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न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकार बदलते ही कैसे बदल जाता है खेती की लागत और मुनाफे का गणित

सरकार बदलते ही कैसे बदल जाता है खेती की लागत और मुनाफे का गणित

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published Published on Feb 24, 2015   modified Modified on Feb 24, 2015

कृषि क्षेत्र के लिए टर्म्स ऑफ ट्रेड यानी उसके उत्पादों की मिलने वाली कीमत और उसके द्वारा खऱीदे जाने वाली वस्तुओं और उपयोग की जाने वाली सेवाओं के लिए चुकायी जाने वाली कीमत के अनुपात के मामले में एनडीए सरकारों का दौर किसानों के लिए फायदेमंद नहीं रहा है। इसे केवल संयोग कहा जाए या नीतियों के मोर्चे पर किसानों के हितों की अनदेखी। लेकिन सचाई यह है कि पिछली एनडीए सरकार के समय में भी कृषि क्षेत्र के लिए टर्म्स ऑफ ट्रेड निगेटिव था और एक बार फिर यह निगेटिव हो गया है।

कृषि मंत्रालय के एक एक्सपर्ट पैनल द्वारा तैयार रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक 2004-05 में कृषि उत्पादों को मिली कीमतों का इंडेक्स जहां 62.35 पर था, वहीं किसानों द्वारा चुकाई जाने वाली कीमत का इंडेक्स 70.99 था। यानी यह 87.82 फीसदी था। अगर यह एक पर आ जाए तो इससे नुकसान या फायदा नहीं होने वाली बात सामने आती है और अगर किसानों के लिए एक से ज्यादा हो जाए तो फिर टर्म्स ऑफ ट्रेड किसानों के पक्ष में जाता है। पिछले दस साल में केवल दो बार 2009-10 और 2010-11 में हुआ। पहले साल में 100.15 और 2010-11 में 102.95 रहा। वहींसाल 2008-09 में 99.98 पर होने से यह बराबरी से मामूली सा कम रहा है। लेकिन बाद के दो साल में फिर से किसानों के प्रतिकूल हो गया और इसके बाद के समय में भी इसी दिशा में रहने का अनुमान है।

असल में पूर्ववत्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी कीमतों में भारी तेजी आई। नतीजतन सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी खासी बढ़ोतरी करनी पड़ी। जबकि किसानों द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों में कृषि उत्पादों के अनुपात में कम बढ़ोतरी हुई। इस इंडेक्स को तैयार करने के लिए 79 कमोडिटी को शामिल किया जाता है। इनमें 40 फसलें, 29 फल व सब्जियां और दस डेयरी, फिशरीज व वन उत्पाद शामिल किये जाते हैं। इस आधार पर इंडेक्स ऑफ प्राइस रिसिवव्ड (आईपीआर) तैयार किया जाता है। वहीं इंडेक्स ऑफ प्राइस पेड (आईपीपी) में 74 उत्पाद और सेवाएं शामिल होती हैं। जिनमें बीज, उर्वरक,कीटनाशक कृषि उपकरण, विपणन खर्च, बिजली और सिंचाई खर्च, ब्याज, खाने का सामान, कंज्यूमर ड्यूरेबल, एफएमसीजी, दवाएं, संचार सेवाएं और कृषि कार्य के लिए दी जाने वाली मजदूरी शामिल है।

आईपीआर और आईपीपी का अनुपात अगर एक से कम है तो यह किसानों के लिए प्रतिकूल है और अगर एक से ऊपर है तो यह किसानों के पक्ष में है। यानी आय का प्रवाह उनके पक्ष में है।


हाल ही में कृषि मंत्रालय को सौंपी गई एक्सपर्ट पैनल की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2004-05 से इसमें सुधार शुरू हुआ और दो साल यह बेहतर स्थिति में रहा। लेकिन उसके बाद इसमें फिर गिरावट का दौर शुरू होता दिख रहा है। जिस तरह से कृषि उत्पादों के एमएसपी में काफी कम बढ़ोतरी की गई और वैश्विक स्तर पर कमोडिटी कीमतों में भारी गिरावट आई है उसके चलते टर्म्स ऑफ ट्रेड किसानों के प्रतिकूल रहने की स्थित बनती जा रही है। यानी एक बार फिर एनडीए कार्यकाल में किसानों की वित्तीय सेहत कमजोर रहेगी।


http://money.bhaskar.com/news/MON-NR-PAP-why-terms-of-trade-for-agriculture-become-negative-in-nda-regime-4912513-NOR.html


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