई है. उसे बचाने की पूरी कोशिश की गयी थी, लेकिन परिजन स्थिति बिगड़ने पर अस्पताल लाये थे.         
डॉ मिन्नी रानी अखौरी, शिशु चिकित्सक

टीका है उपलब्ध
इंसेफलाइटिस से बचने के लिए टीका मौजूद है. यह एक साल के बच्चे को कभी भी लगाया जा सकता है. टीका के दो डोज होते हैं, जिसे एक माह के अंदर लगाना होता है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/123272-Bihar-Muzaffarpur-Infeslaitis-disease-child-150-deaths.html


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