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न्यूज क्लिपिंग्स् | शहरी इलाकों में आर्थिक असमानता बनी चुनौती- जयंतीलाल भंडारी

शहरी इलाकों में आर्थिक असमानता बनी चुनौती- जयंतीलाल भंडारी

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published Published on Jan 13, 2014   modified Modified on Jan 13, 2014
देश के शहरों में अमीरी और गरीबी के बीच असमानता के उच्चतम स्तर ने इन दिनों एक बड़ी बहस का रूप ले लिया है। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2011-12 में शहरी क्षेत्रों में अमीरों और गरीबों के बीच में आर्थिक असमानता अब तक के सर्वोच्च स्तर पर रहा। खासतौर से देश के 10 राज्यों- दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, केरल और असम में तो शहरी क्षेत्र में अमीरी और गरीबी के बीच की बढ़ी असमानता आर्थिक-सामाजिक चुनौती बन गई है। यदि हम लोगों की आर्थिक असमानता के स्तर को मापने वाले सूचकांक ‘गिनि स्थिरांक’ की ओर देखें, तो पाते हैं कि वर्ष 2011-12 में राष्ट्रीय स्तर पर शहरी क्षेत्रों में असमानता का स्तर बढ़कर 0.37 गिनि स्थिरांक हो गया, जबकि साल 2004-05 में यह 0.35 के स्तर पर था। उससे भी पहले वर्ष 1999-2000 में गिनि स्थिरांक 0.30 से भी नीचे था। जैसे-जैसे गिनि स्थिरांक बढ़ता है, शहरी गरीबों की आर्थिक-सामाजिक मुश्किलें भी बढ़ती हैं।

निस्संदेह, शहरी अमीरों और गरीबों के बीच चौड़ी होती खाई का सबसे बड़ा कारण गांवों से बड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन और उन्हें कम मजदूरी मिलना है। इस समय देश के शहरों में रहने वाले एक तिहाई लोग वे हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में आए हुए हैं। गांवों से शहरों में आने वाले लोग अपेक्षाकृत अशिक्षित और अकुशल होते हैं। निम्न-स्तरीय काम करते हैं, जिनमें उन्हें मजदूरी भी कम मिलती है। विषमता का दूसरा बड़ा कारण शहरों में स्थापित निजी क्षेत्र के उद्योगों के वरिष्ठ अधिकारियों और छोटे कर्मचारियों के वेतन में जमीन-आसमान का अंतर है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा दिसंबर 2013 में देश की झुग्गी बस्तियों के संबंध में जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश के शहरों में रहने वाले 88 लाख परिवार झुग्गियों में रह रहे हैं। जाहिर है, शहरों में नारकीय जीवन वाली झुग्गी-झोपड़ियों और पुनर्वास कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। गरीबों की सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी सरकारी विकास योजनाओं का लाभ गरीबों को मिल पाए।

उद्योगपतियों और व्यवसायियों को भी यह ध्यान देना होगा कि चूंकि उनके उद्यम-व्यवसाय की प्रगति उनके छोटे कर्मचारियों के अच्छे जीवन स्तर पर निर्भर है, इसलिए वे अपनी तरफ से उनकी बेहतरी के लिए पहल करें। केंद्र सरकार को देश के शहरी निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की वेतन-असमानता को कम करने के लिए चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की न्यायसंगत वेतन नीतियों की तरह ऐसे कारगर उपाय करने चाहिए, ताकि शहरों में निजी क्षेत्र में कम तनख्वाह पाने वाले करोड़ों लोग भी खुशहाल हो सकें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-392401.html


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