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न्यूज क्लिपिंग्स् | राजनीतिक दलों के एजेंडे में हाशिये पर गांव- शिकोह अलबदर

राजनीतिक दलों के एजेंडे में हाशिये पर गांव- शिकोह अलबदर

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published Published on Mar 18, 2014   modified Modified on Mar 18, 2014

हाथ छाप को दिया, फूल (कमल) को दिया, जहां बोला वहां दे दिया, अब तक पांच बार वोट दिया है, कुछछो नहीं मिला. यह कहते हुए पचहत्तर की उम्र पार कर चुकी पार्वती देवी धान उसनने के काम में फिर से लग जाती हैं. पार्वती देवी रांची के ओरमांझी प्रखंड के उलातु गांव की रहने वाली हैं. चुनाव होते हैं. सांसद और विधायक चुने जाते हैं. लेकिन इस गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं है. ग्रामीण अपनी तमाम परेशानियों के साथ जिंदगी जीना सीख गये हैं. इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि जैसे-जैसे चुनाव का वक्त नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे गांव में कुछ नया दिख रहा है.

इस गांव को बड़ा उलातु के नाम से जाना जाता है.  वैसे तो इस गांव की राष्ट्रीय राजमार्ग 33 से सीधे तौर पर दूरी महज तीन से चार किलोमीटर है, लेकिन गांव पहुंचने के लिए आठ से 10 किलोमीटर लंबी दूरी वाले कच्चे रास्ते का प्रयोग किया जाता है. बरसात में तो सड़क की स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि गांव में दुपहिया वाहन तक का पहुंचना मुश्किल हो जाता है. हाल फिलहाल में ही गांव जाने वाली चौड़ी पंगडडी को रोड का शक्ल देने की कोशिश कर ग्रामीणों को लुभाने का प्रयास किया  गया है. मिट्टी मोरम गिरा कर मुख्य मार्ग से जोड़ने का प्रयास किया गया है. खैर इन्हीं कच्ची सड़क से होते हुए इस  गांव पहुंचने पर मेरी मुलाकात यहां की सीवन देवी से होती हैं. सीवन देवी इसी गांव की रहने वाली हैं. यह गांव उनका ससुराल भी है. इस गांव में हुए बदलाव को उन्होंने बचपन से देखा है. उन्होंने आज भी अपने गांव में कोई विशेष बदलाव नहीं पाया है. गांव में रोड, आंगनबाड़ी, बच्चों के लिए स्कूल, शौचालय, पीने के स्वच्छ पानी के लिए चापानल आदि कुछ मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आज भी सही तरीके से नहीं हो सकी है. वह कहती हैं : गांव में आंगनबाड़ी नहीं है, बच्च को पढ़ाने के लिए मास्टर नहीं है. शौचालय नहीं है. वोट देने के समय ये करेंगे, वो करेंगे  कहते हैं लेकिन वोट देने के बाद नेता लोग भूल जाता है.

सड़क के खस्ता हाल से ग्रामीण सबसे अधिक परेशान हैं और उनकी प्राथमिकता अच्छी सड़क है. सीवन देवी हंसती हैं, अपने ग्रामीण भाषा का प्रयोग करते हुए कहती हैं : नहियों पिया खालक रहता है त हो गिरता है, खायल पिलक भी गिरता है. उनके कहने का मतलब यह होता है कि नशा में जो आदमी होता है वह तो गिरता ही है, जो नशा में नहीं होता वह भी सड़कों पर गिरता है. लेकिन फिर गंभीर होकर वह कहती हैं : सबसे ज्यादा दिक्कत रोड की है. प्रसव के लिए महिलाओं को पिस्का भेजा जाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए सहिया को फोन करने पर वो लोग टैंपो भेज देते हैं.

गांव में आंगनबाड़ी की स्थिति भी बदतर है. वह कहती हैं : क्या खाना-पीना देता है, कुछ पता नहीं, गांव में एक प्राइमरी स्कूल है, एक ही टीचर है. स्कूल में बच्च है, पर टीचर नहीं हैं.

गांव के  स्वास्थ्य उपकेंद्र का भवन अपनी जजर्र स्थिति की चरम सीमा पर पहुंच गया है. भवन से सटा प्राथमिक विद्यालय का भवन थोड़ी ठीक हालत में है.

इस गांव में मुंडा और उरांव जनजाति के लोग रहते हैं. सीवन देवी को नहीं मालूम कि गांव में कितने घर हैं, लेकिन उन्हें यह मालूम है कि  किसी भी घर में शौचालय नहीं है. घरों में निजी शौचालय नहीं होने के कारण महिलाएं शौच के लिए बाहर ही जाती हैं. वह कहती हैं : पूरी बस्ती जाती है. अच्छा नहीं लगता है. शौचालय मिलने की बात थी मगर अभी तक नहीं हुआ है. अपना हो जायेगा तो रात अंधार में नहीं जाना पड़ेगा. बरसात में ज्यादा दिक्कत है. धान उसन रही पार्वती भी यह सुनकर अपना अनुभव साझा करती हैं. ग्रामीण भाषा में बुदबुदाती हैं. सीवन उनकी बातों को मतलब समझाते हुए कहती हैं कि पार्वती का एक बार पेट खराब हो गया था, दिन भर इधर-उधर खेत में घूमते-फिरते रहती थी.

गांव में पीने के पानी उपलब्ध कराने के लिए चार चापानल लगे हैं. तीन चापानल खराब पड़े हैं. फिलहाल गांव का इकलौता चापानल लोगों को पीने के लिए पानी उपलब्ध करा रहा है. पीने के अलावा अन्य कामों के लिए कुआं तथा तालाब के पानी का इस्तेमाल होता है. बड़ा नेता सिर्फ कहता है, वोट तो दे दिया, रोड नहीं दिया, मेहमान लोग जो भी गांव में आता है कहता है कि जंगल में रोड चला गया है, यहां रोड नहीं बना अब तक. पता नहीं क्या हो जाता है, सुत जाता है, हम लोग कुत्ता जैसा भौंकते रहते हैं, यह कहते हुए गांव की एक और महिला रीता देवी चर्चा में शामिल हो जाती हैं. गांव के ही शंकर कई वर्षो से मजदूरी कर अपनी जीविका चला रहे हैं. इनकी भी शिकायत है कि गांव तक रोड आज तक नहीं बन सकी है. पार्वती का कहना है : रोड नहीं होने से अस्पताल ले जाने में दिक्कत है. ऑटो वाला आना नहीं चाहता है. बहुत ज्यादा पैसा मांगता है. यहां से ओरमांझी ले जाने का दो सौ रुपया लेता है. गांव में प्राथमिक विद्यालय है. कुछ बच्चे स्कूल के लिए नजदीक के गांव खटंगा या ओरमांझी पैदल ही जाते हैं.

ओरमांझी प्रखंड की ही कुच्चू पंचायत का एक गांव कुल्ही मंडई है. मुख्य सड़क से गांव तक जाने वाली सड़क पर बोल्डर पड़े हैं. मालूम किया तो पता चला कि यह सड़क पिछले पांच-छह सालों से ऐसा ही है. यहां ग्रामीणों की प्राथमिकता लाल कार्ड, इंदिरा आवास, वृद्धावस्था पेंशन है. कुल्ही मंडई के दीपक महली कहते हैं कि चुनाव नजदीक आ रहा है तो सांसद घुमने आये हैं. वैसे फील्ड में कोई नहीं आता है. पंचायत में जो भी काम हुआ है वह पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की सक्रियता के वजह से ही हो सका है. जल मीनार बनाये गये हैं, इसमें पंचायत प्रतिनिधियों की ही अधिक सक्रिय भूमिका रही है. ओरमांझी प्रखंड के गांव कुच्चू भाजपा के पूर्व सांसद रामटहल चौधरी का पैतृक गांव है. इस गांव में घुमने के दौरान मेरी मुलाकात नागेंद्र प्रसाद से होती है. उनके साथ गांव के कुछ और लोग हैं. उनसे पूछे जाने पर कि क्या राजनीतिक दल के एजेंडे में वाकई गांवों के विकास को गंभीरता पूर्वक रखा जाता है. नागेंद्र कहते हैं : आज ऐसे तंत्र में वोट देना मजबूरी हो गया है. बेहतर रिजल्ट नहीं दिखता है. गांव के विकास के लिए उनके पास सोच ही नहीं है. सांसद विधायक अपने फंड का पैसा सही तरीके से खर्च ही नहीं कर पाते.

पिछले दस सालों की अवधि में सुबोधकांत सहाय भी इस इलाके में नहीं आये हैं. सभी राजनीतिक दल के नेता जानते हैं कि किस गांव पंचायत से उन्हें कितना वोट मिल सकेगा. सांसदों और विधायकों को मिलने वाला वोट ही गांव पंचायत की विकास योजनाएं निर्धारित करता है. गांव के बंशी ठाकुर कहते हैं : किस पार्टी पर भरोसा किया जाये, बेरोजगारी की समस्या है, महंगाई है, भ्रष्टाचार है, बिना रिश्वत के काम नहीं होता. उनका मानना है कि यदि गांवों का उत्थान करना है तो गांधी जी के विचारों को लाना होगा. वह कहते हैं : कुटीर उद्योग से पंचायत में रोजगार सृजित किये जायें. पानी, बिजली, रोड के साथ रोजगार भी जरूरी है.

गांव-गांव घुमने के दौरान मेरी मुलाकात बालकिशुन महतो से होती है. वह  अनगड़ा प्रखंड के गेतलसूद के रहने वाले हैं. वह कहते हैं गांवों के विकास पर सांसद की कोई नजर नहीं होती. तीन दशक पहले डैम बनाने को लेकर वहां की एक बड़ी आबादी को विस्थापित किया गया. सस्ती दर पर जमीन का दाम तय किया गया. लेकिन इससे कोई लाभ नहीं मिला. आज तक विस्थापित अपनी जीविका जैसे-तैसे अजिर्त कर रहे हैं. बालकिशुन कहते हैं कि विस्थापित हुए प्रत्येक घरों से एक व्यक्ति को नौकरी देने की बात कही गयी थी, लेकिन आज तक  नौकरी नहीं मिली.

सब लोगों का कहना है कि जैसे चुनाव आता है वैसे सब (प्रत्याशी) दौड़ने लगते हैं. लेकिन उसके बाद किसी का पता नहीं रहता है. इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या विस्थापन है. कई लोगों को गेतलसूद डैम बनने के दौरान हटाया गया. सबकी जमीन ले ली गयी. अधिकतर लोग गांव छोड़ कर भाग गये. पिछले चुनाव से अब तक पांच साल में कोई विकास नहीं हुआ है. सब तरह से बात की. हमलोगों ने सांसद का साथ दिया,  लेकिन काम नहीं हुआ.

बालकिशुन महतो

ग्रामीण, मसनिया टोला ऊपर रमादाग, सिरका पंचायत, अनगड़ा, रांची



http://www.prabhatkhabar.com/news/98558-story.html


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