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न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकारी आंकड़ों का सबके लिए उपलब्ध होना - मुकुल श्रीवास्तव

सरकारी आंकड़ों का सबके लिए उपलब्ध होना - मुकुल श्रीवास्तव

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published Published on Sep 23, 2013   modified Modified on Sep 23, 2013
इंटरनेट पर सूचनाएं और आंकड़े खोजना कभी मुश्किल नहीं रहा, पर भारत से संबंधित आंकड़े खोजना कभी आसान भी नहीं रहा। ऐसे स्रोत बहुत ज्यादा नहीं हैं, जहां देश के सारे आंकड़े मिल जाएं और वे विश्वसनीय भी हों। आंकड़ों तक जनता की सर्वसुलभता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति 2012 का निर्माण किया गया है। अब इसी नीति के तहत, वेबसाइट का निर्माण किया गया है, जहां सरकार के समस्त विभागों के गैर-संवेदनशील आंकड़ों को जमा किया जा रहा है। माना जाता है कि आंकड़ों तक आम लोगों की पहुंच से प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ेगी और उनके तार्किक विश्लेषण से देश में हो रहे सामाजिक-आर्थिक बदलाव पर नजर रखते हुए योजनाएं बन सकेंगी। सूचना क्रांति के युग में भी अब तक सरकार देश के ज्यादातर आंकड़ों की मालिक है। आम जनता तो छोड़िए, शोध करने वालों और पत्रकारों तक को उन्हें हासिल करने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। अब यह तस्वीर बदलने की उम्मीद की जा रही है। इस वक्त इस साइट पर सरकार के 51 विभागों के 4,068 डाटा सेट उपलब्ध हैं। भविष्य में इसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे।

स्मार्ट फोन पर इंटरनेट के प्रयोग की अधिकता को देखते हुए इस वेबसाइट के जरिये कई तरह के एप्लीकेशन्स या एप्स भी पेश किए जा रहे हैं। जैसे, कृषि समुदाय के पेज पर देश की समस्त मंडियों के उत्पाद की कीमत जानने और उनके तुलनात्मक आकलन वाला एप्स मौजूद है। कई एप्स बचकाने और तकनीकी तौर पर पिछड़े भी हैं। जैसे, किसी शहर के पिन कोड को जानने के लिए बनाया गया एप्स। इस वेबसाइट को इंटरेक्टिव बनाने की कोशिश भी की गई है। इसमें कम्युनिटी पेज भी हैं और ब्लॉग भी। इन तमाम बातों के बावजूद अभी इतना ही कहा जा सकता है कि आंकड़ों को जनता तक पहुंचाने का फिलहाल एक पड़ाव ही पार हो पाया है। जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में यह पहल बरसों पहले हो चुकी है। इस प्रयास की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि आंकड़ों के बारे में नौकरशाही का रवैया कितना बदल पाता है। आम तौर पर सरकारी दस्तावेज से हमें जो आंकड़े मिलते हैं, वे पुरानी और अनुपयोगी होते हैं। केंद्रीय सैंपल सर्वे संगठन काफी विस्तृत सर्वेक्षण करता है, लेकिन उनका ब्योरा इतनी देर से सामने आता है कि शायद ही कोई व्यावसायिक संगठन उनका ठीक से इस्तेमाल कर पाता हो।

इसीलिए निजी क्षेत्र आम तौर पर खुद के सर्वेक्षणों पर ही निर्भर करता है। आंकड़ों की उपयोगिता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उनका अपडेट कितनी जल्दी होता है। मसलन, मंडियों के भाव बताने वाले आंकड़ों का अपडेट अगर एक दिन में कम से कम दो या तीन बार नहीं होता, तो बेमतलब ही रहेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-365109.html


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