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न्यूज क्लिपिंग्स् | सब्सिडी को कैसे करें काबू?-- वरुण गांधी

सब्सिडी को कैसे करें काबू?-- वरुण गांधी

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published Published on Dec 10, 2015   modified Modified on Dec 10, 2015
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए सार्वजनिक कर्ज की ब्याज अदायगी के लिए 4,55,145 करोड़ रुपये रखे हैं। इसमें तेल विपणन कंपनियों और फर्टीलाइजर कंपनियों के लिए दी गई विशेष प्रतिभूतियां शामिल हैं। फर्टिलाइजर कंपनियों को दी जाने वाली कुल सब्सिडी 72,968 करोड़ रुपये है, जिनमें से छठा हिस्सा आयातित यूरिया के लिए रखा गया। हमारी खाद्य सब्सिडी की कुल लागत 1,24,419 करोड़ की है, इसमें 64,919 करोड़ रुपये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आवंटित किए गए हैं।

एलपीजी और केरोसीन की खुदरा कीमतों पर सरकार का नियंत्रण होने से सब्सिडी पर 30,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ गया है। भारत के खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम के कई मकसद हैं, जिनमें कीमतों में स्थिरता, भोजन तक गरीबों की पहुंच और कृषि उत्पादों को प्रोत्साहित करना शामिल है। हालांकि ऐसे सब्सिडी कार्यक्रम के प्रदर्शन में लीकेज और अलक्षित लाभार्थियों की बड़ी संख्या की वजह से भिन्नता होती है।

वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय संस्था कोएडी द्वारा खाद्य सब्सिडी योजनाओं पर किए गए एक सर्वे में यह निष्कर्ष निकलकर आया था कि गरीबों तक एक डॉलर स्थानांतरित करने के लिए सरकार को 3.1 डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। 1998 के एक अध्ययन के मुताबिक, सब्सिडी का 31 फीसदी गेहूं और चावल अवैध तरीके से स्थानांतरित कर दिया गया था। योजना आयोग ने 2005 में माना था कि सब्सिडी का 37 फीसदी खाद्यान्न अवैध तरीके से स्थानांतरित किया गया।

वर्ष 2001 में आंध्र प्रदेश में खाद्य सब्सिडी का 27 फीसदी सरकारी बजट खरीद, परिवहन और वितरण से संबंधित अक्षम सरकारी एजेंसियों की वजह से नष्ट हो गया था। 2010 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, ऐसी सारी अक्षमताओं की वजह से सिर्फ 10 फीसदी खाद्य सब्सिडी ही गरीबों तक पहुंच पाती है।

शोध से पता चलता है कि यदि इस कार्यक्रम को बेहतर ढंग से चलाया जाए, तो लागत और लीकेज, दोनों कम किए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ ने खाद्य सब्सिडी को बेहतर तरीके से लागू करने का उदाहरण प्रस्तुत किया है। उसने खरीद और वितरण से लेकर गोदामों और फिर जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों तक खाद्यान्न पहुंचने की पूरी सप्लाई चेन का डिजिटाइजेशन कर दिया, जिससे भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिली।

दुनियाभर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी स्थानांतरण के प्रयोग किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण कहीं ज्यादा आसान है। पूरे लैटिन अमेरिका में जन नीति में कल्याणकारी कार्यक्रमों को जोड़ा गया, जिसकी शुरुआत शिक्षा से की गई और बाद में इसमें खाद्य और ईंधन को भी जोड़ा गया। 2003 से 2009 के दौरान ब्राजील को गरीबी में 15 फीसदी कमी लाने में मदद मिली और उसने गरीबी में कमी का लक्ष्य पांच वर्ष में पूरा कर लिया।

भारत में ऊर्जा सब्सिडी के क्षेत्र में पिछले वर्ष तब बड़ा परिवर्तन नजर आया, जब सरकार ने केरोसीन की दोहरी मूल्य व्यवस्था लागू करते हुए बाजार की कीमत पर बिकने वाले केरोसीन पर से सरकारी नियंत्रण हटाया था। इसी तरह एलपीजी के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण यानी डीबीटी से अब तक 12.90 करोड़ नागरिकों को जोड़ा जा चुका है और अब यह नकद हस्तांतरण की दुनिया की सबसे बड़ी योजना बन गई है।

इन प्रयासों की वजह से दो अरब डॉलर की बचत हुई है और 5.5 करोड़ फर्जी उपभोक्ताओं को खत्म करने में मदद मिली। इसके साथ ही कालाबाजारी पर भी अंकुश लगा। ये कदम उत्साहित करने वाले हैं, क्योंकि एलपीजी और केरोसीन पर दी जाने वाली सब्सिडी के कारण काला बाजारियों को जड़ें जमाने में मदद मिल रही थी। अमूमन केरोसीन का वितरण भ्रष्ट और अक्षम जन वितरण प्रणाली के जरिये किया जाता रहा है, जिस पर राज्य सरकारों को नियंत्रण होता है।

स्थानीय राजनीतिकों की मिलीभगत से काला बाजारी करने वाला माफिया पेट्रोल और डीजल में सस्ते केरोसीन की मिलावट करता रहा है। एनएसएसओ के 2012 के आंकड़ों के मुताबिक, उस वक्त तक पीडीएस के मद में आवंटित केरोसीन का 45 फीसदी अवैध तरीके से स्थानांतरित हो रहा था।

अनेक कमेटियों ने जन वितरण प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं। रंगराजन कमेटी (2006) ने एलपीजी की खुदरा कीमत में बढ़ोतरी की वकालत की थी और उसका कहना था कि इस पर दी जाने वाली सब्सिडी सीधे बजट से दी जाए। पारिख कमेटी (2010) ने सिफारिश की थी कि पीडीएस से दिए जाने वाले केरोसीन की कीमत में प्रति व्यक्ति कृषि विकास दर में बढ़ोतरी के साथ वृद्धि की जाए।

केलकर कमेटी (2012) ने तीन वर्ष में एलपीडी पर सब्सिडी पूरी तरह से समाप्त करने और केरोसीन पर दी जाने वाली सब्सिडी में 33 फीसदी की कटौती करने की सिफारिश की थी। असल में एलपीजी और केरोसीन, दोनों पर दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती और बाजार आधारित कीमतों पर जोर देने के साथ ही दीर्घकालीन जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देना आवश्यक है। इस बीच, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के मकसद से सोलर लैम्प रोशनी के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है, जिसके लिए सिर्फ एक बार सब्सिडी देनी होगी, जबकि केरोसीन में हर बार सब्सिडी की जरूरत पड़ती है।

पिछले केंद्रीय बजट में सब्सिडी की पूरी व्यवस्था में सुधार का वायदा किया गया था। इसके तहत सब्सिडी के तीन प्रमुख घटकों, खाद्य, खाद और ईंधन को एक खर्च प्रबंधन आयोग के दायरे में लाया गया था, जिसे आवंटित सब्सिडी की समीक्षा करने की जिम्मेदारी दी गई थी, ताकि सामाजिक स्तर पर इसका अधिकतम नतीजा मिल सके।

हमें वित्तीय मजबूती के लिए वाकई एक रोडमैप की जरूरत है, ताकि सब्सिडी को नियंत्रित किया जा सके। कम कीमत पर बिजली देने जैसी लोकलुभावन योजनाओं को अच्छी सुविधा के जरिये हतोत्साहित करने की जरूरत है। हमें वित्तीय मजबूती के लिए वाकई एक रोडमैप की जरूरत है, ताकि सब्सिडी को नियंत्रित किया जा सके। कम कीमत पर बिजली देने जैसी लोकलुभावन योजनाओं को अच्छी सुविधा के जरिये हतोत्साहित करने की जरूरत है।


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/how-to-control-over-subsidy-hindi/


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