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न्यूज क्लिपिंग्स् | लॉकडाउन में भूसे की कमी से जूझ रहे पशुपालक, महंगे दाम में भूसा बेच रहे व्यापारी

लॉकडाउन में भूसे की कमी से जूझ रहे पशुपालक, महंगे दाम में भूसा बेच रहे व्यापारी

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published Published on Apr 9, 2020   modified Modified on Apr 9, 2020

-गांव कनेक्शन,

छह-सात सौ रुपए कुंतल बिकने वाला भूसे का दाम आठ-हजार रुपए तक पहुंच गया है। लॉकडाउन की वजह से दूध न बिक पाने से पहले से ही परेशान पशुपालकों के सामने संकट है कि अगर भूसा न मिला तो पशुओं को खिलाएंगे। उत्तर प्रदेश के मेरठ के मनीष भारती जिले के बड़े पशुपालकों में से एक हैं, लेकिन लॉकडाउन से अब वो परेशान हो गए हैं। मनीष बताते हैं, "40-45 रुपए प्रति लीटर बिकने वाला दूध 35-36 में बिक रहा है और पशु आहार और भूसे के दाम आसमान छू रहे हैं। अगर ऐसे ही सस्ते में दूध बेचेंगे तो महंगा चारा कैसे खिला पाएंगे। जो भूसा छह-सात रुपए कुंतल बिक रहा अब हज़ार रुपए के ऊपर पहुंच गया है। अब पशुपालक क्या करेगा।"

सीतापुर में डेयरी चलाने वाली सुधा पांडेय भी आजकल अपने पशुओं को सरसों और पुआल का भूसा खिला रहीं हैं। क्योंकि अभी उनके पास भूसा खत्म हो गया है और लॉकडाउन की वजह से भूसा भी नहीं मिल रहा है। वो बताती हैं, "किसी तरह से सरसों और पुआल से पशुओं का पेट भर रहा है। जब दूध ही नहीं बिकेगा तो महंगा भूसा कैसे खरीदेंगे। इस समय तो हर साल ही भूसे की किल्लत होती है, लेकिन गेहूं कटने लगता है तो भूसा मिलने लगता है।" मार्च 25 से देश में लगे 21 दिनों के लॉकडाउन से रबी फसलों की कटाई न होने से पशुपालकों के सामने ये दिक्कत आ रही है। मजदूरों, हार्वेस्टर, थ्रेशर, ट्रैक्टर, ट्रकों और दूसरे उपकरणों की आवाजाही ठप होने के कारण गेहूं, दलहन, तिलहन जैसी रबी फसलों की कटाई रुक गई है। फसलों के न कटने से भूसे की किल्लत बढ़ी है।

उत्तर प्रदेश प्रतापगढ़ जिले के भीखनापुर गाँव के उदय बहादुर सिंह भी आजकल अपनी गाय को धान का पुवाल ही खिला रहे हैं। वो बताते हैं, "अप्रैल तक हमारे यहां गेहूं कटने लगता है, जिससे भूसा मिल जाता है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से अभी गेहूं कटना ही नहीं शुरू हुआ। अभी तक तो ठीक था लेकिन अब यहां भी कोरोना के मरीज मिलने से पूरी तरह से बंदी हो गई है। अब मजदूर भी बाहर निकलने से डर रहे हैं।"

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में 14.51 करोड़ गाय और 10.98 करोड़ भैंसें हैं, जबकि गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है। साथ ही दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है। राजस्थान के बीकानेर में दीपक पुरोहित डेयरी चलाते हैं, इस समय उनके पास 50 से अधिक गाय हैं। वो बताते हैं, "हमारे यहां गेहूं की खेती तो होती नहीं, इसलिए बाहर से भूसा आता है। लेकिन इस समय एक छोटा पशुपालक भूसा खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकता, इतना महंगा भूसा बिक रहा है। अभी तक कुंतल के हिसाब से बिकने वाला भूसा मन (25 किलो) के हिसाब से बिकने लगा है।" भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान के मुक्तेश्वर केंद्र के पशु विशेषज्ञ डॉ. पुतान सिंह कहते हैं, "जैसे हमारे लिए खाना जरूरी है, वैसे ही पशुओं के लिए भी चारा जरूरी है। खेती करने वाले किसान तो कुछ दिन रुक भी सकते हैं, लेकिन पशुपालक नहीं रुक सकता, वो हर दिन चारा खिलाएगा तभी तो गाय-भैंस दूध देगी। अगर दूध ही नहीं मिलेगा तो पशुपालक दूध कैसे बेचेंगे।"

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


दिवेन्द्रा सिंह, gaonconnection.com/read/dairy-farmers-struggling-with-shortage-of-fodder-in-lockdown-traders-selling-at-expensive-prices-47330


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