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न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकारी डॉक्टर नहीं लिख रहे हैं जेनेरिक दवा, जनऔषधि स्टोर घाटे में

सरकारी डॉक्टर नहीं लिख रहे हैं जेनेरिक दवा, जनऔषधि स्टोर घाटे में

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published Published on Apr 20, 2017   modified Modified on Apr 20, 2017
रायपुर। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय प्रदेश में 157 जनऔषधि दवा स्टोर संचालित कर रहा है। दवाएं मंत्रालय अधीनस्थ प्लांट में बनाई जाती हैं, इसलिए ये बाजार में मौजूद ब्रांडेड दवाओं से 13 गुना तक सस्ती हैं। इसके बावजूद सरकारी डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

 

जानबूझकर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। मजबूरन जरूरतमंद मरीजों निजी दवा स्टोर से खरीदनी पड़ ही है। यही वजह है कि राज्य के कुछ जनऔषधि दवा स्टोर को छोड़ अधिकांश में अनुमानित से कम दवाएं बिक रही हैं। यह न सिर्फ केंद्रीय मंत्रालय, बल्कि राज्य सरकार के लिए भी चिंता का बड़ा विषय है। बावजूद इसके राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग अपने ही डॉक्टर्स पर सख्ती नहीं कर पा रहा है।

 

'नईदुनिया' पड़ताल में सामने आया कि केंद्रीय मंत्रालय ने एक दवा स्टोर से एक लाख रुपए मासिक आय का अनुमान लगाया है। यानी 157 जन औषधि स्टोर से 1.57 करोड़ रुपए की आय होनी चाहिए, लेकिन 60 लाख के करीब आय है। ऐसे में 80-85 लाख रुपए का घाटा हर महीने हो रहा है।

 

इसे लेकर जन औषधि स्टोर के राज्य प्रभारी ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव सुब्रत साहू, संचालक स्वास्थ्य आर. प्रसन्ना से चर्चा की और उन्हें इन बिंदुओं पर जानकारी दी। जनऔषधि दवा स्टोर खोलने के पीछे केंद्र सरकार का उद्देश्य मरीजों को सस्ते दामों पर दवा मुहैया करवाना है। लेकिन यह तभी संभव है जब डॉक्टर इन्हें लिखेंगे। दूसरी तरफ अगर डॉक्टर जेनेरिक दवाएं नहीं लिख रहे हैं तो मरीज सीधे 104 पर शिकायत कर सकते हैं। इस पर कार्रवाई का प्रावधान है। इसके लिए मरीजों को जागरूक होने की जरूरत है।

 

तर्क क्या, पीछे की कहानी क्या?

भरोसा नहीं- 'नईदुनिया' ने इस मुद्दे पर राज्य के कुछ वरिष्ठ सरकारी डॉक्टरों से बात की। इनका साफ कहना है कि इन्हें जेनेरिक दवाओं पर भरोसा नहीं है। कई बार दवाएं असरकारक नहीं होतीं।

 

गिफ्ट का फंडा- सरकारी अस्पतालों में ब्रांडेंड दवा निर्माता कंपनियों के एमआर का डेरा रहता है। ये डॉक्टरों को अपनी दवाएं प्रमोट करने के लिए कहते हैं। इसके एवज में डॉक्टरों को महंगे गिफ्ट मिलते हैं। एमसीआई की इस पर सख्ती है, बावजूद इसके यह खेल चलता है। डॉक्टरों को विदेश यात्रा तक करवाई जाती है। यही कंपनियां डॉक्टरों और उनके एसोसिएशन के कार्यक्रम आयोजित करती हैं। ऐसे में कैसे ये ब्रांडेंड दवाएं नहीं लिखेंगे?

 

कैपिटल लेटर में नहीं लिख रहे दवा के नाम-

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई), राज्य स्वास्थ्य विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेज, सरकारी अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिए थे कि वे अधीनस्थ डॉक्टरों को ओपीडी पर्चियों में कैपिटल लेटर में दवाओं के नाम लिखने का निर्देश दें। डॉक्टर इस निर्देश की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अंबेडकर अस्पताल, जिला अस्पताल के डॉक्टर 'घसीटा' ही लिख रहे हैं, जो मेडिकल स्टोरवाले ही पढ़-समझ सकते हैं।

 

सचिव, संचालक से बात की है

डॉक्टर अगर जेनेरिक दवाएं लिखें तो जनऔषधि योजना सफल होगी। कोई टॉरगेट नहीं है फिर भी 1 लाख रुपए महीने प्रति स्टोर से आय होनी चाहिए। इस मुद्दे पर सचिव, संचालक से बात की है।

 

सुरेंद्र खंडवाल, नोडल अधिकारी, जनऔषधि छत्तीसगढ़

मॉनिटरिंग कर रहे हैं

 

विभाग जेनेरिक दवाओं की मॉनिटरिंग कर रहा है। जो डॉक्टर लिख नहीं रहे हैं उन पर कार्रवाई करेंगे। मरीज सीधे शिकायत कर सकते हैं। इसलिए 104 मेडिकल हेल्प लाइन नंबर की रसीद में मुहर लगाई जा रही हैं। शिकायतें भी हैं।

आर. प्रसन्ना, संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं

 


http://naidunia.jagran.com/chhattisgarh/raipur-government-doctors-are-not-writing-generic-medicine-157-public-medical-stores-in-losses-of-80-lakhs-1112476?utm_source=naidunia&utm_medium=home&utm_campa


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