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न्यूज क्लिपिंग्स् | बैंकों के विलय पर टिकी उम्मीद-- सतीश सिंह

बैंकों के विलय पर टिकी उम्मीद-- सतीश सिंह

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published Published on Jun 29, 2017   modified Modified on Jun 29, 2017
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय का मन बना लिया है। इसलिए उसने नीति आयोग से इस मसले पर अनुशंसाएं आमंत्रित की हैं और रिजर्व बैंक को भी इस संबंध मेंसुझाव देने के लिए कहा है। वर्तमान में सरकार चार बड़े और छह छोटे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करना चाहती है। चिह्नित किए गए छह छोटे बैंकों में यूनाइटेड बैंक आॅफ इंडिया, यूको बैंक, यूनियन बैंक इंडिया तथा बड़े बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक आॅफ बड़ौदा, केनरा बैंक आदि शामिल हैं। लेकिन विलय की खबर से विलय के लिए चिह्नित बैंकों मसलन बैंक आॅफ बड़ौदा, केनरा बैंक, विजया बैंक, देना बैंक, बैंक आॅफ महाराष्ट्र आदि के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई है। इधर, वित्तवर्ष 2017 में भारतीय स्टेट बैंक का खुद का प्रदर्शन उम्दा होने के बावजूद सहयोगी बैंकों के कमजोर प्रदर्शन के कारण स्टेट बैंक समूह का समग्र परिणाम खराब रहा है। पर सरकार इसे अस्थायी कारक मान रही है और उसका मानना है कि आने वाले दिनों में एकीकरण की वजह से भारतीय स्टेट बैंक के प्रदर्शन में सुधार होगा।


विलय के संबंध में पहले भी कई सुझाव दिए गए थे। वर्ष 1998 में रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर एम नरसिम्हन ने कहा था कि भारत में बैंकों का त्रिस्तरीय ढांचा- जैसे शीर्ष स्तर पर तीन बड़े बैंक, दूसरे स्तर पर दस राष्ट्रीय बड़े बैंक और तीसरे स्तर पर सभी क्षेत्रीय और स्थानीय बैंक- होना चाहिए। फिलवक्त, सरकार के पास सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के संबंध में सबसे व्यावहारिक सुझाव आरएस गुजराल की अध्यक्षता में बनी समिति की रिपोर्ट है। समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2012 में दी थी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आपस में मिलाकर सात बड़े बैंक बनाने का सुझाव दिया गया था। भारत में फिलहाल सात बड़े आकार व पूंजी वाले बैंक, जैसे भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आॅफ इंडिया, बैंक आॅफ इंडिया, सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया, केनरा बैंक और बैंक आॅफ बड़ौदा हैं, लेकिन सरकार का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए देश में इनसे बड़े बैंकों की जरूरत है, जिनकी पहचान विश्वस्तरीय हो। गौरतलब है कि सहयोगी बैंकों के विलय के बाद भारतीय स्टेट बैंक वैश्विक स्तर पर पचास बड़े बैंकों की श्रेणी में आ गया है।


सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय का खाका बैंक बोर्ड ब्यूरो ने तैयार किया है और इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को छह समूहों में बांटा गया है। बैंकों के समूहों का निर्णय मानव संसाधन, ई-गवर्नेंस, आंतरिक लेखा-परीक्षा, धोखाधड़ी, सीबीएस (कोर बैंकिंग सोल्यूशन) तथा वसूली को आधार बना कर लिया गया है। भले ही सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के लिए जल्दी कर रही है, लेकिन इस मामले में मुश्किलें कम नहीं हैं, मसलन कर्मचारियों का एकीकरण, पेंशन निपटान, जवाबदेही का निपटान, फंसे हुए कर्ज को सुसंगत करना, सूचना व प्रौद्योगिकी, वेतन व भत्ते, प्रणाली, आदि में एकरूपता का न होना, आदि। वैसे यूनियन को विलय के लिए राजी करना, कर्मचारियों के फिटमेंट में विसंगति की स्थिति में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था आदि भी महत्त्वपूर्ण अड़चनें हैं। पूर्व में दो सरकारी उपक्रमों एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइंस के विलय में सबसे बड़ा रोड़ा कर्मचारियों का एकीकरण ही रहा था और आज मुख्य तौर पर इसी वजह से यह पुन: बंद होने के कगार पर आ गया है।


फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की समस्या के कारण कुछ सालों से सरकारी बैंकों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुनाफे में जबर्दस्त सेंध लगाई है, जिसके कारण बैंक ऋण वितरण का कार्य नहीं कर पा रहे हैं। सरकारी बैंकों का एनपीए 6 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। केवल वित्तवर्ष 2016-17 में एनपीए में 1 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। संक्रमण के ऐसे दौर में बैंकों को बासेल तृतीय के मानकों को वर्ष 2019 तक पूरा करने के लिए लगभग 5 लाख करोड़ रुपए की जरूरत है। जाहिर है, पूंजी की कमी को एकीकरण की मदद से कुछ हद तक दूर किया जा सकता है, क्योंकि इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना बैकों और सरकार, दोनों के लिए आसान नहीं है। वैसे, कुछ लोगों मानना है कि विलय से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और सरकार को राहत नहीं मिल पाएगी, क्योंकि फंसे हुए कर्ज के कारण कई बैंक कमजोर हो चुके हैं और कमजोर बैंक के साथ मजबूत बैंक का विलय करने से मजबूत बैंक के प्रदर्शन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि वित्तवर्ष 2017 में सहयोगी बैंकों के कमजोर प्रदर्शन से भारतीय स्टेट बैंक का बढ़िया प्रदर्शन फीका पड़ गया है।

देखा जाए तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की राह में सबसे बड़ी बाधा एनपीए है, लेकिन इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। सरकार एनपीए पर नियंत्रण करने के लिए एक नई नीति भी लेकर आई है। इधर, रिजर्व बैंक की अगुआई में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बारह बड़े चूककर्ताओं (डिफाल्टर्स) से वसूली की तैयारी कर रहे हैं, जिनसे कुल एनपीए के पच्चीस प्रतिशत यानी लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपए की वसूली की जा सकती है। बैंकों के विलय के बाद परिचालन लागत व दूसरे खर्चों में कमी, लाभ में बढ़ोतरी, प्रदर्शन में बेहतरी, पूंजी निर्माण में तेजी आदि संभव हो सकेंगे। इससे प्रशिक्षित मानव संसाधन में बढ़ोतरी, प्रशिक्षण के खर्च में कमी, पूंजी व संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि आदि होने की भी संभावना है। वैसे, इस क्रम में मानव संसाधन के स्तर पर असंतोष पनपने की भी गुंजाइश है, क्योंकि मानव संसाधन के समायोजन का परिदृश्य अभी तक साफ नहीं है। कर्मचारियों के बीच सबसे बड़ी आशंका प्रोन्नति को लेकर है। पूर्व में स्टेट बैंक आॅफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक आॅफ इंदौर के अधिकारियों की वरीयता में कटौती की गई थी।


भारत जैसे बड़े व विविधतापूर्ण देश में बैंकिंग की सुविधा गली-मोहल्लों तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के लिए आज भी एक बड़ी चुनौती है। विलय के बाद ग्रामीण क्षेत्र में इनकी उपस्थिति में और भी इजाफा होगा, क्योंकि विलय के बाद शाखाओं के मानकीकरण के क्रम में बैंक की शाखाएं जहां नहीं हैं, वहां खोली जाएंगी और जहां एक से अधिक शाखाएं हैं वहां अतिरिक्त शाखा को बंद किया जाएगा, जिससे वित्तीय समावेशन की सरकार की संकल्पना को भी बल मिलेगा। साफ है, भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्वरूप का ताना-बाना बड़े बैंक के अनुकूल है, क्योंकि बड़े बैंक ही इतने बड़े देश में समान रूप से बेहतर ग्राहक सुविधाएं मुहैया करा सकते हैं। वैश्विक उपस्थिति होने से बैंकों के ग्राहकों को देश व विदेश, दोनों जगहों पर समान रूप से सेवा मिल सकेगी। परिचालन तथा दूसरे खर्चों में कटौती को सुनिश्चित करने से बड़े बैंकों की लाभप्रदता में इजाफा होगा। पूंजी की उपलब्धता रहने से वे सस्ती दर पर ग्राहकों को कर्ज भी दे सकेंगे।


मौजूदा समय में छोटे बैंक पूंजी की कमी के कारण न तो अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग मानकों को पूरा कर पा रहे हैं और न ही सस्ती दर पर ग्राहकों को कर्ज उपलब्ध करा पा रहे हैं। बेहतर तकनीक के अभाव में उनकी ग्राहक सेवा भी अच्छी नहीं है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि विलय के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हर मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करेंगे।


http://www.jansatta.com/politics/merger-of-public-sector-bank/360997/


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