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न्यूज क्लिपिंग्स् | ब्रिटेन और भारत की स्वास्थ्य सेवाएं-- आकार पटेल

ब्रिटेन और भारत की स्वास्थ्य सेवाएं-- आकार पटेल

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published Published on Jan 10, 2017   modified Modified on Jan 10, 2017
यह आलेख मैं अपने टूट हुए पैर के साथ इंगलैंड के हर्टफोर्डशायर से लिख रहा हूं. मैं उस समय गेंदबाजी कर रहा था, जब मेरा बायां पैर भीतर की ओर मुड़ गया और मैं गिर पड़ा. नतीजा, मेरा टखना टूट गया. गिरने के बाद मुझे पता चला गया था कि मेरी समस्या गंभीर है.


हालांकि, अपने मन को मनाने के लिए मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि मुझे सिर्फ मोच आयी है और यह अपने आप ठीक हो जायेगी. लेकिन, दो दिन बीतने के बाद भी मेरा पैर बैलून की तरह सूजा नजर आ रहा था. तब मैंने निर्णय किया कि मैं डॉक्टर से दिखा कर इसकी सही स्थिति का पता लगाऊंगा.


इसके बाद मैंने लंदन के हार्ले स्ट्रीट के एक फिजिशयन से टेलीफोन पर बात की. बातचीत के दौरान मुझसे उस फिजिशियन ने कहा कि वह मुझे दोपहर में देखेगा, लेकिन मुझे एक्स-रे रिपोर्ट अगले दिन ही मिल पायेगी. मैं प्रतीक्षानहीं कर सकता था, इसलिए मैं नजदीक के एक अस्पताल के एक्सीडेंट ओर इमरजेंसी वार्ड में दिखाने चला गया.


वहां जाकर मैंने कहा कि मैं बेंगलुरु से हूं और कुछ दिनों बाद ही मुझे यहां से चले जाना है. अटेंडेंट ने मेरा नाम दर्ज कर लिया और बाकी दर्जनभर दूसरे लोगों के साथ मुझे भी प्रतीक्षा करने को कह कर चला गया. उनमें से कुछ लोगों की हालत तो मुझसे भी ज्यादा खराब थी. लगभग आधे घंटे बाद मुझे नर्स को दिखाने को कहा गया. नर्स ने मेरी सूजन देखी और मुझे एक्स-रे के लिए भेज दिया. यहां रेडियोलॉजिस्ट ने दो-चार शॉट लिये और फिर उसने मुझे बताया कि मेरे पैर की हड्डी टूट गयी हैै. उसके बाद नर्स ने मेरे पास आकर मुझसे आस-पास टहलने के बारे में पूछा, तो मैंने उससे हां बोल दिया. तब उसने एक व्हीलचेयर मंगवायी और उसके बाद डॉक्टर से दिखाने के लिए मुझे दूसरी बिल्डिंग में लेकर आ गयी. यहां भी आधे घंट के इंतजार के बाद एक आदमी (यहां अनेक या ज्यादातर डॉक्टर भारतीय हैं) ने मुझे मेरे पैरों का स्कैन दिखाया. साफ पता चल रहा था कि यह एक स्पाइरल फ्रैक्चर था, जो मेरे टखने की हड्डी के चारों ओर मुड़ी हुई लाइन में हुआ था.


इसके बाद मुझसे कहा गया कि मुझे कास्ट दिया जायेगा, लेकिन उसके लिए मुझे प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि वह आधे घंटे में तैयार होगा. कुछ मिनट बाद एक महिला मेरा नाम पुकारती हुई आयी और उसने मुझसे मेरे जूते का नाप पूछा. मैंने उसे अपने जूते का नाप 11 बताया. उसके बाद वह कास्ट लेने चली गयी. थोड़ी देर बाद वह महिला एक बड़े प्लास्टिक बूट के साथ लौटी, जो बाहर से सख्त और भीतर से मुलायम और खांचों में बंटा था. वे खांचे ऐसे थे, जिनमें हवा भरी जा सकती थी, ताकि जूता आरामदायक तरीके से पहननेवाले व्यक्ति को फिट हो सके.


वह उपकरण दो बड़े मोजों के साथ लाया गया था. इसके बाद अटेंडेंट या नर्स ने मेरे सामने जूते को पहन कर दिखाया कि किस तरह धैर्य के साथ सुरक्षित तरीके से इसमें पैर डाला जायेगा. उसके बाद उसने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास एक्स-रे की सीडी है. मेरे मना करने पर वह वापस पहली बिल्डिंग में गयी और सीडी लेकर आयी. सीडी आने के बाद उसने मुझे बताया कि किस तरह मैं इस बिल्डिंग से बाहर निकलूंगा, इसमें पांच मिनट का समय और लगा.


अपने इलाज के लिए उस अस्पताल में मुझे एक पैसा भी नहीं देना पड़ा. पंजीकरण, डॉक्टर की सलाह, एक्स-रे और कास्ट सब कुछ नि:शुल्क था. इस प्रकार लंगड़ाते हुए अस्पताल पहुंचने के लगभग दो घंटे के बाद इलाज करा कर मैं वहां से बाहर निकल अाया, वह भी बिना किसी भुगतान के.


मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि हमेशा ही ब्रिटिश अखबरों में ऐसे आलेख छपते रहते हैं कि वहां की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं (एनएचएस) की स्थिति कितनी दयनीय है. और किस तरह से वहां सर्जरी जैसी समस्याओं के लिए अप्वाॅइंटमेंट लेने के लिए लोगों को कई-कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. एनएचएस सभी नागरिकों के लिए नि:शुल्क है और आपातकालीन और दुर्घटना सेवाओं और पर्यटकों के लिए तो यह खास तौर पर नि:शुल्क है. मेरा मानना है कि यह व्यवस्था बहुत शिष्ट है.


मैंने महसूस किया कि मेरे अनुभव ब्रिटेन के दूसरे नागरिकों से भिन्न हो सकते थे और यह भी कि संभवत: आपातकालीन विभाग सरकार द्वारा संचालित किसी भी स्वास्थ्य सेवा के बारे में राय कायम करने का सर्वश्रेष्ठ स्थान नहीं है. लेकिन, जो देखभाल मुझे वहां मिली, जिस कुशलता के साथ मेरी देखभाल की गयी, वैसा होना संभव नहीं था, अगर वहां की व्यवस्था सही तरीके से काम नहीं कर रही होती.


मुझे वहां पैसे नहीं देने का अफसोस हुआ, लेकिन फिर मैंने यह सोचा कि ब्रिटेन में जो हजारों भारतीय डॉक्टर काम कर रहे हैं, उन सबकी पढ़ाई में छूट के तौर पर मेरे टैक्स ने भी योगदान दिया था.


ब्रिटेन प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं पर 9.3 लाख करोड़ रुपये व्यय करता है, जो कि प्रति नागरिक औसतन 1.5 लाख रुपया पड़ेगा. भारत का केंद्रीय स्वास्थ्य बजट प्रतिवर्ष 33,000 करोड़ रुपये है, इसका मतलब हुआ कि हमारे यहां प्रति नागरिक मात्र 260 रुपये ही खर्च किये जाते हैं. बेशक हमारा देश गरीब है, लेकिन हम वही गरीब देश हैं, जिसने पिछले वर्ष लड़ाकू विमानों की खरीद पर 59,000 करोड़ रुपये खर्च किया था और इस वर्ष हम बुलेट ट्रेन पर 99,000 करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं.


ब्रिटेन के नागरिक वहां की स्वास्थ्य सेवाओं के पैसे को सरकार द्वारा इस तरह के खिलौनों पर खर्च करने की आज्ञा देंगे, ऐसा सोचना भी मेरे लिए असंभव है. भारतीय मीडिया और इसकी परिचर्चाओं में मध्यम वर्ग के लोग हावी हैं और वे ही इस तरह की पसंद को गरीबों पर थोपते हैं. हमारे लिए महाशक्ति का मतलब है लड़ाई लड़ने के योग्य होना, जापानी तकनीक का दिखावा करना और विशाल मूर्तियां बनाना. ब्रिटेन में सभ्य देश का मतलब है- ऐसी दक्ष कार्यप्रणाली विकसित करना, जो मिल-जुल कर मनुष्यों की देख-रेख करे और उन्हें पोषित करे, यहां तक कि गैर-ब्रिटिश नागरिकों की भी.

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/923212.html


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