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न्यूज क्लिपिंग्स् | मौत के आगोश में रोटी की तलाश

मौत के आगोश में रोटी की तलाश

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published Published on Apr 23, 2010   modified Modified on Apr 23, 2010

बठिंडा [मनीष शर्मा]। वे हर रोज मौत के आगोश में माया की तलाश करते हैं। शहर के पश्चिमी क्षेत्र के 25 परिवार करीब दस मीटर से अधिक गहरी सरहिंद नहर में गहरा गोता लगाकर रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं। उनके हाथ धार्मिक कर्मकांड के तहत लोगों द्वारा नहर में फेंके गए सोने-चांदी के आभूषणों, सिक्कों व अन्य सामान की तलाश करते हैं।

पानी में पांच से दस मिनट रहने के बाद कई दफा उनकी सांस फूलने लगती है। तब उनको चिकित्सकीय मदद की जरूरत पड़ती है। लगभग 25 सालों से इन परिवारों की रोजी रोटी इसी तरह चल रही है। इस काम में 15 से लेकर 40 वर्ष आयु तक के लोग जुटे रहते हैं। रोज सुबह करीब 8 बजे से 12 बजे तक इनका यह काम चलता है। 15 वर्षो से इस काम में जुटा करीब 30 वर्षीय शंभू [जनता नगर] पढ़ा-लिखा नहीं है। रिक्शा चलाकर भी पर्याप्त आय नहीं जुटा सका तो परिवार के पांच सदस्यों के भरण पोषण के लिए उसने सरहिंद नहर में तैरना सीखा, फिर सांस रोकने का अभ्यास किया। जब खूब अभ्यास हो गया तो इस काम में पहले से जुटे आनंद से नहर की तली में जाने का गुर सीखा। इसके बाद उसने खुद यह काम करना शुरू कर दिया।

शंभू के अनुसार,अमीर लोग तंत्र-मंत्र व ज्योतिष में खूब विश्वास करते हैं। वे तांत्रिक या पुजारी के कहने पर सरहिंद नहर में सोने-चांदी के सिक्के, मूर्ति, आभूषण प्रवाहित करते हैं। बस ऐसे लोगों की भक्ति हमारे रोजगार का जरिया बन जाता है। चूंकि ऐसी वस्तुओं को जल प्रवाहित करने का उचित समय रात या सुबह होता है इसलिए हम लोग सुबह करीब 8 बजे से 12 बजे तक इनकी तलाश करते हैं। दस सालों से यह काम कर रहा करीब 25 वर्षीय भीषण बताता है कि भारी होने की वजह से ये वस्तुएं नहर की तलहटी में जमी रहती हैं। बस पानी के अंदर करीब दस मिनट तक का समय लगाकर वे इन्हें ढूंढ़ कर बाहर निकाल लाते हैं। इसमें जान का खतरा तो रहता है। जब कहीं काम न मिलता हो, परिवार के सदस्य भूखे रहें तो फिर अपनी जान की चिंता कहां से होगी। उसने बताया कि आज तक इस काम में किसी की मौत नहीं हुई। लेकिन कई बार स्थिति बड़ी गंभीर बन जाती है।

रेलवे स्टेशन पर रहने वाला लगभग 30 साल का इतवारी, 15 वर्षीय चेतन, जनता नगर में रहने वाला 25 वर्षीय मोटा और 22 वर्षीय काटो भी कुछ यही कहते हैं। वे कहते हैं कि सामान निकालने के बाद वे दुकान पर बेच देते हैं। दुकानदार से पुरानी जान-पहचान होती है, इसलिए इनकी बिक्री में कोई दिक्कत भी नहीं होती। टोटके वाली वस्तुएं उठाने से डर नहीं लगता? इस सवाल पर सबका एक ही जवाब होता है-जब इस कमाई से पेट भरता है तो फिर डर किस बात का।


जागरण- 23 अप्रैल 2010 http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6359762.html


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