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न्यूज क्लिपिंग्स् | राजनीतिक पार्टियां पारदर्शिता के पक्ष में नहीं हैं : अनिल वर्मा

राजनीतिक पार्टियां पारदर्शिता के पक्ष में नहीं हैं : अनिल वर्मा

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published Published on Mar 25, 2014   modified Modified on Mar 25, 2014

चुनाव में खड़ा प्रत्याशी कैसा होना चाहिए? लोकसभा चुनाव के घोषणा के साथ ही लोगों में यह चर्चा भी आम हो जाती है. बेदाग छवि और कर्मठ सांसद की तलाश हर क्षेत्र के लोगों को रहती है. सांसद के पास क्षेत्र के विकास के लिए न तो योजना की कमी रहती है और न ही फंड की. सन् 2011 से पहले जहां एक सांसद को क्षेत्र के विकास के लिए 2 करोड़ रुपये सलाना मिलते थे. अब इसकी तसवीर बदल चुकी है. अब क्षेत्र के विकास कार्यो के लिए एक सांसद को 5 करोड रुपये सलाना मिलता है. जाहिर है अगर सांसद चाहे तो वह अपने क्षेत्र में विकास कर के एक मिसाल कायम कर सकता है. चुनाव में धनबल और बाहुबल की भी बहुलता रहती है. दबंग छवि के प्रत्याशी को हर राजनीतिक दल मौका देते हैं. लोकतंत्र में इस की बातों का कोई माहौल नहीं होना चाहिए. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का होने का गर्व तो हम सबको है. साथ ही यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि हम संसद की शुचिता का ख्याल रखे. वैशाली के गणतंत्र को हमारे साथ-साथ दुनिया ने भी अपनाया. सोच समझ कर अपने मत का प्रयोग करना हमारी ही जिम्मेवारी है.

लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी का चयन कैसे हो? उनमें कैसी योग्यता होनी चाहिए?
यह देश के संसद का चुनाव है. ग्रामसभा या विधानसभा का नहीं. यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि सांसद जितना साफ चरित्र और योग्यता का होगा. वह लोकतंत्र के लिए उतना ही अच्छा होगा. प्रत्याशियों के चयन में राजनीतिक दलों को भी ध्यान देने की जरूरत है. वैसे लोगों को ही टिकट देना चाहिए जो अनुभवी हो. क्षेत्र की समस्या और विकास को लेकर जो प्रत्याशी जितना जागरूक होगा. चुनाव के लिए वह उतना ही अच्छा होगा. प्रत्याशी को हर- छोटी बड़ी समस्या की जानकारी होनी चाहिए. उसका समाधान कैसे हो? यह सोच होनी चाहिए. ग्राम-पंचायत से जुड़ा कोई आदमी अगर प्रत्याशी बनता है तो यह और अच्छी बात है. उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए जो आम सहमति से चुना जाये. पैसे और दबंगई के बल पर नहीं. वोट डालना तो साक्षर और अनपढ़ सबके लिए संवैधानिक अधिकार है लेकिन बदलते समय के हिसाब से अगर चुनाव में खड़ा प्रत्याशी शिक्षित होगा तो यह लोकतंत्र के लिए बहुत बढ़िया होगा.

विकास के नाम पर हो रहे चुनाव में  जाति, धर्म भी वोट पर असर डालते हैं. इसके लिए क्या कहेंगे?
जाति, धर्म पर चुनाव और वोटिंग अपने आप से तो धोखा है ही साथ ही यह समाज और देश के साथ भी धोखा है. इन सारी बातों से ऊपर उठ कर वोट देने की जरूरत है. विकास के नाम पर चुनाव होना चाहिए. यह भी देखा जाता है कि चुनाव आने के साथ ही विरोधी दल के भी कई नेता अपनी पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं. जातिवाद, धर्म से सबको परहेज करने की जरूरत है. यह पूरे समाज के लिए हानिकारक है. पंच, सरपंच, आम जनता, जिला पार्षद सबको इस बात का ख्याल रखने की जरूरत है. चुनाव का बेस ही विकास के दम पर होना चाहिए. मतदाताओं को यह सोच कर अपना मत प्रदान करना चाहिए कि किस प्रत्याशी के जितने पर क्षेत्र का विकास होगा. मत प्रदान करने का पहला और आखिरी पैमाना केवल विकास होना चाहिए.

चुनाव की घोषणा होने के साथ ही आने-जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. ऐसे कदम कितना असर डालते हैं?
सरकार चलाने के लिए बना गठबंधन जब कभी भी टूटता है तो अपना असर डालता है. ऐसी घटनाओं से सरकार के कामकाज पर असर पड़ता है. विकास कार्य की गति में कमी आ जाती है. ऐसा नहीं होना चाहिए. साथ ही चुनाव में टिकट के लिए प्रत्याशी एक दल से दूसरे दल में आने-जाने लगते हैं. यह भी नहीं होना चाहिए. आने-जाने से परहेज करना चाहिए. ऐसा करने से नेता की छवि जनता की नजर में अच्छी नहीं होती है. सरकार के लिए भी एक बात यह होनी चाहिए. केवल पक्ष और विपक्ष होना चाहिए. राजनीतिक लाभ के लिए छोटे-छोटे दल का गठन नहीं होना चाहिए. इन छोटे-छोटे दलों में विकास को लेकर क्या सोच होती है. यह बता नहीं सकता. संवैधानिक पहल कर के यह प्रावधान कर देना चाहिए कि चुनाव के पहले दो ही गठबंधन बने. जिस गठबंधन को बहुमत मिले वही सरकार का गठन करे और देश के विकास के लिए काम करें.

गांव-पंचायत को लेकर प्रत्याशी की क्या सोच होनी चाहिए?
सबसे बड़ी बात ऐसा प्रत्याशी होना चाहिए जो सबको साथ लेकर चले. स्थानीय निकाय में स्थानीय लोग होने चाहिए. हमारे गांव पंचायत में विकास को लेकर काम करने का बहुत मौका है. किसी भी दल का प्रत्याशी हो. उसके लिए ग्राम-पंचायत में विकास कार्य को प्राथमिकता देने की जरूरत है. अब वक्त भी बदल रहा है. लोग उसे ही मौका देना चाह रहे हैं जो काम करने में यकीन रख रहा है. विकास का इतना काम कर देने की कोशिश होनी चाहिए कि लोगों और विरोधियों को उंगली उठाने का मौका नहीं मिले. प्रत्याशी शिक्षित होना चाहिए. इस काम में गांव के लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है. गांव-पंचायत के लोग उम्मीदवारों का चयन लॉटरी के जरिये करें. सभी लोग एकत्र होकर इसका फैसला करे. वोटर, समाज अपने प्रत्याशी को तय करेगा तो यह लोकतंत्र, समाज के लिए अच्छा होगा. इस  काम में मुखिया,पंच,सरपंच सबको अपनी जिम्मेदारी समझ कर लोगों से इसके लिए बात करने की जरूरत है. इस पहल को अगर किया जाये तो यह बहुत बढ़िया उदाहरण होगा. हम सांसद चुनते हैं तो इसके लिए ऐसे ही पहल करने की जरूरत है. इस मामले में समझदारी दिखाने की जरूरत है. ग्राम-पंचायत स्तर पर इस चुनाव को लेकर इस बात का फैसला हो सकता है.

विकास का क्या-क्या पैमाना उम्मीदवारों के पास होना चाहिए? गांव-पंचायत के लिए कौन-कौन से विकास कार्य कराने की जरूरत है?
सरकार के पास आम जन की सुविधा के लिए ना तो योजना की कमी है और ना ही इसे पूरा करने के लिए फंड की. एक मुखिया और पंचायत में इतनी योजनाएं हैं तो सांसद बन जाने के बाद तो विकास करने के लिए न जाने कितनी योजनाएं रहती हैं. पंचायत में तो गांव को लेकर एक हद भी रहती है जबकि सांसद बनने के बाद विकास करने को लेकर एक बड़ा इलाका रहता है. ईमानदारी के साथ और जनहित के लिए काम करने की पूरा मौका रहता है. जहां तक ग्राम-पंचायत की उन्नति को लेकर काम करने की बात है तो इसके लिए जनता से सीधा संपर्क रखना होगा. गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा पर विशेष ध्यान देना होगा. ग्रामीण सड़कों की हालत पर विशेष ध्यान देना होगा. सड़के अच्छी रहेंगी तो गांव के विकास में तेजी आयेगी. बहुत सारे ऐसे इलाके हैं जहां सड़क की अभी भी कमी है. किसानों की समस्या पर ध्यान देने की जरूरत है. किसानों की फसलों को उचित दाम मिले. इसके लिए विशेष पहल करने की जरूरत होगी. गांव में पहले कुटीर उद्योग चलते रहते थे. इससे लोगों को आर्थिक रूप से काफी सहायता मिलती थी. अब यह उद्योग भी गिनती के रह गये हैं. दम तोड़ रहे कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना होगा. बेरोजगारी को खत्म करने की विशेष पहल करने की जरूरत होगी.

चुनाव में दागी उम्मीदवार भी खड़े हो जाते हैं. इस पर कुछ कहना चाहेंगे?
लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में ऐसी कोई भी बात नहीं होनी चाहिए जिससे हमारे लोकतंत्र पर कोई उंगली उठाये. मैने पहले भी कहा कि सभी राजनीतिक दलों को इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा. यह ठीक नहीं है. महज चुनाव जितना ही मुद्दा नहीं होना चाहिए. बेदाग छवि के उम्मीदवार को टिकट देकर लोगों से वोट मांगने की कोशिश होनी चाहिए. प्रत्याशी कैसा हो? इसके लिए गंभीरता से पार्टी को विचार करना चाहिए. कोई भी पार्टी हो वह इन बातों पर विशेष रुप से ध्यान नहीं देती है. जबकि यह ऐसा मुद्दा है जिस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. अच्छे लोग दागी प्रत्याशी को पसंद नहीं करते हैं. वह संकोच के मारे अपनी समस्या को उन तक नहीं पहुंचा पाते हैं. उनका स्वाभिमान उनके सामने आ जाता है. वह ऐसे लोगों से खुद ही परहेज करने लगते हैं.

 

इंदूभूषण सिंह  ‘अशोक’

मुखिया, पैगंबरपुर पंचायत, मुजफ्फरपुर

राष्ट्रीय ग्राम गौरव पुरस्कार से सम्मानित


http://www.prabhatkhabar.com/news/100237-story.html


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