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न्यूज क्लिपिंग्स् | वायु प्रदूषण से कमजोर हो रहे हैं लोगों के दिल, हर साल होती हैं 55 लाख मौतें

वायु प्रदूषण से कमजोर हो रहे हैं लोगों के दिल, हर साल होती हैं 55 लाख मौतें

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published Published on Jun 7, 2017   modified Modified on Jun 7, 2017
मल्टीमीडिया डेस्क। प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दिल उन लोगों की तुलना में कमजोर हैं, जो नियमित रूप से स्वच्छ हवा में सांस लेते हैं। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि यह सबूत है कि जीवाश्म ईंधन लोगों की जान ले रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जब डीजल वाहनों से जुड़े प्रदूषण का स्तर यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित सेफ्टी लिमिट के आधे से कम था, तो भी उन्हें खतरनाक प्रभाव के सबूत मिलते हैं।

इस अध्ययन में शामिल एक कार्डियोलॉजिस्ट ने बताया कि इससे पता चला है कि वायु प्रदूषण का वर्तमान स्वीकृत स्तर सुरक्षित नहीं है और इसे कम किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि फुटपाथ पर चलने वाले लोगों को जितना संभव हो सके वाहनों के धुंए से दूर रहना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में वायु प्रदूषण की वजह से मृत्यु दर प्रति एक लाख लोगों पर 25.7 है। वहीं, स्वीडन में यह प्रति लाख पर 0.4 और स्पेन में 14.7 है।

फिलहाल भारत में हैं 18.6 करोड़ वाहन

1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत के समय तक देश में सालाना 10 लाख से कम वाहनों के रजिस्ट्रेशन होते थे। वर्तमान में सालाना दो करोड़ से भी ज्यादा नए वाहनों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फिलहाल देश में लगभग 18.6 करोड़ वाहन हैं। शहरी परिवहन विशेषज्ञ एन. रंगनाथन के अनुसार, इनकी तादाद 2030 में कम-से-कम 35 करोड़ तक होगी।

इसके कारण कई हजार मीट्रिक टन कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड्स, नाइट्रस आक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, धूल कण और हाइड्रोकार्बन जैसी जहर हवा में घुल रही है। शहरों के वायु प्रदूषण में वाहनों का योगदान लगभग 70 फीसद है। कार्बन मोनोक्साइड का तो 90 प्रतिशत से भी ज्यादा उत्सर्जन वाहनों से ही होता है। भारत का परिवहन क्षेत्र कुल ऊर्जा के लगभग 17 प्रतिशत हिस्से का उपभोग करता है, लेकिन इससे 60 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन होता है।

जीडीपी का 3 फीसद हिस्सा इलाज पर खर्च

वाहनों से होने वाले प्रदूषण की वजह से हर साल लाखों लोग दिल, दिमाग, फेफड़ों, आंखों और चमड़ी की गंभीर बीमारियों तथा कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं। जीडीपी का करीब 3 प्रतिशत हिस्सा वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के इलाज पर खर्च होता है। देश में वायु प्रदूषण से होने वाले रोगों से साल 2010 में छह लाख 20,000 हजार और 2012 में लगभग 15 लाख लोगों की मौत हो गई थी। दुनिया भर में लगभग 55 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि कि प्रदूषण की वजह से मौतों के मामले में भारत चीन के करीब पहुंचने वाला है।

सरकार ने उठाए ये कदम

नीति आयोग ने प्रदूषण के स्तर कम करने के लिए पांच सूत्री एजेंडा बनाया है। इसके तहत पेट्रोल-डीजल पर अधिक टैक्स, उच्च पार्किंग दर, कोयला आधारित बिजली संयत्रों को बंद करना, बैटरी से चलने वाले वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना शामिल है। दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण पर पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने प्रदूषण के रोकथाम के लिए किए जा रहे उपायों का खुद जायजा लेने का निर्णय किया है। इसकी शुरूआत नोएडा से हो चुकी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के कुछ शहरों में भी टीम दौरा कर रिपोर्ट बनाएगी।

 


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