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न्यूज क्लिपिंग्स् | एक प्रदेश के अंधेरे-उजाले : राजदीप सरदेसाई

एक प्रदेश के अंधेरे-उजाले : राजदीप सरदेसाई

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published Published on Dec 28, 2011   modified Modified on Dec 28, 2011
हम भारतीयों को वर्षगांठ मनाना बहुत भाता है। शायद, हमें लगता है कि सालाना जश्न मनाने के बाद सालभर की बाकी बातों को आसानी से भुलाया जा सकता है। लिहाजा, संसद पर हमले की दसवीं वर्षगांठ पर इस हादसे में जान गंवाने वाले शहीदों के प्रति भावुक आदरांजलियां व्यक्त की गईं, भले ही एक शहीद की विधवा को पेट्रोल पंप आवंटित होने में छह साल लग गए हों।

अब देश एक और वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है : इस सप्ताहांत पुर्तगालियों से गोवा की ‘आजादी’ को पचास साल पूरे हो रहे हैं। गोवा की स्वतंत्रता एक लंबी और किंचित रक्तरंजित लड़ाई का परिणाम थी, लेकिन इस स्वतंत्रता संग्राम को हमारे राष्ट्रीय इतिहास में कभी पर्याप्त सम्मान नहीं मिला।

सभी भव्य वर्षगांठों की तरह इस अवसर पर भी धूमधड़ाके से नयनाभिराम आयोजन होंगे। पंजिम को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा। संगीत समारोहों और कला प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाएगा। समुद्र तट पर आतिशबाजियां होंगी। यानी वे तमाम प्रयास किए जाएंगे, जिससे भारत के इस सबसे खूबसूरत राज्य के अंधेरे पहलुओं पर परदा डाला जा सके। अंधेरे पहलुओं से आशय यह है कि जिस राज्य को कभी फिश, फेनी और फुटबॉल की ‘हैप्पी गो लकी’ भूमि कहा गया था, आज वह ड्रग्स, भूमि और खनन माफियाओं के निशाने पर है।

याद करें इस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक ‘सिंघम’ गोवा में ही फिल्माई गई थी। इसमें अजय देवगन ने एक ऐसे सख्त पुलिसकर्मी की भूमिका निभाई है, जो पूरे सिस्टम में पैठी बुरी ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करता है। बॉलीवुड अक्सर हकीकत से ही फसाने रचता है। ‘बॉबी’ में मस्ताने मछुआरे ब्रेगेंजा की भूमिका निभाने वाले प्रेमनाथ से लेकर बाजीराव सिंघम की भूमिका निभाने वाले देवगन तक हम समय के चक्र को घूमता हुआ देख सकते हैं। कभी रमणीय माने जाने वाले गोवा को आज ‘पैराडाइज लॉस्ट’ माना जा रहा है।

यह बदलाव कब आया? सैलानियों के लिए गोवा आज भी छुट्टियां बिताने की सबसे बेहतरीन जगह है। बीटल्स युग के हिप्पियों की जगह अब बड़ी तादाद में भारतीय और विदेशी पर्यटकों ने ले ली है। उनके समक्ष ब्रांड गोवा को धूप-स्नान, सुरम्य समुद्र तटों, रातभर रोशन रहने वाले बार, तेज संगीत और कभी-कभार होने वाली रैव पार्टियों वाले प्रदेश के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। एक मध्यवर्गीय भारतीय के लिए यह एक ऐसी जगह है, जहां पड़ोसियों के आराम में खलल पहुंचाए बिना जीवन के तनावों से मुक्त हुआ जा सकता है। जो अधिक धनाढ्य हैं, उन्होंने गोवा में ‘सी व्यू’ फ्लैट्स और बंगले ही खरीद लिए हैं।

दूसरी तरफ स्थानीय रहवासियों के लिए ब्रांड गोवा का अर्थ है सामाजिक रूढ़िवादिता, सशक्त पारिवारिक बंधन, गांव के मंदिर और गिरजे, पर्यावरण के प्रति जागृति और संपत्ति के प्रति घोर आग्रह। इन दो गोवाओं के बीच संघर्ष अवश्यंभावी था। यह लड़ाई मुख्यत: एक छोटे-से राज्य की सबसे कीमती संपत्ति के लिए लड़ी गई है : भूमि।

मुंबई और दिल्ली के रीयल एस्टेट उद्यमियों से लेकर रूसी माफियाओं तक निवेश में फौरन रिटर्न चाहने वालों के लिए गोवा एक उपयुक्त स्थान बन गया है। वर्ष २क्क्६ में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रतापसिंह राणो ने गोवा विधानसभा में एक लिखित उत्तर में कहा था कि विगत तीन वर्षो में 482 संपत्तियां विदेशियों को बेची गई हैं। वर्ष 2007 में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव के कारण गोवा सरकार को अपनी बहुप्रचारित क्षेत्रीय योजना को निरस्त करना पड़ा। इसके बावजूद गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण योजनाओं के दृश्य आम हैं। हॉलिडे होम्स के निर्माण के लिए कृषियोग्य भूमि पर बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहे हैं।

भूमि सौदों के लिए राज्य के राजनेता मोल-भाव कर रहे हैं। स्थानीय गुंडों से नेता बने इन राजनेताओं के ग्राम पंचायत प्रणाली में दबदबे का यह आलम है कि उनके हस्तक्षेप के बिना कोई सौदा नहीं हो सकता। एक छोटे राज्य में स्थानीय विधायक का रुतबा बड़े राज्यों की तुलना में कहीं अधिक होता है।

गोवा के शिक्षा मंत्री एटनासियो ‘बाबुश’ मोंसेर्राते से बेहतर इसकी मिसाल कोई और नहीं हो सकता। वे तीन बार विधायक रह चुके हैं और एक दशक में चार बार दलबदल कर चुके हैं। 40 विधायकों की विधानसभा में, जहां हर विधायक की एक कीमत होती है, मोंसेर्राते एक पतनशील राजनीतिक संस्कृति के प्रतीक बन गए हैं।

गोवा में भूमि संघर्षो से ही जुड़ा मसला है खनन अधिकारों पर बढ़ते विवाद। खनन उद्योग गोवा की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यदि गोवा विधानसभा की लोक लेखा समिति की मानें तो पिछले तीन वर्षो में डेढ़ करोड़ मीट्रिक टन अयस्क का अवैध खनन हुआ है, जिससे राजकोष को कथित रूप से 4000 करोड़ का नुकसान पहुंचा है।

इन आंकड़ों पर सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन जो तथ्य सर्वस्वीकृत है, वह यह है कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक की ही तरह बेतहाशा मुनाफों ने अवैध खनन को बढ़ावा दिया है। इसका इलाज यह नहीं है कि खनन पर ही रोक लगा दी जाए। देश के लौह अयस्क निर्यात में गोवा का योगदान 60 फीसदी है और खनन पर रोक लगाने से राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। गोवा को जरूरत है एक खनन नियामक की, जो प्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित कर सके।

आधुनिक गोवा को उसी तरह तीव्र औद्योगीकरण की दरकार है, जैसे उसे सशक्त पर्यावरण संरक्षण कानूनों की जरूरत है। एक मायने में खनन पर ध्रुवीकृत सार्वजनिक बहस देश के इस सबसे युवा राज्यों में से एक की मुख्य दुविधा को प्रदर्शित करती है। गोवा को एक पिक्चर परफेक्ट पोस्टकार्ड तक ही महदूद नहीं किया जा सकता, लेकिन एक बहुसांस्कृतिक स्थल के रूप में उसकी विलक्षणता और पूर्व-पश्चिम को समान रूप से आकृष्ट करने वाले उसके पर्यावरण तंत्र की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती।

पुनश्च : समकालीन गोवा की महानतम विभूतियों में से एक अद्भुत काटरूनिस्ट मारियो मिरांडा की इसी सप्ताह मृत्यु हो गई। मारियो पुराने गोवा के उदात्त और सौंदर्यपरक गुणों का प्रतिनिधित्व करते थे। यह वह गोवा है, जो कभी मर नहीं सकता। मैं तो हमेशा मोंसेर्राते के स्थान पर मारियो को ही चुनना पसंद करूंगा। -लेखक आईबीएन 18 नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ हैं।
 

http://www.bhaskar.com/article/ABH-a-state-of-the-dark---daylight-2642447.html


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