Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | लॉकडाउन से पैदा आर्थिक संकट से बढ़ रहीं आत्महत्याएं

लॉकडाउन से पैदा आर्थिक संकट से बढ़ रहीं आत्महत्याएं

Share this article Share this article
published Published on Jul 6, 2020   modified Modified on Jul 6, 2020

-कारवां,

22 जून को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के जगदीशपुर इलाके के रहने वाले 53 साल के रघुवीर सिंह ने आत्महत्या कर ली. सिंह ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “हमारे पास में 25000 रुपए की नकदी थी लेकिन लॉकडाउन के वक्त घर में खाली बैठे-बैठे वह खत्म हो गई. इसके बाद हम क्या करते? इस आर्थिक तंगी से परेशान होकर मैं अपनी जिंदगी खत्म कर रहा हूं.” सिंह के भतीजे सचिन कुमार ने मुझे बताया, “चाचा पिछले 10 दिनों से काम की तलाश कर रहे थे लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था. लॉकडाउन के समय वह अक्सर हमारे घर आया करते थे और परिवार की चिंता करते रहते थे.”

नोवेल कोरोनावायरस के चलते 25 मार्च से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन ने भारतीय अर्थतंत्र की रीड़ तोड़ कर रख दी है. दिहाड़ी मजदूर, प्रवासी मजदूर, किसान और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूर, जो भारतीय श्रमशक्ति का 80 फीसदी हैं, पिछले तीन महीनों से रोटी-रोजगार का संकट झेल रहे हैं. लॉकडाउन में जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग ने सामुदायिक सपोर्ट सिस्टम को भी क्षतिग्रस्त कर दिया है जिसने आर्थिक असुरक्षा की भावना को और विकराल बना दिया है. लॉकडाउन शुरू होने के सप्ताह भर बाद ही मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आबादी पर पड़ने वाले लॉकडाउन के संभावित प्रभाव से सचेत करना शुरू कर दिया था. हालांकि अभी इस संबंध में कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन मीडिया रिपोर्टों और लोगों से बातचीत के आधार पर कहा जा सकता है कि इस बीच आत्महत्या की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.

कुमार ने बताया कि सिंह लेदर कटर (चमड़ा काटने वाला) थे और उनका सबसे बड़ा बेटा भी यही काम करता है. सिंह के चार बच्चे हैं जिनमें से दो प्राइमरी स्कूल में पढ़ते हैं. सिंह का पूरा परिवार जिस एक कमरे के घर में रहता है उसका किराया 3500 रुपए महीना है. कुमार के पिता की मौत इस साल फरवरी में हो गई थी और तब से ही सिंह परेशान थे. जैसे ही लॉकडाउन हल्का हुआ तकलीफ और बढ़ गई. कुमार ने बताया, ''31 मई को चौथे चरण का लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी काम नहीं मिल रहा था.”

झांसी शहर के नंदपुर के 17 साल के शशांक रैकवार के पिता दीपक रैकवार ने 19 जून को आत्महत्या कर ली थी. शशांक ने बताया, “पापा टैक्सी चलाते थे और उनके पास दो टैक्सियां थीं. उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर ये टैक्सियां खरीदी थीं. वह रोज सुबह 8 बजे टैक्सी लेकर निकल जाते थे और दोपहर में 1 बजे घर लौटते थे. फिर 4 बजे शाम को निकल जाते थे और रात को 9 बजे घर आते थे. शशांक ने बताया कि काम से लौटने के बाद पूरा परिवार एक साथ खाना खाता था और मोबाइल फोन पर गेम खेलता था. “उस दिन पापा हमारे साथ नहीं खेले. हमें लगा कि वह बीमार हैं.”

शशांक के दादा-दादी, बुआ और तीन भाई-बहन तीन कमरे के घर में रहते हैं. दीपक टैक्सी चलाते थे और बाकी परिवार मिठाइयों के डिब्बे बनाता था. शशांक ने बताया कि लॉकडाउन के बाद वह काम भी बंद हो गया था. शशांक ने बताया कि “लॉकडाउन के बाद जब टैक्सी चलाने की इजाजत मिली तो पापा कई दिनों तक टैक्सी लेकर जाते तो थे लेकिन किराया भी नहीं निकल रहा था. बड़ी मुश्किल से दिन में 50 या 100 रुपए कमा पाते थे. लॉकडाउन के समय पापा के पास कोई काम नहीं था लेकिन उन्हें दोनों टैक्सियों की किस्त चुकानी पड़ती थी जो हर महीने लगभग 30000 रुपए आती थी. इसके अलावा मेरे स्कूल वाले भी फीस मांग रहे थे. स्कूल में 19000 फीस जमा करनी थी.”

हाल में आत्महत्या का दुख झेलने वाले उत्तर प्रदेश के जिन परिवारों से मैंने बात की उन्होंने बताया कि आत्महत्या का मुख्य कारण आर्थिक तनाव था. 17 जून को कानपुर के कर्नलगंज के रहने वाले 27 साल के अजय कुमार ने आत्महत्या कर ली. अजय के भाई रवि कुमार ने मुझे बताया कि अजय कुमार ने 26 फरवरी को किस्तों में ई-रिक्शा खरीदा था. “उन्होंने बस कुछ ही दिन रिक्शा चलाया था कि लॉकडाउन लग गया.” अजय के पिताजी ने उन्हें गांव वापस बुला लिया और वह कानपुर के पास सेवाली गांव लौट गए और अपने बीवी और बच्चे के साथ रहने लगे. रवि ने बताया कि अजय पढ़ाई में बहुत तेज थे, उन्होंने औद्योगिक ट्रेनिंग की थी. रवि ने कहा, “लॉकडाउन खुलने के बाद वह कानपुर वापस आ गए. वह रोज रिक्शा लेकर बाहर निकलने लगे लेकिन लोग इतने डरे हुए हैं कि रिक्शे में बैठना पसंद नहीं कर रहे.” रवि ने आगे बताया कि काम की कमी के चलते आर्थिक तनाव बढ़ गया और बीवी से भी झगड़ा होने लगा. 17 जून की सुबह अजय ने अपनी मां को कानपुर बुला लिया. “मेरी चाची उसी दिन कानपुर आ गई. दोनों ने खाना खाया और सोने के लिए छत पर चले गए. उसी रात अजय ने आत्महत्या कर ली.”

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर आनंद कुमार का कहना है, “जब जिंदा रहने की इच्छा खत्म हो जाती है और समाज से पूरा अलगाव हो जाता है तो आदमी आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है.” उन्होंने कहा, “अलगाव मानसिक परिस्थितियों से पैदा होता है और यदि आप किसी के साथ इसे साझा नहीं कर पाते तो क्या करेंगे. आपको लगता है कि कुछ नहीं बचा है, कोई आपका नहीं है तो आपकी मदद कौन करेगा?” कुमार ने सामुदायिक स्तर पर हस्तक्षेप करने और सरकारी माध्यमों द्वारा काउंसलिंग उपलब्ध कराने पर जोर दिया.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


सुनील कश्यप, hindi.caravanmagazine.in/news/coronavirus-lockdown-economy-suicides-hindi


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close