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न्यूज क्लिपिंग्स् | महंगाई के जख्म पर सस्ते राशन का मरहम

महंगाई के जख्म पर सस्ते राशन का मरहम

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published Published on Mar 3, 2010   modified Modified on Mar 3, 2010
निधिनाथ श्रीनिवास
नई दिल्ली : सरकारी राशन दुकानों के सामने लगने वाली

कतारें लंबी होने लगी हैं। निजी दुकानों पर खाद्य उत्पादों के दाम आम आदमी की जेब को मुंह चिढ़ाने में लगे हैं, ऐसे में राशन दुकानें एक बार फिर जीवनरेखा बन रही हैं। खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, ग्राहक पिछले साल की तुलना में इस बार 64 फीसदी अतिरिक्त गेहूं और 40 फीसदी अतिरिक्त चीनी इन दुकानों से खरीद रहे हैं। देश की कुल चीनी मांग का 11 फीसदी और सालाना खाद्यान्न मांग का एक-तिहाई अंश अब राशन दुकानों से पूरा हो रहा है। यह सरकार के लिए बढि़या खबर है क्योंकि इस तरह ज्यादा लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से राशन हासिल कर रहे हैं। इससे सरकार के अनाज भंडारण के खर्च में भी कमी आएगी।

स्टोरेज से माल निकलेगा और नई फसल के लिए जगह भी खाली हो जाएगी। साल 2007 और 2008 में राशन दुकानों को ज्यादा तरजीह नहीं दी जा रही थी क्योंकि खाद्यान्न के दाम जेब की सीमा में थे। लेकिन खुले बाजार और सरकार की ओर से रियायती दामों पर उपलब्ध कराए जाने वाले सामान की कीमतों में अंतर कुछ इतना बढ़ गया है कि ये दुकानें एक बार फिर आकर्षण का केंद बन गई हैं। वाणिज्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते एक साल में गेहूं के दाम 15 फीसदी बढ़े हैं। आटा चक्कियों में गेहूं 15 रुपए प्रति किलोग्राम से कम पर उपलब्ध नहीं है जबकि सरकारी राशन दुकानों पर यह 6.50 रुपए प्रति किलो पर मिल रहा है। किराना दुकानों पर चीनी 45 रुपए प्रति किलोग्राम पर बिक रही है जबकि सरकारी राशन दुकानों में इसकी कीमत 15 रुपए प्रति किलो है।

केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2009-10 में ग्राहक हर महीने राशन दुकानों से 20 लाख टन गेहूं खरीद रहे हैं जबकि 2008-09 में यह आंकड़ा 12 लाख टन प्रतिमाह था। इस हिसाब से सालाना बिक्री 2.4 करोड़ टन पर पहुंच सकती है। इस साल चावल की बिक्री केवल 10 लाख टन बढ़ी है, जिसका मुख्य कारण यह है कि सरकार ने कीमतों में 11 फीसदी इजाफे के बावजूद आवंटन में बढ़ोतरी नहीं की है। यहां तक कि मध्यवर्गीय परिवार भी कीमतों की चुभन सह रहे हैं और वह भी सरकारी राशन दुकानों के आगे लाइन लगाने को मजबूर हैं। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से एकत्र डाटा के अनुसार दिल्ली में ऐसे परिवारों ने जनवरी में गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बसर करने वाले परिवारों की तुलना में राशन दुकानों से ज्यादा खरीदारी की।

मंत्रालय के एक अधिकारी ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया, 'हालांकि, इस बिक्री को भारी सब्सिडी ने बढ़ाया है, लेकिन इसके बावजूद यह फूड सब्सिडी बिल के लिए राहत है, क्योंकि सरकार खरीद और स्टोरेज के मोर्चे पर एक किलो अनाज पर 10.80 रुपए खर्च करती है।'
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http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/5538769.cms
 

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