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न्यूज क्लिपिंग्स् | वैश्विक संकट से लड़ने की रणनीति- भरत झुनझुनवाला

वैश्विक संकट से लड़ने की रणनीति- भरत झुनझुनवाला

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published Published on Jul 21, 2015   modified Modified on Jul 21, 2015
पिछले माह में विश्व अर्थव्यवस्था की तसवीर बदल गयी है. पहले ग्रीस (यूनान) का संकट आया. ग्रीस ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिये डेढ़ अरब डॉलर के ऋण का रिपेमेंट नहीं किया. आनेवाले समय में लगभग दस अरब डॉलर के ऋण का रिपेमेंट ड्यू होने को है, जिसका पेमेंट भी वह देश नहीं कर पायेगा.

फिलहाल ग्रीस तथा यूरोपीय यूनियन के बीच समझौता हो गया है. यह समझौता टिकाउ नहीं होगा, इसमें संशय है. पिछले माह ही चीन के शेयर बाजार में भारी गिरावट आयी है. पिछले एक साल में उसके शेयर बाजार में ढाई गुना वृद्धि हुई थी.

पिछले माह इसमें 30 प्रतिशत की गिरावट आयी है. इस गिरावट के बावजूद चीन का शेयर बाजार पिछले वर्ष की तुलना में 75 प्रतिशत ऊंचा है. परंतु निवेशकों को भय है कि गिरावट का दौर जारी रहेगा. इन दोनों संकट की जड़ में विकसित देशों की शिथिल पड़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं. विकसित देशों के समूह में अमेरिका, यूरोप तथा जापान शामिल है.

इस संपूर्ण समूह को देखें तो इनकी अर्थव्यवस्थाएं शिथिल हैं. अमेरिका तथा जर्मनी अभी भी सुदृढ़ है, लेकिन इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए. यह कहना कठिन है कि ग्रीस तथा चीन का उभरता संकट संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में ले लेगा या इन दो देशों तक सीमित रह जायेगा. हां, इतना स्पष्ट है कि विश्व अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल में विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 3.5 प्रतिशत से घटा कर 3.3 प्रतिशत कर दिया है. इस मामूली कटौती को गंभीरता से लेना चाहिए.

पिछले दो दशक में चीन ने भारी मात्र में विदेशी निवेश को आकर्षित किया है और विकसित देशों को उतनी ही मात्र में मैन्यूफैर्ड माल का निर्यात किया है. विकसित देशों के समूह में गहराती मंदी के कारण चीन की यह रणनीति आज फेल है. फलस्वरूप चीन का शेयर बाजार टूट रहा है.

मोदी सरकार चीन की इसी असफल नीति को लागू कर रही है. सरकार का प्रयास है कि मेक इन इंडिया प्रोग्राम की छत्रछाया में विदेशी कंपनियों को भारत में कंपनियां लगाने को मनायें और उनके द्वारा उत्पादित माल का निर्यात करें, जैसा चीन ने किया है.

विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी में चल रही हैं, फिर भी इन्हीं से आशा की जा रही है कि वे भारत को उबारेंगी. सरकार की यह नीति पूरी तरह असफल होगी. पिछले छह माह में विदेशी निवेश में वृद्धि नहीं हुई है, जबकि निर्यात में गिरावट जारी है. ऐसे में विकसित देशों की बीमार अर्थव्यवस्था के पीछे भागने के स्थान पर मोदी सरकार को अंतमरुखी नीति लागू करनी चाहिए.

मोदी की आंतरिक आर्थिक नीति घातक है. सरकार का जोर निवेश बढ़ाने पर है. इससे कपड़े का दाम कम होगा, परंतु दुकान में टंगा सस्ता कपड़ा किस काम का जब जेब में पैसा ही न हो? ऑटोमेटिक लूम से कपड़ा उत्पादन में श्रमिकों की जरूरत कम होगी. 20 पावरलूम का काम एक सुलजर लूम कर देता है. पावरलूम में लगे 20 श्रमिक बेरोजगार हो जायेंगे. इनकी क्रय शक्ति घटेगी और बाजार में कपड़े की मांग भी घटेगी.

सरकार बड़ी कंपनियों के द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन को बढ़ावा दे रही है. आम उपभोक्ता के हाथ में पैसा नहीं है कि वह बाजार से माल खरीद सके. यूपीए सरकार के समय में काला धन प्रचुर मात्र में फेला हुआ था. यह काला धन प्रापर्टी में लग रहा था. प्रापर्टी खरीदनेवाले के द्वारा बाजार में एसयूवी खरीदी जा रही थी. इससे बाजार में मांग बन रही थी. मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण से यह पैसा सरकारी खजाने में टिका हुआ है.

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए इस रकम को तिजोरी में बंद कर दिया गया है. खर्च तो सरकारी कर्मचारियों को बढ़े टीए आदि देने में हो रहा है. इन कर्मियों का पेट पहले से ही भरा हुआ है. ये सोना खरीद रहे हैं या अपनी पूंजी को विदेश भेज रहे हैं. इसलिए घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग उत्पन्न नहीं हो रही है. ऐसे में मेक इन इंडिया तो फेल होगा ही और यह प्रोग्राम पूरी अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जायेगा. मोदी सरकार को अपनी आर्थिक रणनीति में मौलिक परिवर्तन करना चाहिए. आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ानी चाहिए.

रोजगार बढ़ाने चाहिए. जैसे ऑटोमेटिक सुलजर लूम को बढ़ावा देने के स्थान पर पावरलूम पर भारी टैक्स लगे, तब हथकरघा चल निकलेगा. लोग कपड़ा बुनने का काम करेंगे. उनके हाथ में पैसा आयेगा. वे बाजार से माल खरीदेंगे और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी. निवेश के सभी प्रस्तावों की रोजगार ऑडिट कराना चाहिए. निवेश के उन्हीं प्रस्तावों को स्वीकृति देनी चाहिए, जिनका रोजगार पर अप्रत्यक्ष निगेटिव असर न पड़े.

बुलेट ट्रेन के बजाय झुग्गियों में सड़क, नाली और बिजली, पानी की व्यवस्था करनी चाहिए. इससे झुग्गियों में बिस्कुट और लिफाफे बनानेवालों को धंधा करने में सहूलियत होगी. उसका माल बाजार में बिकेगा और उनके हाथ में आयी क्रय शक्ति से जमीनी स्तर पर मांग में वृद्धि होगी.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/524599.html


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