Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | म्यांमार से मणिपुर आकर बसने वाले तमिल लोगों की कहानी

म्यांमार से मणिपुर आकर बसने वाले तमिल लोगों की कहानी

Share this article Share this article
published Published on Apr 11, 2021   modified Modified on Apr 13, 2021

-बीबीसी,

भारत के एक पूर्वोत्तर राज्य में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क़स्बे में एक भव्य दक्षिण भारतीय मंदिर का दिख जाना किसी अचंभे से कम नहीं है. और यह जानकारी कि उस क़स्बे में क़रीब 3,000 तमिल समुदाय के लोग बसते हैं अपने आप में चौंकाने वाली बात है.

ऐसा ही कुछ नज़ारा बीबीसी ने मणिपुर के सीमावर्ती क़स्बे मोरेह में देखा. यहाँ सुदूर तमिलनाडु से आए लोगों ने इस मणिपुरी क़स्बे को ना केवल अपना घर बना लिया है बल्कि कई दशकों से यहाँ रहते रहते वे यहाँ की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गये हैं.

श्री आंगला परमेश्वरी श्री मुनेश्वरार मंदिर का विशाल परिसर मोरेह में तमिल समुदाय के लोगों की उपस्थिति का सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है. यह मंदिर बिल्कुल भारत-म्यांमार सीमा से सटा हुआ है और इसका प्रांगण दोनों देशों के बीच पड़ने वाले 'नो मेन्स लैंड' के बिल्कुल साथ लगा हुआ है.

तमिल लोग मणिपुर कैसे पहुँचे?

जब बर्मा (वर्तमान में म्यांमार) अंग्रेज़ी शासन के अधीन था, तो अंग्रेज़ बहुत से तमिल लोगों को वहाँ मज़दूरी और कई अन्य तरह के कामों के लिए ले गये थे. 1948 में बर्मा आज़ाद हो गया लेकिन बहुत से भारतीय लोगों ने जिनमें तमिल भी शामिल थे, वहीं बसना चुना. 1962 में जब बर्मा लोकतंत्र से सैन्य शासन की तरफ़ मुड़ा, तो वहाँ रहने वाले भारतीय लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो गयी.

सैन्य शासन ने भारतीयों की संपत्ति ज़ब्त कर ली और भारतीय नागरिकों को वहाँ लोकतंत्र के समय में जो अधिकार मिलते थे, वो भी चले गये. उनके साथ भेदभाव किया जाने लगा.

के.बी.एस मनियम, जिनका जन्म तत्कालीन रॅंगून में हुआ और जो 8 साल की उम्र में मोरेह आए, कहते हैं, "1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रॅंगून आए और भारतीय समुदाय से मिले. भारत के लोगों ने उनसे यह विनती की कि वो भारत वापस आना चाहते हैं. नेहरू जी ने जहाज़ भेजा और निशुल्क भारतीयों को वापस लाने का काम शुरू हुआ. तमिल समुदाय के लोग भी इसी तरह वापस भारत आए."

मनियम अब मोरेह के तमिल मंदिर की विकास समिति के उपाध्यक्ष हैं. वो कहते हैं कि तमिल लोगों के बर्मा से आने के बाद भारत सरकार ने रेफ्यूजी कैंप लगाए और लोगों का पुनर्वास करने में मदद की लेकिन तमिल समुदाय को वापस तमिलनाडु में आकर बसने में कई तरह की दिक्कतें आईं.

बर्मा में कई वर्ष रहने के बाद उनका रहन-सहन और ख़ान-पान बहुत बदल चुका था. वापस आने के बाद इन तमिल लोगों के पास कोई आय का स्रोत नहीं था और वे जो भी सामान बर्मा से लाए थे, उसी को थोड़ा-थोड़ा बेच कर अपना जीवन चला रहे थे.

के.बी.एस मनियम, मोरेह के तमिल मंदिर की विकास समिति के उपाध्यक्ष हैं

मनियम कहते हैं, "चूँकि यह लोग इस नये माहौल में सेट नहीं हो पा रहे थे, इसलिए बहुत से तमिल लोगों ने वापस बर्मा जाने का मन बना लिया और मणिपुर के मोरेह में इस उम्मीद के साथ आ गये कि वे यहाँ से सीमा पार कर बर्मा जा सकेंगे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज इसी इलाक़े से गुज़री थी और तमिल समुदाय के कई वृद्ध लोग आईएनए में रहे थे और उन्हें यहाँ से बर्मा जाने के सब रास्ते पता थे. इसलिए वे लोग बर्मा जाने के लिए तमिलनाडु से मणिपुर आ गये.''

''वो मणिपुर में बसने नहीं आए थे, सिर्फ़ यहाँ से बर्मा जाने के लिए आए थे."

जानकारी के अनुसार 1964 में 12 तमिल परिवार दो समूहों में यहाँ आए—एक समूह में 7 परिवार और दूसरे में 5 परिवार.

मनियम के अनुसार पहले 7 परिवारों वाले समूह ने बर्मा में घुसने की कोशिश की पर वहाँ की सेना ने उन्हें गिरफ्तार करने के बाद एक महीने तक एक पाठशाला में नज़रबंद करके रखा. जिसके बाद इन लोगों को मोरेह पुलिस को सौंप दिया गया. स्थानीय भाषा ना आना और जीविका चलाने के साधनों के अभाव को वजह बताते हुए मोरेह पुलिस ने इन लोगों से वापस तमिलनाडु जाने को कहा और इंफाल भेज दिया.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


राघवेन्द्र राव, https://www.bbc.com/hindi/india-56686144


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close