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न्यूज क्लिपिंग्स् | यूपीः शॉर्टकट तरीका अपनाकर बनाए गए शिक्षक

यूपीः शॉर्टकट तरीका अपनाकर बनाए गए शिक्षक

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published Published on Sep 13, 2015   modified Modified on Sep 13, 2015
प्राइमरी स्कूलों में सहयोग के लिए रखे गए शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाने के लिए शॉर्टकट तरीका अपना गया। इन्हें दो वर्षीय प्रशिक्षण देकर तीन चरणों में समायोजित किया जाना था। जनवरी 2014 में 60,000, दिसंबर 2014 में 64,000 और सितंबर 2015 में 46,000 यानी कुल 1 लाख 70 हजार शिक्षा मित्रों को समायोजित किया जाना था, लेकिन केवल दो चरणों में ही 1,35,826 को समायोजित कर दिया गया।
शिक्षामित्रों के इस समायोजन को लेकर हालांकि कई अधिकारी सहमत नहीं थे, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह गूंजकर रह गई। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2000 में शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की सहायता के लिए शिक्षामित्रों को रखने की प्रक्रिया शुरू हुई थी।

मानदेय 2000 रुपये और योग्यता इंटर रखी गई। इनको रखने के लिए जारी शासनादेश में साफ लिखा था कि इसे किसी तरह का सेवायोजन नहीं माना जाएगा। शिक्षामित्रों को रखने का फॉर्मूला सफल हुआ तो ग्रामीण क्षेत्रों की तरह शहरी क्षेत्रों में भी इन्हें रखा गया।

इनकी संख्या धीरे-धीरे 1,76,000 तक पहुंच गई। देश के दूसरी किसी राज्य में इतनी बड़ी संख्या में शिक्षामित्र नहीं रखे गए। यूपी में शिक्षामित्रों की संख्या सर्वाधिक होने के चलते इनकी मांगों को प्राथमिकता दी जानी लगी। मानदेय बढ़ाया जाने लगा और यह 3500 रुपये तक पहुंच गया।

शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने सभी नियम-कानूनों को ताक पर रख दिया। अपने अधिकारों की सीमा से बाहर जाकर सरकार ने उत्तर प्रदेश बेसिक (शिक्षक) सेवा नियमावली 1981 में संशोधन करते हुए नियम 14(6) जोड़ा जिसमें व्यवस्था की गई कि शिक्षामित्रों को भी सहायक अध्यापक बनाया जा सकता है।

नियमावली में संशोधन के पश्चात के शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर नियमित रूप से समायोजित करने के लिए 19 जून 2014 को शासनादेश जारी किया गया।
प्रदेश सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए निर्धारित न्यूनतम योग्यता के मानकों को दरकिनार करते हुए नियम शिथिल कर दिए। शिक्षा मित्रों की टीईटी की अनिवार्यता से छूट दे दी जबकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है।

तीन जजों की पीठ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार ने शिक्षामित्रों को सहायक बनाने के लिए मनमाने फैसले लिए। अपनी विधायी सीमा का उल्लंघन करते हुए उसने ऐसे लोगों को नियुक्ति दी, जो शिक्षक होने की अर्हता ही नहीं रखते हैं। कोर्ट ने कहा कि टीईटी का उद्देश्य यह तय करना है कि शिक्षक उस क्षेत्र की योग्यता रखता है, जिसमें वह जा रहा है।

हाईकोर्ट की फुलबेंच ने भी एनसीटीई द्वारा निर्धारित टीईटी की अनिवार्यता को सही माना है। प्रदेश सरकारी की जानकारी में यह फैसला था इसके बावजूद उसने बिना अधिकार नियमों को शिथिल करते हुए शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट दी। कोर्ट शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से दिए गए प्रशिक्षण को अवैध माना है।

एनसीटीई ने 10 सितंबर 2012 को जारी अधिसूचना में सीमित समय के लिए एक वर्ग को न्यूनतम अर्हता में छूट प्रदान की थी। प्रदेश सरकार इसका लाभ नहीं ले सकती। कोर्ट ने सरकार द्वारा बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली के संशोधन 16 क को भी असंवैधानिक और अल्ट्रावायरस करार देते हुए रद्द कर दिया है।


http://lucknow.amarujala.com/feature/city-news-lkw/teachers-made-by-shortcut-in-up-hindi-news/page-2/


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