Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | भटके हुए चुनाव अभियान- सुनील खिलनानी

भटके हुए चुनाव अभियान- सुनील खिलनानी

Share this article Share this article
published Published on Jan 31, 2014   modified Modified on Jan 31, 2014
एक उम्मीदवार भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुखर है। वहीं दूसरा पुनर्वितरण और सशक्तिकरण की वकालत कर रहा है। एक तीसरा उम्मीदवार भी है, जो विकास की अलख जगाते हुए एक नए राष्‍ट्रीय गौरव का आह्वान कर रहा है, जिसमें हिंदुओं को पीड़ित बताए जाने की मंशा अंतर्निहित है। लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे ये तीनों संभावित नेता देश की बागडोर संभालने की मंशा तो रखते हैं, लेकिन इस जरूरी तथ्य को नजरंदाज कर देते हैं कि बढ़ती हुई आर्थिक असमानता देश के भविष्य के लिए खतरनाक है।

ध्यान देने वाली बात है कि बीते मंगलवार को अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन में दिए अपने वार्षिक संबोधन में असमानता के मुद्दे को केंद्र में रखा। उन्होंने इशारा किया कि असमानता को लेकर लोग अपना धीरज खो रहे हैं। हाल के वर्षों में न्यूयॉर्क से लेकर दक्षिण कोरिया और जोहान्सबर्ग तक में हुए 'ऑक्युपाई मूवमेंट' इसकी तसदीक करते हैं। राजनीतिकों को इसके आगे झुकना पड़ा और ब्रिटेन में खाद्य सेवा के कर्मचारियों, मनीला के कामगारों और कैपटाउन के किसानों के न्यूनतम पारिश्रमिक में बढ़ोतरी करनी पड़ी।

अंतरराष्‍ट्रीय दबाव के आगे झुकते हुए चीन जैसे देश ने भी अपनी सोच बदली है। विकास के लिए अपने निर्यात को निरंतर बढ़ाने की जगह अब उसने घरेलू उपभोग को बढ़ाकर असमानता को खत्म करने की कोशिश की है। लेकिन यह अभी देखा जाना बाकी है कि गैरबराबरी को खत्म करने वाले ये कदम किसी देश में आय के वितरण को दर्शाने वाले 'गिनी सूचकांक' में कैसा बदलाव लाते हैं।

दूसरी ओर भारत के चुनावी अभियानों और राजनीतिक चर्चाओं को देखकर आश्चर्य होता है कि 'असमानता' को लेकर हालिया वैश्विक नजरिये से हम कितने दूर हैं। चाहे वह अरविंद केजरीवाल का 'स्वराज' हो या राहुल गांधी का हालिया टेलीविजन इंटरव्यू या फिर गणतंत्र दिवस पर नरेंद्र मोदी का आइडिया ऑफ इंडिया के नाम से लिखा उनका ब्लॉग, असमानता का मुद्दा हर जगह से नदारद है। इतने महत्वपूर्ण मुद्दे से ऐसे अलगाव का बेहद विकृत रूप हमारे प्रमुख शहरों में देखा जा सकता है, जो 'असमानता' के मामले में दुनिया में अव्वल बने हुए हैं।

कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि 'असमानता' पहली दुनिया के देशों (शीत युद्ध काल में अमेरिका का साथ दे रहे पूंजीवादी देश) से जुड़ी एक पुरानी अवधारणा है। इसके मुताबिक सबसे पहली जरूरत लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की है। लेकिन हमारी सरकार ने अब तक आय की असमानता पर आंकड़े इकट्ठे करने की भी जरूरत नहीं समझी है। हालांकि इसमें संदेह नहीं है कि भारत जैसे विशाल देश में ऐसे आंकड़े एकत्र करना खासा मुश्किल है। लेकिन असमानता को मापने के लिए उपभोग व्यय पर आधारित सरकारी आंकड़े केवल कागजी महत्व ही रखते हैं। इतना ही नहीं, पूरे देश में आय के स्तरों का पहला व्यवस्थित सर्वे तकरीबन एक दशक पहले हुआ था। इसमें यह बात सामने आई कि भारत में असमानता का स्तर ब्राजील से भी ज्यादा है।

दूसरे देशों की तुलना में आज अगर भारत में असमानता की जड़ें ज्यादा गहरी हैं, तो इसकी एक वजह जाति व्यवस्‍था भी है। दरअसल, आजादी के बाद से इस समस्या से निपटने के लिए जो नीतियां बनाई गईं, वे उपयुक्त नहीं थीं। 1950 के दशक में आरक्षण का अस्‍थायी प्रावधान किया गया। इसके दो दशक बाद संपदा के पुनर्वितरण के लिए एक दंडात्मक और बेअसर कर व्यवस्‍था लागू की गई। हाल ही में 'असमानता' से निपटने के लिए मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे अधिकार आधारित कानूनों का सहारा लिया गया। लेकिन 'असमानता' की मूल वजह पर ध्यान नहीं दिया गया। दरअसल, दोष दो स्तर वाली हमारी शिक्षा प्रणाली का भी है जिसकी बदौलत अमीर विद्यार्थी तो ग्लोबल करोड़पति बन रहे हैं, वहीं गरीबों के बच्चों को ऐसा कौशल परोसा जा रहा है, जो उनके सर्टिफिकेट जितना ही शक्तिहीन है।

दरअसल, अपेक्षाकृत युवा और निरंतर बढ़ती जनसंख्या, असमान विकास, बेहद असंतुलित ढंग से संपदा का वितरण और सकल घरेलू उत्पाद के दस प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा 55 निजी व्यक्तियों के हाथों में सिमटा होना जैसे लक्षण भारत में असमानता की सच्ची तस्वीर पेश करते हैं। इससे देश में घरेलू तनाव का बढ़ना लाजिमी है।

अगर वैश्विक तौर पर बात करें, तो रोजगार, पर्यावरण, संसाधनों तक पहुंच जैसे मामलों में पश्चिम भारत और चीन के विकास को खतरे के तौर पर देखता है। इसके अलावा ऐसे दौर में जबकि हर देश आज बढ़ती हुई असमानता के दुष्प्रभावों को दूसरे देशों पर थोपने पर तुला है, भारत की अर्थव्यवस्‍था के लिए संभावनाएं बनी हुई हैं। पर यह समझना होगा कि केवल निर्यात को बढ़ाकर और नागरिकों में कम उपभोग की प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर भारत के विकास की कहानी नहीं लिखी जा सकती। भारत के लिए जरूरी है कि उसके विकास को जरूरी गति भीतर से मिले। और यह तभी होगा, जब उत्पादक और उपभोक्ता के तौर पर अर्थव्यवस्‍था में गरीब से गरीब व्यक्ति की भागेदारी सुनिश्चित की जाए।

इस हफ्ते मीडिया में राहुल गांधी के इंटरव्यू छाए रहने की वजह से हैदराबाद के एक ज्वैलरी स्टोर में हुई लूट की खबर पर किसी का ध्यान नहीं गया। इस वारदात को अंजाम देने वाला कोई पेशेवर अपराधी नहीं था। दरअसल, उसने यह चोरी अपने पायलट प्रशिक्षण कोर्स की फीस भरने और पोलियो से पीड़ित अपने चचेरे भाई के इलाज के लिए की थी। निराशा से भरे इस शहरी रॉबिनहुड ने कहा, 'सारे नेता चोर हैं, जो हमें पांच वर्ष तक लूटते हैं। मैं तो केवल एक रात के लिए चोर बना हूं, ताकि दुनिया को भारत में बढ़ रही असमानता के दर्शन करा सकूं। ' इसमें संदेह नहीं कि असमानता को मिटाने के लिए इस हैदराबादी लुटेरे ने जो मार्ग अपनाया, उससे कहीं ज्यादा रचनात्मक तरीके मौजूद हैं। लेकिन हमारे राजनीतिक तंत्र को इनकी तलाश करनी होगी, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

(लेखक किंग्स कॉलेज, लंदन के इंडिया इंस्टीच्यूट के निदेशक हैं)

http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/misguided-election-compaign/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close