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न्यूज क्लिपिंग्स् | विदेशी फसल टाऊ को अपना लिया सरगुजिहा किसानों ने

विदेशी फसल टाऊ को अपना लिया सरगुजिहा किसानों ने

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published Published on Nov 18, 2014   modified Modified on Nov 18, 2014
अंबिकापुर(निप्र)। छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में विदेशी फसल टाऊ को अब न सिर्फ तिब्बती बल्कि स्थानीय किसानों ने अपना लिया है। स्थानीय किसानों ने इस बार लगभगर 10 हजार हेक्टेयर में टाऊ की फसल ली है। पूरा मैनपाट टाऊ की फसल से लहलहा उठा है। प्राकृतिक रूप से सुंदर मैनपाट में टाऊ के फूल सैलानियों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। सैलानियों के लिए जरूर टाऊ की फसल महज फोटो खिंचवाने और अपनी ओर आकर्षण करने की चीज है किंतु मैनपाट के किसानों की इस विदेशी फसल ने तकदीर बदल दी है।

तिब्बत से आया टाऊ लगातार लगाया जा रहा है पर उत्पादन में कोई कमी न आने के कारण किसान हर वर्ष इसका रकबा बढ़ाते जा रहे हैं। इसबार भी रिकार्डतोड़ उत्पादन की उम्मीद किसानों ने लगाई है। मैनपाट में जिस तरह विदेशी फसल टाऊ का उत्पादन स्थानीय किसान करने लगे हैं इसको देखते हुए अब उन्हें बेहतर बाजार उपलब्ध कराने की जरूरत महसूस की जा रही है।

वर्तमान में 30 से 35 रुपए किलो के भाव से ही किसानों को इसका लाभ मिल रहा है और जो व्यवसायी इसे खरीदते हैं वे बड़े महानगरों में ढाई सौ से तीन सौ रुपए किलो आटा बनाकर बेच रहे हैं जो कुट्टू का फलाहारी आटे के रूप में विख्यात हो चुका है।

मैनपाट में बसाया तिब्‍बती शरणार्थियों को

गौरतलब है कि चार दशक पूर्व तिब्बती शरणार्थियों को भारत सरकार ने मैनपाट में बसाया। तिब्बत की तरह मैनपाट का वातावरण और जलवायु होने के कारण तिब्बती यहां रच, बस गए। तिब्बतियों का आनाजाना तिब्बत से लगा हुआ था और वे तिब्बत की फसल भी यहां लाकर प्रयोग के तौर पर करने लगे। इनमें प्रमुख रूप से टाऊ की फसल है जो मैनपाट में जबरदस्त उत्पादन देने लगा। शुरूआती दिनों में केवल तिब्बती शरणार्थी ही टाऊ की खेती किया करते थे। तिब्बतियों ने ही मैनपाट में इसका रकबा बढ़ाना शुरू किया।

देखा-देखी पिछले कुछ सालों से स्थानीय किसानों ने भी टाऊ की खेती करनी शुरू कर दी। वर्तमान समय में मैनपाट में तिब्बतियों की संख्या में भारी कमी आई है और वे खेती को लेकर पीछे हटने लगे हैं। मैनपाट में 230 तिब्बती परिवार हैं जिसमें 1264 व्यस्क सदस्य हैं। मैनपाट में तिब्बतियों ने टाऊ की फसल लेना कम कर दिया और स्थानीय किसानों ने इसकी खेती तेज कर दी है। मैनपाट के करीब 22 गांव में 10 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर टाऊ की फसल इस वर्ष लहलहा रही है।

कीट व्याधियों से बहुत कम प्रभावित होने वाले टाऊ की इस फसल का उत्पादन भारी पैमाने पर होता है। मैनपाट के स्थानीय किसानों ने इसबार 85 प्रतिशत कृषि पर टाऊ की फसल ली है। 15 प्रतिशत भूमि पर ही अन्य फसल ली गई है। इसबार भी टाऊ की फसल रिकार्डतोड़ उत्पादन देने को तैयार है। किसानों के द्वारा इस विदेशी फसल को अपना तो लिया गया है पर उन्हें इसका वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है। शासन-प्रशासन स्तर पर इसका दर और समर्थन मूल्य निर्धारित न होने से किसानों को भारी उत्पादन के बाद भी आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहा है।

मैनपाट के स्थानीय किसानों को वर्तमान में व्यवसायियों को 30-35 रुपए प्रतिकिलो ही बेचने की मजबूरी है, जबकि व्यवसायी यहां से सस्ते दामों में टाऊ खरीदकर महानगरों में इसका आटा ढाई से तीन सौ रुपए किलो पैकेट बनाकर बेचा जा रहा है। किसानों की माने तो कम से कम आटे का आधा दर खड़े टाऊ पर उन्हें मिलना चाहिए।

उधर टाऊ की लहलहाती फसल ने मैनपाट पहुंचने वाले सरगुजा ही नहीं पड़ोसी जिलों व प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से आए सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। हर कोई मैनपाट में लगे टाऊ फसल के फूलों को देख इतना आकर्षित है कि सड़क पर वाहन रोक बगैर फोटोग्राफी किए वापस नहीं लौट रहा है। निश्चित रूप से मैनपाट की प्राकृतिक सुंदरता को टाऊ की फसल ने कई गुना बढ़ा दिया है।

मैनपाट का टाऊ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब तक-

मैनपाट में भारी मात्रा में उत्पादन किए जाने वाला विदेश फसल टाऊ व्यापारियों के माध्यम से देश की राजधानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र के नागपुर तक पहुंच चुका है। यहां के व्यापारी सस्ते दामों में किसानों से टाऊ खरीदकर महानगरों में पहुंचा रहे हैं, जहां प्रोसेसिंग कर फलाहारी आटा तैयार किया जा रहा है जिसे खुले मार्केट में पैकेट बना ढाई सौ से तीन सौ रुपए किलो बेचा जा रहा है। बड़े महानगरों में टाऊ को कुट्टू के आटे के नाम से जाना जाता है।

सरगुजा और रायगढ़ में लगा प्रोसेसिंग यूनिट-

मैनपाट में टाऊ के भारी उत्पादन को देखते हुए व्यवसायियों ने स्थानीय स्तर पर ही प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना कर ली है। सरगुजा जिले के प्रतापगढ़, मैनपाट, बतौली में व्यवसायियों ने प्रोसेसिंग यूनिट लगाया है, जहां टाऊ को प्रोसेसिंग कर 10-10 किलो का पैकेट बना बड़ा व्यवसाय किया जा रहा है। सरगुजा के साथ पड़ोसी जिले रायगढ़, पत्थलगांव में भी प्रोसेसिंग यूनिट लगाया जा चुका है, जहां के व्यवसायी मैनपाट आकर टाऊ हाथोहाथ खरीदकर ले जाते हैं।

सस्ता, सुलभ और आसानी से होता है उत्पादन-

टाऊ की खेती बड़ी आसानी से किया जा सकता है। खेत की भरपूर जुताई के बाद कम खाद डालकर ही इसकी बोवाई कर दी जाती है और बगैर सिंचाई के खेतों में बने नमी से ही महज तीन माह के भीतर फसल पककर तैयार हो जाती है। टाऊ की खासियत यह है कि इसमें किसी भी तरह के कीटों और रोगों का आक्रमण नहीं होता न ही इसे मवेशी नुकसान पहुंचाते हैं। हर दृष्टि से टाऊ की फसल सस्ता, सुलभ और आसानी से उत्पादन देता है। यही कारण है कि तिब्बतियों की देखादेखी स्थानीय किसानों ने इसे अपना लिया है।

बीज की गुणवत्ता बढ़ाने वैज्ञानिकों ने की तैयारी-

मैनपाट में होने वाले विदेशी फसल टाऊ को पिछले चार दशक से किसान लगा रहे हैं। इसका कोई नया प्रमाणित बीज तैयार नहीं किया जा सका है न ही इसका कोई हाइब्रिड बीज ही तैयार किया जा सका है। भारी उत्पादन को देखते हुए किसानों को लाभ पहुंचाने कृषि अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा टाऊ की फसल का उत्पादन बढ़ाने बीज का अनुसंधान किए जाने की तैयारी है, ताकि किसानों को गुणवत्ता युक्त टाऊ बीज उपलब्ध कराया जा सके और उत्पादन और बढोत्तरी हो। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरके मिश्रा ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि कृषि अनुसंधान केंद्र टाऊ पर अनुसंधान करने की तैयार कर चुका है।

सरगुजिहा किसानों को समझ आ गया- वीरा

सरगुजा जिले के कृषि उपसंचालक एसपी वीरा ने बताया कि मैनपाट के स्थानीय किसानों को अब समझ आ गया है कि टाऊ की फसल उनके लिए लाभदायक है। यही कारण है कि किसानों ने इसे अपना लिया है। कृषि विभाग भी अब सरगुजा जिले के मैनपाट में होने वाले टाऊ की खेती पर नजर बनाए हुए है और मैदानी अमला इसका रकबा भी निर्धारित करने लगा है। आने वाले दिनों में किसानों को टाऊ के बेहतर उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। श्री वीरा ने बताया कि मैदानी क्षेत्रों में ऐसी भूमि जहां पानी जमा नहीं होता है वहां मौसम के अनुसार टाऊ की खेती कराने की पहल की जा रही है।


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