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न्यूज क्लिपिंग्स् | बुखार का कहर: 7 साल, 5000 मौत, सुधार के सिर्फ दावे- अजयेंद्र राजन

बुखार का कहर: 7 साल, 5000 मौत, सुधार के सिर्फ दावे- अजयेंद्र राजन

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published Published on Sep 14, 2012   modified Modified on Sep 14, 2012

लखनऊ. जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) पिछले करीब एक दशक से पूर्वी उत्तर प्रदेश में काल बनकर कहर बरपा रहा है। पिछले सात सालों में इसने पूर्वांचल के करीब 5000 लोगों की जान ले ली है। पिछले आठ महीनों में ही करीब 292 लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। इसी क्रम में गुरुवार को गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में दिमागी बुखार से पीडि़त पांच बच्चों की उपचार के दौरान मृत्यु हो गई।

 

मामले में प्रदेश सरकार दावे कर रही है कि वह इस महामारी से निपटने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। लेकिन मौतों का सिलसिला लगातार जारी है। उधर गोरखपुर दौरे पर आए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने प्रदेश सरकार के ढुलमुल रवैये से क्षुब्ध होकर प्रदेश के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को समन जारी कर दिया है। कहा है कि प्रमुख सचिव आयोग के समक्ष पेश होकर दिमागी बुखार के रोकथाम के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों पर स्पष्टीकरण दें।

 

गोरखपुर मंडल के स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक दिवाकर प्रसाद के मुताबिक उपचार के दौरान मस्तिष्क ज्वर से गुरुवार को मरने वाले बच्चों में गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, कुशीनगर व सिद्र्धानगर जिले का एक-एक बच्चा है। उन्होंने बताया कि एक जनवरी से अब तक दिमागी बुखार से पीडि़त 1820 रोगियों को विभिन्न सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जिनमें 292 मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। इस समय 344 मरीज भर्ती हैं। पिछले 24 घंटे के दौरान मेडिकल कालेज में 62 नए रोगियों को भर्ती किया गया है।

 

उन्होंने बताया कि बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में इस साल पूर्वांचल के अलावा बिहार और पड़ोसी देश नेपाल के भी मरीज इलाज के लिए आए। इनमें बिहार के 157 मरीजों में से 25 और नेपाल के छह में दो मरीजों की मौत हो चुकी है। जानकार कहते हैं कि ये आंकड़े तो सरकारी अस्पतालों के हैं। कई मरीज इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों या नर्सिग होम का सहारा लेते हैं। अगर उन्हें भी शामिल किया जाए तो आंकड़े कई गुना बढ़ सकते हैं।

 

वैसे स्वास्थ्य विभाग इसी से खुश है कि 2005 में जेई से हुई मौत के 35.88 प्रतिशत के आंकड़े में 2 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन विभाग के पास एईएस के बढ़े आंकड़े का कोई जवाब नहीं है। प्रदेश की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. विभा लाल एईएस के केसों में तेजी हो रहे इजाफे से चिंतित हैं। पिछले साल एईएस से जहां 85 लोगों की मौत हुई, वहीं इस साल अगस्त तक यह संख्या 200 पार कर चुकी है।

 

डॉ. विभा लाल कहती हैं कि इसकी वजह का अभी तक पता नहीं चल सका है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में परीक्षण किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पब्लिक को हाइजीन और सफाई को लेकर जागरूक करने का प्रोग्राम भी शुरू किया है। वहीं अखिलेश यादव सरकार ने पूर्वांचल के जिलों में स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत करने के लिए 200 करोड़ रुपए भी एलॉट किए हैं।

 

पिछले हप्ते जिन 13 लोगों की मौत हुई उनमें गोरखपुर की 8 साल की रीमा व 8 साल के रविकिशन, देवरिया की 11 वर्षीय मनीषा व 6 साल की प्रीति, महराजगंज के 7 साल के आदित्य व 4 वर्षीय के शुभम, कुशीनगर के 3 साल के रेहान व 4 साल के सुहेल, संतकबीरनगर की 36 की संगीता, 5 वर्षीय प्रिया व 6 साल के प्रांजल, सिद्धार्थनगर के 17 वर्षीय धर्मेन्द्र व बिहार के 8 साल के रविन्द्र शामिल हैं। उधर इंसेफेलाइटिस के साथ ही अन्य मरीजों की बढ़ती भीड़ से बाल रोग विभाग में मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है। विभाग में वार्डो में मौजूद 182 बेडों पर मरीजों की तादाद 512 तक पहुंच गई है।

 

प्रमुख सचिव को समन भेजा राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दिमागी बुखार से हर साल हो रही सैकड़ों बच्चों की मौत पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने सख्त कदम उठाये हैं। आयोग ने मौतों को रोक पाने में विफल रही उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को समन जारी किया है। समन में निर्देश दिए गए हैं कि आयोग के समक्ष पेश होकर दिमागी बुखार के रोकथाम के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों पर स्पष्टीकरण दें।

 

गोरखपुर और कुशीनगर के दौरे पर आए आयोग के सदस्य डॉ. योगेश दुबे ने कहा है कि प्रदेश सरकार दिमागी बुखार के प्रति गंभीर नहीं है। जिस तरह से इस महामारी के खिलाफ काम होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। आयोग इस पर गंभीर है इसीलिए प्रदेश के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को दिल्ली तलब किया गया है। उन्होंने कहा की आयोग की टीम ने दिमागी बुखार से प्रभावित गांवों, कस्बों और विकास खण्डों का दौरा किया। हमें देखने को मिला की जिस ढंग से काम होना चाहिए वह नहीं हुआ है।

 

उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा की आयोग ने इस बीमारी के सन्दर्भ में प्रदेश सरकार को जो संस्तुतियां भेजीं, सरकार ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण है कि आयोग को विवश होकर अपने सिविल कोर्ट के अधिकार का इस्तेमाल कर प्रमुख सचिव स्वस्थ को समन भेजना पड़ा है।


http://www.bhaskar.com/article/UP-japanese-encephalitis-patient-and-death-in-up-3786985.html


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