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न्यूज क्लिपिंग्स् | बेलगाम हो जाएंगी चीनी मिलें- महक सिंह

बेलगाम हो जाएंगी चीनी मिलें- महक सिंह

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published Published on Apr 17, 2013   modified Modified on Apr 17, 2013
रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी। इसी के आधार पर सरकार ने चीनी उद्योग को आंशिक रूप से नियंत्रण मुक्त करने के फैसले को मंजूरी दे दी है। मगर यह फैसला गन्ना किसानों या उपभोक्ताओं के नहीं, चीनी मिलों के पक्ष में है।

लेवी चीनी बेचने की बाध्यता समाप्त करने से चीनी मिलों को कम से कम 10 प्रतिशत लाभ होगा। चीनी रिलीज ऑर्डर नहीं होने और चीनी को बाजार के हवाले करने से, खासतौर पर त्योहारों के मौके पर, चीनी मिलें मनमानी करेंगी और अपना कॉकस बनाकर चीनी की कीमतें बढ़ा सकती हैं, जिसका सीधा खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा।

इससे खुले बाजार में चीनी के दामों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा और सरकार के पास इस उतार-चढ़ाव को रोकने का कोई उपाय नहीं होगा। इसी तरह आयातित चीनी पर आयात शुल्क केवल 10 प्रतिशत रखने से चीनी मिलें कच्ची चीनी का आयात भी कर सकती हैं। इसका खामियाजा गन्ना उत्पादक किसानों को भुगतना पड़ेगा।

गन्ना मूल्य निर्धारण का जो अधिकार राज्य सरकारों को राज्य परामर्शी मूल्य (एसएपी) के रूप में है, उसे समाप्त करने की सिफारिश भी रंगराजन समिति ने की थी, जिसे स्वीकार नहीं किया गया है। साथ ही चीनी मिलों के बीच की दूरी भी यथावत रखी गई है। कृषि विशेषज्ञों व किसानों के प्रबल विरोध के कारण ही ऐसा संभव हो पाया है।

समिति की सिफारिश में गन्ने की कीमत को शुगर रिकवरी से जोड़ने का प्रस्ताव भी रखा गया था, जो उत्तर भारत के गन्ना किसानों के हितों के विरुद्ध था। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि चीनी क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता है, जिससे गरीब जनता को सस्ती चीनी मिले और गन्ना मिलों को कोई नुकसान न हो। परंतु चीनी नीति में गन्ना उत्पादक किसानों के हितों की अनदेखी कर दी गई है।

गन्ना उत्पादक किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं दिया गया है और उसके गन्ना मूल्य का भुगतान भी समय पर नहीं किया जा रहा है। इससे किसान बरबाद हो सकते हैं। कुछ नेताओं की इस दलील में कोई दम नहीं है कि चीनी को आंशिक रूप से नियंत्रण मुक्त करने से किसानों को भुगतान में मदद मिलेगी। क्या वह बता सकते हैं कि किसान को निर्धारित गन्ना मूल्य के अतिरिक्त कोई खैरात दी जा रही है?

यह भी विचारणीय विषय है कि केंद्र सरकार का उचित और लाभकारी गन्ना मूल्य, जो वर्तमान वर्ष के लिए 170 रुपये प्रति क्विंटल है, न तो उचित है और न ही लाभकारी। यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित गन्ना मूल्य 280-290 रुपये प्रति क्विंटल से भी 110-120 रुपये कम है। पिछले एक वर्ष में मजदूरी, डीजल, उर्वरक, जुताई और कटाई की कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे गन्ने के उत्पादन मूल्य का आकलन पिछले वर्ष के 270 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 314 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।

इस प्रकार किसान को उत्पादन लागत से भी कम गन्ना मूल्य मिल रहा है, जबकि राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ. स्वामीनाथन की सिफारिश के अनुसार, सरकार को उत्पादन लागत से डेढ़ गुना गन्ना मूल्य निर्धारित करना चाहिए। देश में चीनी की आवश्यकता 220 लाख टन है, जबकि उत्पादन 250 लाख टन। गोदामों में पिछले वर्ष का 60 लाख टन भी मौजूद है। फिर विदेशों से आयात शुल्क घटाकर कच्ची चीनी का आयात क्यों किया जा रहा है, यह समझ से परे है।

चीनी मिलें गन्ने के रिजर्व क्षेत्र को मुक्त कराकर इस कानून से निजात पाना चाहती हैं। यदि इस पर अमल हो गया, तब चीनी मिलें 15 किलोमीटर के दायरे से बाहर भी मनमाने क्षेत्रों से गन्ना खरीद सकेंगी। इससे मिलों के सामने गन्ना खरीद क्षेत्र के लिए टकराव होगा और निजी मिलों की प्रतिस्पर्धा में सहकारी क्षेत्र की मिलें नहीं टिक पाएंगी। उत्तर प्रदेश गन्ना (पूर्ति एवं खरीद विनियमन) अधिनियम के अनुसार, चीनी मिलों को एक विशिष्ट क्षेत्र से गन्ना खरीद का अधिकार है। इसके समाप्त हो जाने से कुछ किसानों का गन्ना खेतों में खड़ा रह सकता है।


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/mahak-singh/sugar-mills-will-become-uncontrolled/


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