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न्यूज क्लिपिंग्स् | शहरीकरण खा गया छह हजार हेक्टेयर लहलहाती जमीन

शहरीकरण खा गया छह हजार हेक्टेयर लहलहाती जमीन

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published Published on Jul 6, 2012   modified Modified on Jul 6, 2012
जालंधर. जितनी तेजी से खेती की जमीन में कालोनियां काटी जा रही हैं, उनमें उतनी तेजी से घर नहीं बन रहे। वजह, लोग रहने के लिए नहीं, बल्कि निवेश के लिए प्लाट खरीद रहे हैं। ऐसे में खेती की जमीन लगातार कम हो रही है। पिछले सात वर्षो में जालंधर में शहरीकरण के नीचे का रकबा 24 फीसदी बढ़ गया है। लगातार कम हो रही खेती की जमीन को लेकर खेतीबाड़ी विभाग चिंतित है। विभाग अब एक रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेजेगा। इसमें शहरीकरण में खेती की जमीन को बचाने के लिए उचित कदम उठाने की मांग की जाएगी।

खेती की जमीन घटने के दो नुकसान हो रहे हैं। एक-भविष्य में अनाज का संकट पैदा होगा। दूसरा-किसान बेरोजगार हो रहे हैं। खेती बड़े किसानों के हाथ आ रही है। खेतीबाड़ी विभाग हर जिले में सर्वे करके खेती के नीचे का रकबा व किसानों की आर्थिकता का पता लगा रहा है। जालंधर की ताजा रिपोर्ट में पता चला है कि बीते सात साल में छह हजार हेक्टेयर खेती की जमीन को शहरीकरण ने लील लिया है। खेतों पर नई कालोनियां काट दी गई हैं।

खेतीबारी माहिरों के लिए चिंता का विषय अनियोजित विकास है। खेती विशेषज्ञ डॉ. नरेश कुमार बताते हैं कि डिमांड का सर्वे करके कालोनी बननी चाहिए। इसके विपरीत लोग निवेश के नजरिए से जमीन खाली छोड़ रहे हैं। ट्रेंड जारी रहा तो खेत खत्म हो जाएंगे। हमें आयात करके अनाज खाना पड़ेगा।

दूसरी तरफ खेती विभाग के अधिकारियों ने कहा कि खेतों में खाली पड़े प्लाटों से दूसरा नुकसान भी है। इनमें नदीन व कीट पैदा हो रहे हैं। यही खेतों में लगी फसल के लिए खतरा बन रहे हैं। वह मिलीबग नाम के कीट का उदाहरण देते हैं। यह कीट इतना ताकतवर हो गया है कि केमिकल इस पर असर नहीं कर रहे। खेतीबाड़ी विभाग के डायरेक्टर डा. मंगल सिंह संधू ने कहा कि एक रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को दी जाएगी। सरकार को सुझाव दिया जाएगा कि उसी जमीन पर घर व इंडस्ट्री आदि लगे जो खेती के लिहाज से ठीक न हो।

अब आगे क्या?

उच्च उत्पादन वाली किस्में विकसित करनी होंगी, यानी कम जमीन में अधिक अनाज का उत्पादन। ग्रीन हाउस टेक्नोलॉजी, पॉलीहाउस के जरिये छोटे किसानों की आर्थिक मदद। साल 2003-क्4 में जिले में 30,351 ट्रैक्टर थे, जो अब 35,545 हो चुके हैं। हार्वेस्ट कंबाइन की संख्या 268 थी, जो अब 390 तक पहुंच गई यानी मशीनीकरण तेजी से बढ़ा है। इससे गांवों में बेरोजगारी बढ़ रही है। इसके लिए एग्रो इंडस्ट्री को विकसित करना होगा।

बड़े किसान और भी बड़े हो रहे

खेती सेक्टर में बड़े किसान लगातार लैंड बैंक बना रहे हैं। साथ ही इनकी संख्या भी बढ़ रही हैं। साल 2005 में जालंधर में 4332 बड़े किसान थे, उनका 6736 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा था। साल 2010 में बड़े किसानों की संख्या बढ़कर 4615 हो गई और इनके कब्जे की जमीन 1.41 हजार हेक्टेयर हो गई है। साल 2005-06 में जालंधर में 7041 छोटे किसान थे। इनके पास 2842 हेक्टेयर जमीन थी। साल 2010-11 में इनकी संख्या 6720 रह गई और जमीन घटकर मात्र 1866 हेक्टेयर रह गई।
 

http://www.bhaskar.com/article/PUN-JAL-urbanization-has-eaten-six-thousand-hectares-of-cultivated-land-3486421.html


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