Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | संविधान लागू कीजिए गांव बन जायेंगे गणराज्य- राहुल सिंह

संविधान लागू कीजिए गांव बन जायेंगे गणराज्य- राहुल सिंह

Share this article Share this article
published Published on Jan 20, 2014   modified Modified on Jan 20, 2014
हमारा संविधान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गांव को स्वावलंबी व उन्हें एक स्वायत्त शासन इकाई बनाने के सपने के अनुरूप है. हमारे गांव ऐसे हों, जो अपने फैसले खुद लें और अपनी जरूरत की अधिक से अधिक चीजों का उत्पादन खुद करें. संविधान में ग्राम पंचायत को एक स्वायत्त शासन इकाई के रूप में स्थापित करने के लिए विधानमंडल को सभी जरूरी उपाय करने का कहा गया है. भारत के संविधान और झारखंड के परिप्रेक्ष्य में पेसा कानून के प्रावधानों को प्रभावी बनाना समय की मांग है. अगर इस दिशा में पहल हुई तो गांव की न सिर्फ बहुत सारी समस्याएं खत्म हो जायेंगी, बल्कि वहां पारदर्शिता भी आयेगी और लोगों का जीवन अधिक आसान हो सकेगा.

हमारे देश में द्विस्तरीय संसदीय व्यवस्था की तरह ही त्रिस्तरीय स्थानीय शासन निकाय (व्यवस्था) का प्रावधान किया गया है. शहरी क्षेत्र में इसे नगर निगम, नगरपालिका व नगर पंचायत में विभक्त करते हैं, तो ग्रामीण क्षेत्र में जिला परिषद, पंचायत समिति और पंचायत के रूप में विभक्त करते हैं. संविधान के अनुच्छेद 243 में पंचायती राज व्यवस्था की संरचना का जिक्र है. 

संविधान के अनुच्छेद 243 (क) में जिक्र किया गया है कि ग्रामसभा गांव के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन कर सकेगी, जो राज्य के विधान मंडल द्वारा विधि द्वारा उपबंधित किया जाये. यानी संविधान ने ग्रामसभा को एक स्वायत्त संगठन के तरह बरताव करने का अधिकार दिया है, जो संविधान सम्मत ढंग से केंद्रीय कानून के अनुरूप या राज्य के कानून के अनुरूप कार्य करेगी. कानून के अनुरूप कई नियम भी बनाये, जिसमें अधिनियम या कानून की ही विस्तृत व्याख्या की गयी है. यानी वैसे तमाम कानून जिसमें ग्रामसभा-पंचायतों की भूमिका रेखांकित की गयी है या वैसे सारे कानून जो सीधे तौर पर ग्रामसभा या पंचायतों के लिए बनाये गये हैं, उसे वह (ग्रामसभा व पंचायत)  अमल में ला सकती हैं. उन्हें अगर उन अधिकारों का पालन करने से कोई सरकार रोकती है या वे अधिकार हस्तांतरित नहीं करती तो माना जा सकता है कि सरकार संविधान के अनुरूप कार्य नहीं कर रही है.

73वें संविधान संशोधन के जरिये 24 अप्रैल 1993 को देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी. इस संशोधन के जरिये ही त्रिस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था का प्रावधान किया गया. उस समय उसमें आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए उनकी जरूरतों के मुताबिक आवश्यक प्रावधान नहीं जोड़े जा सके. 24 दिसंबर 1996 को जनजातीय इलाकों के लिए पेसा कानून यानी अनुसूचित क्षेत्र पंचायत विस्तार अधिनियम लागू किया गया. इस अधिनियम के जरिये जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय ग्रामसभा व पंचायतों को कुछ विशेषाधिकार दिये गये. इसलिए अनुसूचित क्षेत्र में आज भी लोग 24 दिसंबर को ग्राम गणराज्य दिवस के रूप में मनाते हैं. झारखंड की 4423 पंचायत में 2071 पंचायतों में पेसा कानून लागू है. इसका विस्तार 16 जिलों की 13 पंचायतों में है. पर, यहां न तो झारखंड सरकार के द्वारा 2001 में बनाया गया पंचायती राज कानून बहुत प्रभावी है और न ही 1996 में लागू हुआ केंद्र का पेसा कानून. जबकि इन दोनों कानून में यह क्षमता है कि अगर इन्हें प्रभावी बनाया जाये तो झारखंड के ग्रामीण अंचलों की दो तिहाई समस्याएं दूर हो सकती हैं. जिन पंचायतों या ग्रामसभाओं ने इन कानून को अपने स्तर पर लागू करने व उसे प्रभावी बनाने की कोशिश की वहां इसके अच्छे नतीजे भी दिखे हैं.

सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास की नीतियां पंचायत तय करें
हमारा संविधान कहता है कि राज्य का विधानमंडल पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जिससे वे एक स्वायत्त शासन संस्था के रूप में कार्य कर सकें. ऐसी शक्तियां व उत्तरादायित्व सौंपने के लिए प्रावधान किये जा सकते हैं. पंचायतें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार कर सकेंगी. आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की ऐसी स्कीमों को उन्हें सौंपा जाये, जिनके अंतर्गत  ये स्कीमें भी हैं. हमारे संविधान ने पंचायतों को संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों को क्रियान्वित करने की भी जिम्मेवारी दी है. इन विषयों में कृषि से लेकर सामुदायिक संपत्तियों के संरक्षण तक के 29 विषयों की जिम्मेवारी शामिल है.

कर वसूलने का हक भी पंचायतों का
पंचायतें कर भी वसूल सकती हैं. वे ऐसे कर, शुल्क, पथ कर और फीसें वसूली सकेंगी, जिसकी जिम्मेवारी राज्य का विधान मंडल उन्हें देती है. इस तरह के कर में पंचायतों को उनका हिस्सा देने की व्यवस्था विधान मंडल कर सकेगा. राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए के लिए ऐसी सहायता-अनुदान देने के लिए प्रावधान कर सकेगा. विधान मंडल पंचायतों द्वारा उनकी ओर से क्रमश: प्राप्त किये गये सभी धन को जमा करने के लिए व ऐसी निधियों का गठन करने और उन निधियों में से ऐसे धनों को निकालने के लिए प्रावधान कर सकेगा. यानी संविधान में इस सोच को प्रकट किया गया है कि वे कर वसूल कर सकेंगे और उसमें अंश प्राप्त कर सकेंगी. पंचायतें अपने कोष में खुद को प्राप्त राशि को जमा कर सकेंगी और जरूरत में मुताबिक उसे निकाल कर आवश्यक कार्य में खर्च भी कर सकेंगी.

वित्त आयोग का गठन
संविधान के 73वें संशोधन के जरिये यह भी प्रावधान किया गया कि 1992 के प्रारंभ से एक वर्ष के भीतर व उसके बाद प्रत्येक पांचवे वर्ष की समाप्ति पर वित्त आयोग का गठन किया जायेगा. उसकी जिम्मेवारी होगी कि वह पंचायतों की वित्तीय स्थिति का आकलन कर सकेगा. इसके तहत वह राज्य द्वारा उगाहे जाने वाले कर, शुल्क से होने वाली शुद्ध आय को राज्य और पंचायतों के बीच विभाजन का प्रावधान कर सकेगा. उसके द्वारा तय अनुपात में उसे सभी स्तर की पंचायतों (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद) में विभाजित किया जाये.

ग्रामसभा हुई सक्रिय तो दूर हुई परेशानी
ग्रामसभा की पहल से गांव के आम आदमी की समस्याओं का कैसे समाधान हो सकता है, इसके ढेरों किस्से हैं. एक ऐसा ही किस्सा है रांची जिले के मांडर प्रखंड के पुनगी गांव का. पुनगी  के कुछ किसानों ने 1980 में भूमि विकास बैंक से कर्ज लिया था. इसके तहत पांच हजार रुपये नकद कर्ज और पांच हजार रुपये का कृषि यंत्र दिया जाना था. कई किसानों को नकदी भी मिली और कृषि यंत्र भी मिले. लेकिन मंगरा उरांव को सिर्फ नकदी मिली. बिचौलिये की हेरफेर के कारण मशीन नहीं मिली. 2003 के आसपास मंगरा उरांव को बैंक से पत्र मिला कि उसे लगभग सवा लाख रुपये के आसपास का कर्ज हो गया है. इस कर्ज को चुकता करना मामूली किसान मंगरा के लिए संभव नहीं था. मामला ग्रामसभा के पास आया. ग्रामसभा ने प्रस्ताव पारित कर बैंक को भेजा कि अगर इस तरह की कोई बात है, तो वह इस संबंध में पेसा क्षेत्र होने के कारण ग्रामसभा से बात करें. इस तरह के प्रस्ताव की प्रति उच्च अधिकारियों को भेजी गयी. ग्रामसभा ने यह भी स्पष्ट किया कि मशीन तो किसान को मिली ही नहीं. बाद में इस मामले में ग्रामसभा के माध्यम से ही दोनों पक्ष के बीच प्रक्रिया आगे बढ़ी. इसके बाद 2005 में यह मामला खत्म हुआ घोषित कर दिया गया और मात्र 100 रुपये खर्च करने के बाद मंगरा उरांव को जमीन का कागज बैंक से वापस मिल गया.

आयोग राज्य की संचित निधि से भी पंचायतों को सहायता के लिए अनुदान की व्यवस्था कर सकेगा. वह पंचायतों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए भी आवश्यक प्रावधान कर सकेगा. आयोग पंचायतों के मजबूत आर्थिक हित के लिए भी राज्यपाल को सिफारिश कर सकेगा. पंचायतों की लेखा-बही का भी ऑडिट विधानमंडल द्वारा तय नियम के तहत किया जा सकेगा.

ग्रामसभा है गांव की विधायिका
ग्रामसभा के स्वरूप की परिकल्पना भी संसद या विधानसभा की तरह ही की गयी है. जिस तरह लोकसभा को लोकसभा अध्यक्ष संचालित करते हैं या विधानसभा का संचालन विधानसभा अध्यक्ष करते हैं, उसी तरह ग्रामसभा का संचालन करने के लिए भी तीनों स्तर के पंचायत निकायों के संचालन के लिए सभापति का मनोनयन किया जाना चाहिए. लोकसभा अध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष की तरह ही उसे भी मत विभाजन वाले किसी मुद्दे पर मत देने का अधिकार नहीं होगा. उसकी जिम्मेवारी है कि वह ग्रामसभा, पंचायत समिति या जिला परिषद की बैठक की व्यवस्था बनायें रखें. सभापति सदस्यों को अनुशासित रहने व शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए कह सकते हैं.

सदस्यों को इस तरह की बैठक में अनुशासित रहना चाहिए व आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. न्यायालय में विचाराधीन विषयों पर भी वे टिप्पणी नहीं करें. सभापति को सदस्यों को बैठक से निकाले जाने की भी विशेष कारणों के आधार पर शक्तियां दी गयी हैं.

ग्रामसभा व पंचायतों की  बैठक में भी ध्यानाकर्षण लाया जा सकता है. इसके लिए बैठक से पांच दिन पहले इस आशय की लिखित सूचना देनी चाहिए. कोई सदस्य संसद या विधानसभा के प्रश्नकाल की तरह पांच दिन पूर्व खिलित सूचना देकर ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद के प्रशासन या विकास कार्यो के संबंध में जानकारी मांग सकेगा.

क्या है पेसा कानून में खास
राज्य विधान मंडल पंचायतों के लिए जो कानून बनाये वह लोगों की परंपरा, सामाजिक तथा धार्मिक रीति, रिवाज व सामुदायिक संपदाओं की परंपरागत प्रबंधन व्यवस्था के अनुरूप हो. ताकि जनजातीय परंपरा अक्षुण्ण रहे.

ग्राम साधारणतया आवास या आवासों के समूह अथवा छोटे गांव या छोटे गांवों के समूह से मिल कर बनेगा, जिसमें समुदाय निहित हो और जो परंपराओं व रुढ़ियों के अनुसार, अपने कार्यक्रमों का निष्पादन करते हैं.

प्रत्येक ग्राम में एक ग्रामसभा होगी, जो ऐसे व्यक्तियों से मिल कर बनेगी, जिनका नाम ग्राम स्तर पर पंचायत की मतदाता सूची में होगा.

प्रत्येक ग्रामसभा, जनसाधारण की रुढ़ि एवं परंपरा और उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संपदाओं और विवाद निबटाने की पारंपरिक विधि व्यवस्था को सुरक्षित एवं संरक्षित करने में सक्षम होगी.

ग्राम स्तर पर प्रत्येक ग्राम पंचायत पंचायत क्षेत्र की योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र ग्रामसभा से प्राप्त करेगी.

पेसा क्षेत्र में पंचायत निकाय के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहेगा.

राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों का मनोनयन कर सकेंगी, जिनका पंचायत समिति स्तर पर पंचायत में या जिला स्तर पर पंचायत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है; परंतु ऐसा मनोनयन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दसवें भाग से अधिक नहीं होगा.

अनुसूचित क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए भू अजर्न करने के पहले या ऐसी योजनाओं से प्रभावित लोगों के पुनस्र्थापन अथवा पुनर्वास के पहले ग्रामसभा या समुचित स्तर पर पंचायतों का परामर्श लिया जायेगा.

अनुसूचित क्षेत्रों में योजनाओं के वास्तविक निर्माण और क्रियान्वयन का समन्वय राज्य स्तर पर किया जायेगा.

अनुसूचित क्षेत्रों में लघु जल निकायों का योजना निर्माण एवं प्रबंधन समुचित स्तर पर पंचायतों को दिया जायेगा.

अनुसूचित क्षेत्र में लघु खनिजों के लिए अनुमति अथवा खनन पट्टा प्रदान करने के पूर्व ग्रामसभा या समुचित स्तर पर पंचायत की सिफारिश अनिवार्य बनायी जायेगी.

नीलामी द्वारा गौण खनिजों के उपयोग पर रियायत देने के लिए ग्रामसभा या समुचित स्तर पर पंचायतों की पूर्व सिफारिश को अनिवार्य बनाया जायेगा.

अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को ऐसी शक्तियां एवं अधिकार प्रदान करने के क्रम में जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य कर सकने में सक्षम बनाये, वे अधिकार राज्य विधानमंडल द्वारा उन्हें प्रदान किया जाये.

मादक द्रव्य की बिक्री एवं उपभोग को निषेध करने या नियंत्रित करने या पाबंदी लगाने की शक्ति.

गौण वन उपज का स्वामित्व.

अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाने और किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्य की विधि विरुद्ध हुए हस्तांतरण की गयी जमीन की वापसी के लिए उचित कार्रवाई करने की शक्ति.

गांव के बाजार चाहे वे किसी नाम से जाने जाते हो, उसके प्रबंध करने की शक्ति.

अनुसूचित जनजातियों को पैसे उधार देने पर नियंत्रण करने की शक्ति.

सामाजिक क्षेत्र में संस्थाओं एवं कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करने की शक्ति.

स्थानीय योजनाओं और ऐसी योजनाओं के संसाधनों पर नियंत्रण की शक्ति जिसमें जनजातीय उपयोजनाएं शामिल हो.

राज्य द्वारा निर्मित कानून, जो पंचायतों को ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करते हो जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए अनिवार्य है. यह सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे कि उच्च स्तर की पंचायतें , निमA स्तर की पंचायतों का या ग्रामसभा की शक्ति और अधिकार अपने हाथ में नहीं ले लें.

अनुसूचित क्षेत्रों में, राज्य विधान मंडल को चाहिए कि जिला स्तरों पर पंचायतों में प्रशासनिक व्यवस्था की रूपरेखा के निर्माण में संविधान की छठी अनुसूची के नमूने का अनुसरण करें.

संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लिखित 29 वैसे कार्य जो पंचायतों को करना चाहिए :

कृषि, जिसके अंतर्गत कृषि विस्तार है.

भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण.

लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जल विभाजक क्षेत्र का विकास.

पशुपालन, डेयरी उद्योग और कुक्कुट पालन.

मत्स्य उद्योग.

सामाजिक वानिकी और फॉर्म वानिकी.

लघु वन उपज.

लघु उद्योग, जिनके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है.

खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग.

ग्रामीण आवासन.

पेयजल.

ईंधन और चारा.

सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन.

ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण है.

अपारंपरिक ऊर्जा स्नेत.

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम.

शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिकी और माध्यमिक विद्यालय भी है.

तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा.

प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा.

पुस्तकालय.

सांस्कृतिक क्रियाकलाप.

बाजार और मेले.

स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिनके अंतर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी है.

परिवार कल्याण.

महिला और बाल विकास.

समाज कल्याण, जिसके अंतर्गत विकलांगों और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण भी है.

दुर्बल वर्गो और विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली.

सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण.

http://www.prabhatkhabar.com/news/81387-story.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close