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न्यूज क्लिपिंग्स् | योग का 'ब्रांड' बनाम बुनियादी चुनौतियां - मनोज जोशी

योग का 'ब्रांड' बनाम बुनियादी चुनौतियां - मनोज जोशी

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published Published on Jun 24, 2015   modified Modified on Jun 24, 2015
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं से बहुत संतुष्ट होंगे। वे न केवल देश के नेता हैं, बल्कि अब देश के शीर्ष योगकर्ता भी बन गए हैं। वैसे यह सोचना और देखना थोड़ा अजीब लगता है कि एक सार्वजनिक व्यायाम कार्यक्रम का नेतृत्व स्वयं देश के प्रधानमंत्री करें, लेकिन मोदी भी एक परंपरागत राजनेता कहां हैं! यकीनन, उनके द्वारा ऐसा बहुत सोच-समझकर ही किया गया होगा।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत 'योग ब्रांड" पर अपना मालिकाना हक जताने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। यदि फ्रांस के लोग शैम्पेन को अपनी मिल्कियत मान सकते हैं तो हम अपनी इस प्राचीन विद्या पर दावा क्यों नहीं जता सकते? वास्तव में मोदी सरकार एक तीर से दो निशाने साधना चाह रही है। पहला, योग के माध्यम से दुनिया में भारत की 'सॉफ्ट पॉवर" में इजाफा करना और दूसरा, देश को एक ऐसे विषय पर एकमत करने की कोशिश करना, जिसको लेकर जाति और संप्रदाय की कोई बाधा नहीं हो सकती। गौर करना चाहिए कि मोदी एक राजनेता के रूप में एक लंबे समय से इस तरह की चीजों में व्यक्तिगत रुचि लेते आ रहे हैं, जिनकी एक राष्ट्रव्यापी अपील हो, जैसे कि स्वच्छ भारत या फिर शौचालयों का निर्माण।

हो सकता है कि परंपरावादी इस पर आपत्ति लें कि योग के ध्यान-साधना वाले पक्ष को नजरअंदाज किया जा रहा है और उसके बजाय 'सोवियत" किस्म की उस कवायद पर जोर दिया जा रहा है, जिसका कि नजारा हमने रविवार को राजपथ पर देखा। लेकिन योग के तो यूं भी अनेक आयाम हैं, जैसे कि हठयोग, अष्टांग योग, कुंडलिनी योग इत्यादि। साथ ही उसके कुछ आधुनिक संस्करण भी उभरकर सामने आए हैं, जैसे कि आयंगर योग, बिक्रम योग या भारत योग।

लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग पर भारत का स्वामित्व जताने का कदम मोदी ने बहुत सोच-समझकर उठाया है। गत वर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले उद्बोधन में ही उन्होंने इस मामले को उठाया था और अपील की थी कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व योग दिवस का आयोजन किया जाए। इसी संबंध में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी सदस्यों ने दिसंबर में एक मसौदा प्रस्ताव भी पेश किया थ्ाा, जिसका 177 सदस्य देशों द्वारा न केवल समर्थन किया गया, बल्कि इनमें से 175 ने तो उसे सह-प्रायोजित भी किया। प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और 21 जून, जो कि ग्रीष्म संक्रांति का दिन है, को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया। ऐसे में यह स्वाभाविक ही था कि दुनियाभर में योग दिवस मनाया जाता। लाखों लोगों द्वारा उसमें शिरकत की गई। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वेयर से लेकर पेरिस के एफिल टॉवर और कंबोडिया के अंगकोर वाट तक पर योग करते लोग देखे गए। कजाखस्तान, चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी योग दिवस मनाया गया। भारत की संस्कृति को सरकार द्वारा प्रायोजित संस्थाओं के माध्यम से दुनिया तक पहुंचाने के भारत के प्रयासों में योग केंद्रीय भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

बहरहाल, यह सब तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन हमें अपनी घरेलू हकीकतों से भी अंजान नहीं रहना चाहिए। जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव की समस्या से जूझ रहे देश के लिए योग का प्रचार इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता। यह एक जानी-मानी सच्चाई है कि भारत में बड़ी संख्या में कुपोषण से ग्रस्त लोग रहते हैं। इस मामले में योग कोई मदद नहीं कर सकता और इस तरह के दुष्प्रचारों पर भी रोक लगाने की जरूरत है कि योग फलां-फलां रोगों का निदान कर सकता है। ध्यान रहे कि स्वयं भारत सरकार द्वारा जारी एक आकलन में बताया गया है कि भुखमरी से जूझ रहे लोगों और मातृत्व की समस्याओं से पीड़ित महिलाओं की मदद करने की हमारी गति बहुत धीमी और बेपटरी है। हमारी सवा अरब की आबादी का एक बड़ा हिस्सा यानी कोई 20 प्रतिशत लोग गरीबी के दायरे में आते हैं। शिशु मृत्युदर ऊंची बनी हुई है। बात मलेरिया की हो या टीबी की, हर रोग के मामले में भारतीय आंकड़े दूसरों की तुलना में बहुत ज्यादा हैं।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए महज योग ही काफी नहीं है। उसके लिए सबसे पहली जरूरत तो स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना है। सरकार दावा करती है कि देश के 87.88 प्रतिशत घरों तक पेयजल की पहुंच है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह पेयजल स्वच्छ भी है। आज भी देश के लगभग आधे घरों में शौचालय नहीं है। अलबत्ता इस समस्या की ओर प्रधानमंत्री पहले ही अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।

यही कारण है कि योग के संबंध में हमने जितने उत्साह के साथ पहल की है, उतनी ही तत्परता से हम स्वास्थ्य संबंधी अन्य चुनौतियों का भी सामना करें। अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमारे पास योग की विद्या तो है ही, जनस्वास्थ्य की बुनियादी समस्याओं का भी निदान हमें करना चाहिए। बहरहाल, रविवार को राजपथ पर योग के वैश्विक प्रचार के लिए हुए आयोजन का हमें स्वागत ही करना चाहिए, क्योंकि ऐसे आयोजन हम भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व की अनुभूति कराने का एक दुर्लभ अवसर मुहैया कराते हैं।

-लेखक ऑब्‍जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्‍ली में विशिष्‍ट फेलो हैं। ये उनके निजी विचार हैं।

 


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