Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | मुखिया को ठेकेदार मत बनाइए- टी आर रघुनंदन

मुखिया को ठेकेदार मत बनाइए- टी आर रघुनंदन

Share this article Share this article
published Published on Jun 26, 2012   modified Modified on Jun 26, 2012
इन दिनों देश के प्रशासनिक ढांचे में आमूल-चूल बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है. सैद्धांतिक रूप से यह मान लिया गया है कि प्रशासन का ब्रिटिश ढांचा भारतीय परिस्थिति में नहीं सफल हो रहा. महात्मा गांधी ने जो गांवों के सरकार की कल्पना की थी वही देश को ढंग से चलाने का कारगर तरीका हो सकता है. इसके लिए कई सालों से विकेंद्रीकरण की कोशिशें की जा रही है. मगर ठोस धरातल पर विकेंद्रीकरण की अवधारणा उतारे नहीं उतर रही.

केंद्र, राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप कर बैठता है तो राज्य सरकार पंचायतों को अधिकार देने के लिए तैयार नहीं है. संवैधानिक तौर पर जो अधिकार मिल भी जाते हैं उसे जिला और ब्लॉक स्तर पर बैठे अधिकारी हड़प कर जाते हैं. इन हालातों में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को लागू करने में जुटे पूर्व संयुक्त सचिव टीआर रघुनंदन की बात मौजू लगती है कि विकेंद्रीकरण कभी ऊपर से नहीं हो सकता और उपहार में नहीं मिल सकता. इसके लिए नीचे वालों को सजग और सक्षम होकर अपना हक हासिल करना पड़ेगा. रघुनंदन पिछले दिनों एक वर्कशॉप के सिलसिले में रांची आये हुए थे. इस मौके पर पंचायतनामा की ओर से पुष्यमित्र ने उनसे विकेंद्रीकरण, पंचायती राज और अफसरशाही के मसलों पर विशेष बातचीत की.

क्या प्रशासन चलाने के लिए दुनिया के सामने विकेंद्रीकरण ही इकलौता रास्ता बच गया है?

ऐसा नहीं है. यूरोपीय देश केंद्रीकरण की ओर बढ़ रहे हैं. वे संयुक्त योरोप बना रहे हैं. यह वहां के वक्त की जरूरत है. मगर अपने देश के लिए तो निस्संदेह विकेंद्रीकरण ही एक मात्र रास्ता है. 120 करोड़ की आबादी को 4000 एमएलए, 534 सांसद और 600 कलेक्टर नहीं चला सकते. इसे चलाने के लिए हर हाल में 32 लाख जनप्रतिनिधियों को व्यवस्था में शामिल करना होगा. यही एकमात्र रास्ता है. इसमें शुरुआत में खामियां नजर आ सकती हैं, मगर समय के साथ सब कुछ ट्रैक पर आ जायेगा.

अक्सर देखा जाता है कि संवैधानिक स्तर पर तो स्थानीय इकाइयों(पंचायत और नगर निकाय) को अधिकार मिल जाते हैं मगर अधिकारी और सांसद-विधायक इन अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं या इसका इस्तेमाल होने नहीं देते. इसकी वजह क्या है?

अधिकार देने में डर लगता है. उन्हें लगता है कि वे निशक्त हो जायेंगे. उनका पावर छिन जायेगा. यह सिर्फ झारखंड या भारत में नहीं हो रहा. पूरी दुनिया में यही स्थिति है. स्विटजरलैंड जो प्रजातंत्र का मॉडल माना जाता है, वहां भी अधिकारी और प्रतिनिधियों के बीच अधिकार को लेकर संघर्ष की खबरें सुनने को मिलती हैं.

दरअसल विकेंद्रीकरण ऊपर से नहीं हो सकता. अधिकार लेना पड़ता है. मगर अपने देश में अधिकांश पंचायत प्रतिनिधि इसके लिए प्रयासरत नहीं हैं. उन्हें तो एक तरह से ठेकेदार बना दिया गया है. सरकार की योजनाओं के बारे में पता करना और उन्हें अपने क्षेत्र में लागू करना ही उनका काम रह गया है. वे हमेशा ऊपर की तरफ देखते रहते हैं कि कब कौन सी योजना उनके क्षेत्र के लिए आयेगी. उन्हें अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए आवश्यक फंड की व्यवस्था करने में का प्रयास करना चाहिए.

अक्सर पंचायत प्रतिनिधियों को पता भी नहीं चलता है कि उनके क्षेत्र के लिए कौन सी योजना पास हुई है? अधिकारी भी ठीक से नहीं बताते.

इसके एकमात्र उपाय है कि योजनाएं कम हों. एक ही योजना से कई बदलाव आ सकते हैं. मगर हम देखते हैं कि दो-दो, तीन-तीन विभाग एक जैसी योजना बना लेते हैं. दरअसल विभाग नहीं चाहते कि योजनाएं कम हों और सामूहिक रूप से लागू हों. मगर यह जरूरी है, इससे स्थानीय लोगों में भ्रम की स्थिति नहीं होगी.

इसके अलावा प्रशासन को भी इस मामले में प्रचार-प्रसार और पारदर्शिता का सहारा लेना चाहिए. हर योजना के बारे में और यह कहां लागू होने वाला है इस बारे में सूचना जगह-जगह प्रदर्शित की जानी चाहिए. ताकि आम लोगों को जानकारी मिल सके. पंचायतों के स्तर पर भी ऐसी सूचना दी जानी चाहिए, बजट का भी साफ-साफ खुलासा होना चाहिए.

इसके अलावा प्रचायत प्रतिनिधियों को जरूरत पड़ने पर आरटीआइ का इस्तेमाल करना चाहिए. पूछना चाहिए कि उनके पंचायत में किस विभाग से कितना फंड आया है और क्या काम होना है.

पंचायतों में हमेशा किसी न किसी काम से संबंधित पैसा ही आता है. हर गांव की अलग-अलग जरूरतें होती हैं. ऐसे में अगर लोगों को किसी गांव के लिए कुछ खास काम करवाना हो तो प्रतिनिधियों के पास उसके लिए पैसा नहीं होता. ऐसे में तो वे ठेकेदार बनेंगे ही.

निश्चित तौर पर ऐसे फंड भी होने चाहिए जो किसी काम से संबंधित न हों. मेरे हिसाब से कुल फंड का 30 फीसदी हिस्सा ऐसे फंड का ही होने चाहिए. यह काम फाइनांस कमीशन का है.

मगर ऐसा हो नहीं पा रहा. कर्नाटक में जरूर थोड़ी बेहतर स्थिति है. वहां कुल फंड का दस फीसदी स्वतंत्र फंड होता है, इसके अतिरिक्त तकरीबन हर पंचायत 5 लाख रुपये की टैक्स की वसूली भी करता है. इससे उसके पास ऐसी कुछ राशि जरूर हो जाती है. वहां पंचायतें प्रॉपर्टी टैक्स, पानी का बिल और स्ट्रीट लाइट का टैक्स वसूलती हैं. इसके अलावा मेला और हाट से भी टैक्स वसूली करती हैं.

कर्नाटक के पंचायती राज के बारे में बताएं.

वहां हमने महाराष्ट्र और गुजरात का मॉडल अपनाया है. वहां जिला परिषद काफी मजबूत है. एक जिला परिषद का 12 सौ करोड़ का बजट होता है. 6 हजार लोगों के ग्राम पंचायत का बजट एक करोड़ का होता है. इसके अलावा जैसा कि मैं बता चुका हूं वहां पंचायतें स्थानीय स्तर पर टैक्स
लगाती हैं.

परिचय
पूर्व आइएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन इन दिनों कर्नाटक के राज्य योजना मंडल के सदस्य हैं. वे कर्नाटक के पंचायती राज सचिव और केंद्र सरकार में पंचायती राज के संयुक्त सचिव रह चुके हैं (पूर्व पंचायती राज मंत्री मणिशंकर अय्यर के कार्यकाल में). उन्होंने विकेंद्रीकरण की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकारी सेवा से इस्तीफा देकर स्वतंत्र रूप से काम करने का फैसला किया. देश और दुनिया के स्थानीय स्वशासन की कार्यप्रणालियों के बारे में उनका शानदार अध्ययन है. वे संयुक्त राष्ट्र के कंवर्जेश डिसेंट्रलाइज डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग परियोजना में बतौर सलाहकार योगदान दे रहे हैं. यह परियोजना देश के सात राज्यों में विकेंद्रीकरण और विभिन्न विभागों की अलग-अलग योजनाओं के बीच सामन्जस्य बिठाते हुए इसे सरल रूप देने का प्रयास कर रही है. इस परियोजना में झारखंड भी शामिल है. रघुनंदन इस परियोजना के सिलसिले में भी झारखंड आते रहते हैं. इसके अलावा वे भ्रष्टाचार के खिलाफ www.ipaidabribe.com नामक साइट का संचालन भी कर रहे हैं. इस साइट पर 16 हजार से अधिक लोगों ने भ्रष्टाचार से जुड़े अपने अनुभव साझा किये हैं कि उन्हें किस तरह घूस देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

http://www.prabhatkhabar.com/node/172404?page=show


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close