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न्यूज क्लिपिंग्स् | बीआरजीएफ के सबूत मिटा रहे घोटालेबाज

बीआरजीएफ के सबूत मिटा रहे घोटालेबाज

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published Published on May 17, 2013   modified Modified on May 17, 2013
आनंद राय, लखनऊ । बसपा सरकार में हुए घोटालों के सबूत मिटाये जा रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले से जुड़ी महत्वपूर्ण फाइल गायब होने के बाद अब पिछड़ा क्षेत्रीय अनुदान निधि (बीआरजीएफ) के भी अहम दस्तावेज ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। बीआरजीएफ घोटाले की जांच कर रही कोआपरेटिव सेल की एसआइबी इस सिलसिले में जल्द ही कड़ा कदम उठाने जा रही है।

क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने सूबे के 34 जिलों में बीआरजीएफ मद से सालाना छह सौ करोड़ रुपये दिए। इस योजना के तहत पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने के लिए कैपसिटी डेवलपमेंट आफ लोकल गवर्नेस (सीडीएलजी) और प्लान प्लस जैसे वर्कशाप आयोजित किये जाने थे। इस मद में भी भारी भरकम धनराशि मिली, लेकिन गिद्ध दृष्टि जमाये विभागीय अफसरों ने इसकी बंदरबांट कर ली। फिर कागजी कोरम पूरा कर प्रशिक्षण संपन्न करा लिया और पैसा हजम करने के लिए सारी नैतिकता ताक पर रख दी। इस घोटाले से जुड़े दस्तावेज इस समय उपलब्ध नहीं हैं। जन सूचना अधिकार के तहत जब पूछा गया कि प्लान प्लस कार्यशाला का आयोजन किसने किया?

2009 में होटल ताज में प्लान प्लस कार्यशाला किस संस्था द्वारा आयोजित की गयी और सीडीएलजी कार्यशाला का आयोजन किसके द्वारा किया गया? तो विभाग ने बहुत सारे सवालों का जवाब यह कहते हुए नहीं दिए कि पत्रावली उपलब्ध नहीं है। यह सूचना मांगे अरसा बीत गया और अब खबर यह है कि उप निदेशक पद से हटाये गये एक अधिकारी इन दस्तावेजों में हेरफेर कर रहे हैं।

इन दस्तावेजों में छिपा घोटाले का रहस्य : यूपीएलसी : हार्डवेयर: 6107 (5) दिनांक : 18 मई, 2009, संदर्भ : यूपीएलसी : इनोटेक 0019/09 दिनांक 19 अगस्त 2009, यूपीएलसी : इनोटेक 0028/09 दिनांक 28 अक्टूबर, यूपीएलसी लैब 52 (09) दिनांक 11 अगस्त जैसे कई पत्र इन दिनों मौजूद नहीं हैं। यह पत्र प्रमुख सचिव पंचायती राज को भेजे गये थे, जिनमें इनोटेक को प्रशिक्षण कराने संबंधी आदेश लिए गये थे। इनके अलावा और भी कई अहम साक्ष्य इन्हीं पत्रों में छिपे हैं।

बीवी की कंपनी को दे दिया ठेका : दरअसल उपरोक्त गायब दस्तावेज ही बीआरजीएफ के घोटाले का राजफाश करने की सबसे अहम कड़ी हैं। यह पैसों के लिए नैतिकता को ताख पर रखने और भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण भी है। पंचायती राज में प्रबंध निदेशक रहते हुए डीएस श्रीवास्तव ने इनोटेक नामक एक संस्था को प्रशिक्षण कराने की जिम्मेदारी सौंपी। इस संस्था में श्रीवास्तव की पत्नी निदेशक थीं। हालांकि एक जांच के दौरान डीएस श्रीवास्तव ने अपनी पत्नी के इस संस्था में निदेशक होने से लिखित रूप से इंकार किया है।

उन्होंने सफाई दी कि 12 दिसंबर 2008 को ही उनकी पत्नी ने इस संस्था के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि इनोटेक को बाद में कार्य दिए गये। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने इसी संस्था को ठेका क्यों दिया। मान लिया जाय कि उनकी पत्नी ने संस्था से इस्तीफा दे दिया तो भी यह बात कोई भी समझ सकता है कि जिस संस्था से उनकी पत्नी जुड़ी, वह जरूर उनके करीबियों की थी।

चाय लंच के लिए इनोटेक को 32.67 लाख का भुगतान

इनोटेक संस्था को किस तरह भुगतान किये गये, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि लखनऊ, वाराणसी, आगरा, गोरखपुर, चित्रकूट और मुजफ्फरनगर में शासकीय अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित एक दिवसीय कार्यशाला के खर्च और चाय लंच पर 32 लाख 67 हजार 415 रुपये के भुगतान के लिए डीएस श्रीवास्तव ने बतौर प्रबंध निदेशक प्रमुख सचिव को पत्र लिखा। इतना ही नहीं प्लान प्लस साफ्टवेयर पर 12 व 13 अगस्त 2009 को राजधानी के कैसरबाग में आयोजित एक वर्कशाप के लिए 76 हजार रुपये खर्च किये गये।

प्रवीण कुमार को उपनिदेशक का दायित्व किसने सौंपा

इस पूरे खेल में अहम सवाल है कि बीआरजीएफ के उप परियोजना निदेशक का दायित्व प्रवीण कुमार को किसने सौंपा, जबकि उनकी तैनाती अभियंता के पद पर है। सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन प्रबंध निदेशक डीएस श्रीवास्तव के ही आदेश से प्रवीण कुमार को उपनिदेशक का दायित्व दिया गया। प्रवीण कुमार पर कई गंभीर आरोप हैं। यहां तक कि प्रशिक्षण के मद में भी हेराफेरी के आरोप प्रवीण कुमार पर ही लगे हैं। प्रवीण का असर इतना कि बीते दिनों बीआरजीएफ घोटाले की जांच के लिए समिति बनी तो उन्हें इसका सदस्य बना दिया गया। हो हल्ला मचने पर पंचायती राज मंत्री बलराम यादव ने न केवल प्रवीण कुमार को समिति से बाहर कराया, बल्कि उन्हें उपनिदेशक पद से हटाने के निर्देश दिए। मंत्री के निर्देश पर प्रमुख सचिव ने प्रवीण कुमार का उपनिदेशक का दायित्व छीन लिया।


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