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न्यूज क्लिपिंग्स् | समय पर दवा नहीं मिलने से अपंग हो चुके सौ से ज्यादा मरीज

समय पर दवा नहीं मिलने से अपंग हो चुके सौ से ज्यादा मरीज

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published Published on Nov 28, 2016   modified Modified on Nov 28, 2016
सुमेधा पुराणिक चौरसिया, इंदौर। रक्त से जुड़ी दुर्लभ बीमारी हीमोफीलिया की दवा नहीं मिलने से इंदौर संभाग के सौ से ज्यादा लोग अपंग हो चुके हैं जबकि पूरे संभाग में 235 से ज्यादा लोग इससे जूझ रहे हैं। इलाज उपलब्ध करवाने के लिए मरीज सरकार से कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन अब तक न बजट स्वीकृत हुआ, न दवा की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकी है।

हीमोफीलिया के मरीज को चोट लगने पर तब तक खून बहता रहता है जब तक की उसे फैक्टर 8 ब्लड इंजेक्शन नहीं लगा दिया जाता। कुछ मरीजों को फैक्टर 7 या 9 के इंजेक्शन भी लगाना होते हैं लेकिन ये न अस्पतालों में मिल पाते हंै और न ही बाजार में। इंदौर में कुछ चुनिंदा मेडिकल स्टोर्स पर ऑर्डर देकर इन्हें बुलवाया जाता है।

एक इंजेक्शन के लिए मरीज को आठ से दस हजार रुपए तक चुकाना होते हैं। अधिकतर मरीजों को एक से दो माह में इंजेक्शन की जरूरत होती है। दवा देने में देरी होने पर अपंगता आने लगती है। मरीज को बाहरी और आंतरिक रक्तस्राव का खतरा बना रहता है। चोट लगने पर पैर, हाथ, पिंडली, कोहनी, जांघ आदि जगहों पर खून का थक्का जमकर सूजन आने लगती है। मरीज को यदि तुरंत फैक्टर इंजक्शन नहीं लगाया जाए तो उस हिस्से में अपंगता आने लगती है। ज्यादातर मामलों में यह बीमारी गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में आती है।

पुरुषों में होती है यह बीमारी

यह अनुवांशिक बीमारी है जो मां से बच्चों में आती है। यह पुरुषों में ज्यादा होती है क्योंकि इसका सीधा संबंध लिंग निर्धारण के लिए जिम्मेदार एक्स क्रोमोजोम से होता है। रक्त का थक्का जमाने के जरूरी फैक्टर 8 की कमी से यह होती है।

हीमोफीलिया के मरीजों के लिए सोसायटी बनाई गई है। संभाग में 235 मरीज सोसायटी में रजिस्टर्ड हैं। अगर शासन हीमोफीलिया के लिए अलग से बजट आवंटित कर दे तो मरीजों को काफी राहत होगी। हम हर दो-तीन महीने में अधिकारियों से जाकर मिलते हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है। बाजार में दवा काफी महंगी मिलती है। समय पर दवा नहीं मिलने से हमारे कई मरीजों में अपंगता आ गई है।

-महेंद्र विखार, हीमोफोलिया सोसायटी

जिला अस्पताल में फैक्टर 8 विशेष ऑर्डर पर बुलवाते हैं। हमने सोसायटी के सदस्यों से कहा कि जितने भी मरीज हैं उनकी जरूरत के मुताबिक "ङस्ताव बनाकर दें, ताकि शासन को भेजा जा सके। ये इंजक्शन बहुत महंगे आते हैं इसलिए कम संख्या में बुलवाते हैं वरना दूसरी बीमारियों का बजट ही खत्म हो जाएगा। शासन को भी इन मरीजों की समस्या बताई जाएगी।

-डॉ. दिलीप आचार्य, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल, इंदौर

 


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