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न्यूज क्लिपिंग्स् | सदमे में किसान: फिर गईं तीन जान,

सदमे में किसान: फिर गईं तीन जान,

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published Published on Jan 22, 2011   modified Modified on Jan 22, 2011

बेगमगंज/विदिशा. कर्ज के बोझ में दबे किसान लगातार मर रहे हैं और सरकार सिर्फ जांच का हवाला देती जा रही है। शनिवार को तीन किसानों की फिर जान चली गई। प्रदेश में दो दिन में छह किसानों की मौत हो चुकी है, वहीं एक महिला ने भी आत्महत्या का प्रयास किया था।


रायसेन जिले में दो किसान फसल बर्बाद होने का सदमा नहीं झेल सके। बताया जाता है उनपर बैंक और साहूकारों का हजारों का कर्ज भी था। ग्राम मढ़िया के राजाराम तिवारी(55) के 16 एकड़ खेत में सिर्फ पांच बोरा तुअर हुई। यह देखकर राजाराम सदमे से बेहोश हो गए। अस्पताल ले जाने से पहले उनकी मौत हो गई। उनके पुत्र अनिल तिवारी ने बताया कि उनके पिता पर बैंक का तीस हजार और साहूकारों का एक लाख रुपए कर्ज हो गया था।


ग्राम गोरखी के किसान कमलसिंह पुत्र राजाराम ठाकुर ने फसल बर्बाद होने पर सदमे में दम तोड़ दिया है। उनपर 50 हजार का कर्ज होना बताया जा रहा है।


विदिशा जिले के ग्राम रंगई में फसल में पाले से हुए नुकसान का राजस्व अमले द्वारा शून्य फीसदी नुकसान बताने पर किसान दौलतसिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। शनिवार को सुबह परिजनों ने उसका शव उसके खेत के पास ही एक पेड़ पर लटका देखा।


घटना के बाद आक्रोशित लोगों ने कुछ समय के लिए एनएच 86 पर चक्काजाम करने का प्रयास भी किया लेकिन पुलिस की समझाइश के बाद मामला सुलझ गया। बर्बाद फसल के कारण जिले में किसानों की मौत की तीन दिन के भीतर यह दूसरी घटना है।


भगवान के लिए मेरे पति को पागल मत कहो


‘मुझे सहारा दो या न दो पर भगवान के लिए कम से कम मेरे पति को पागल तो मत बताओ।’ यह गुहार फांसी लगा चुके किसान लखन कुशवाहा की पत्नी हीरा बाई ने लगाई है। प्रशासन ने रविवार को छतरपुर के टपरियन के मृत किसान लखन कुशवाहा को मानसिक विक्षिप्त घोषित कर दिया है।


यही नहीं फांसी लगाने वाले दूसरे किसान कुंजी अहिरवार को तो किसान मानने से इंकार कर दिया। प्रशासन आत्महत्या का कारण कर्ज और खराब फसल को भी मानने को तैयार नहीं है।


उधर लखन के पिता और पत्नी ने इसका खंडन किया है। प्रशासन के दावे की हकीकत जानने के लिए दोनों गांवों पहुंचकर भास्कर रिपोर्टर ने पड़ताल की। लखन के आत्महत्या करने से पूरा टपरियन गांव सदमे में था। यहां लखन के पूरे परिवार का रो रोकर बुरा हाल था। फसल खराब होने और कर्ज न चुका पाने के क ारण लखन ने खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।


अब बेटियों की खाई जा रही चिंता


वहीं ईशानगर थाना क्षेत्र के पठादा गांव में कर्ज के बोझ से मुक्त होने के लिए मौत को गले लगाने वाले किसान कुंजी अहिरवार के गांव में भी मातम छाया है। किसान की पत्नी भगुंती ने बताया कि उनके पास केवल एक एकड़ जमीन है जो परिवार की आजीविका थी।


लगातार तीन वर्षो से प्राकृतिक आपदा और घटिया बीज- खाद ने फसल बर्बाद कर दी। इससे उनकी सारी जमा पूंजी के खत्म हो गई। उन्हे साहूकारों से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा। कर्ज चुकाने के लिए उनके पति कारीगरी करने लगे। लेकिन कर्ज नहीं चुका पा रहे थे। इसके साथ बड़ी बेटी राजकुमारी (15), रानी (12), सुनील (10) और सविता (7) की पढ़ाई-लिखाई की चिंता थी।


लेनदार जब घर में दस्तक देने लगे। इससे कुंजी अहिरवार चिंता से घिर गए। इसी के चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली।


लाचार सरकार


सरकार कारणों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। यह समय टीका टिप्पणी का नहीं है। इतना ही कह सकता हूं कि सरकार पूरी तरह किसानों के साथ है। किसानों की सहायता में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी।


रामकृष्ण कुसमरिया,कृषि मंत्री


कर्म से बड़ा नहीं कर्ज


दुनिया का पेट भरने वला किसान हर मुसीबत झेलता है लेकिन वह धर्य नहीं खोता। आज प्रकृति धरतीपुत्रों का इम्तिहान ले रही है। कुछ किसान कर्ज के चलते अपना धर्य खो रहे हैं। भास्कर ने कुछ ऐसे किसानों को खोजा है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत नहीं हारी और नया मुकाम हासिल किया।


कर्ज में डूबे,पर हिम्मत नहीं हारी


दमोह जिले की तेंदूखेड़ा नगर पंचायत के उपाध्यक्ष सुरेश जैन 1972 में पाटन से तेंदूखेड़ा आए थे। उस वक्त उनके पास न तो एक इंच जमीन थी न हाथ में फूटी कौड़ी, लेकिन आज वे 15 एकड़ के मालिक हैं। श्री जैन ने पल्लेदारी की, 90 रुपए माहवारी में नौकरी भी की।


1984 में उन्होंने बम्होरी गांव में 5 एकड़ जमीन बंटाई पर लेकर खेती की शुरूआत की। उन्होंने साहूकारों से कर्ज लिया, दोगुने दाम पर खाद, बीज भी खरीदा। सालों तक कड़ा संघर्ष किया। अब वे खुशहाल कृषक हैं।


फसल के साथ अब लाखों आमदनी


सीहोर के सिकंदरगंज के किसान राजेंद्र श्रीवास्तव ने वर्ष 2008 में बैंक से नर्सरी के लिए 12.50 लाख का लोन लिया। दस एकड़ में उन्होंने आम,संतरा,मौसंबी,नींबू के 1000 पौधे लगाए। बीच-बीच में 2000 पौधे पपीते के भी लगाए। पहले साल ही उनके 3 लाख रुपए के पपीते बिके। नर्सरी में उन्होंने 50 हजार पौधे भी तैयार किए थे। उनसे उन्हें 5.50 लाख आमदनी हुई। राजेंद्र बतलाते हैं अब उन्हें कर्ज बोझ नहीं लगता।


http://www.bhaskar.com/article/MP-BPL-three-more-farmers-commits-suicide-in-madhya-pradesh-1782739.html


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